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मैं जब धरती पर आया था,
हिंदी का ही स्वर लाया था |
माँ की लोरी के शब्दों ने,
हिंदी को ही अपनाया था ||
शब्दों का वरदान मिला,
साहित्य का मुझको ज्ञान मिला,
मातृत्व का कोमल भाव मिला,
सदाचार सदभाव मिला,
हिंदी जैसी माँ के दिल में,
रहने का स्थान मिला ||
हिंदी की बगिया में कितने,
रस रूपी फूलों का डेरा,
छंद – अलंकारों में मिलता,
मानवता का नया बसेरा ||
कलम उठाकर कागज़ पर,
अभिव्यक्ति अंकित करता हूँ,
मेरी हर एक रचना मैं,
हिंदी को अर्पित करता हूँ ||
जब भी सूर और मीरा के,
पद मैं गाया करता हूँ,
हिंदी के अंतर्मन में,
आनंद को पाया करता हूँ ||
जन -जन की भाषा हो तुम,
कवियों की अभिलाषा तुम,
रातों के अंधियारे में,
बुझते दीप की आशा तुम ||
तुमने मुझको शब्द दिए,
तुमने मुझको वाणी दी,
मुझको जिससे पहचान मिली,
ऐसी भाषा कल्याणी दी ||
हिंदी मेरी रूह बनी,
हिंदी बनी है मेरे गीत,
हिंदी बनी प्रेरणा मेरी,
हिंदी बनी है मेरी जीत ||
उमेश पंसारी
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