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भ्रष्टाचार के आरपार

shantikunj umesh
shantikunj umesh
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भ्रष्टाचार का नाम सुनते ही हमारे मन में आज एक अजीब सी बात आती है,अन्ना जी का चेहरा हमारे जेहन में आ जाता है, कुछ क्रांति परक विचार भी मन को आंदोलित करते है.ऐसा लगता है की हमें इसको ख़तम करने के लिए कुछ करना चाहिए.क्या हमने कभी गौर किया की यह क्या चीज है.सामान्य शब्दों में भ्रष्ट आचार अर्थात भ्रष्ट आचरण करना इसकी परिभाषा है ,इसकी जड़े इतनी गहरे से हमारे बीच जमी हुई है की इसको आप सोचना चाहें तो भी दिमाग ख़राब हो.और इसे सोचने समझने के बाद हमें ये समझ आता है की यह इतनी आसानी से समाप्त होने वाला नहीं है हम सबको इसके लिए कठिन प्रयत्न करने पड़ेंगे,
आज बड़े स्तरों के भ्रष्टाचार पर तो मीडिया से लेकर अन्य मंचों पर भी आवाजे उठती रहती है ,इसके समाप्त होने की हम सभी कामना भी करते रहते है पर हमें इसके मूल में जाना होगा.और यह मूल इतनी गहरी है की हमारे आपके कल्पना से बाहर है.मै इसके समाप्त न होने की बात नहीं कर रहा और न ही हम भ्रष्टाचार के प्रति अपनी सहानुभूति जता रहे है पर हमें ये लग रहा है की हमारा समाज इससे काफी गहराई से प्रभावित है.इसके लिए हमें हमारी प्रवृति को बदलना होगा.हमारे सोच को आमूलचूल परिवर्तित करना पड़ेगा,

आइये हम कुछ नमूना देखते है की किस तरह से हमारा समाज इससे त्रस्त है. पारिवारिक स्तर पर हम भ्रष्ट आचरण को इस तरह से रेखांकित कर सकते है.
१. बेटे बेटियों में फर्क करना.
२.भाई द्वारा दुसरे भाई की जमीन हडपना.
३.जमीन नहीं तो कम से कम जोत में बटवारे की लाइन को टेढ़ा मेढा करना,
४.बेटियों को हिस्सा न देना.
५.लडको के लिए दहेज़ मांगना
६.बहुओं को प्रताड़ित करना.
७.देवरानी जेठानी की लडाई.
८. सास बहु के झगडे.
९.ननद भोजाई के झगडे.
१०.कमाऊ पूत और बेरोजगार बच्चों में फर्क .
११.यौन प्रताड़ना के केश भी अक्सर परिवार में देखे जाते है.
क्या ये आचरण हमारे अनुरूप है?
शायद नहीं.
सामाजिक स्तर पर भी येही सब बातें है.
१.हफ्ता वसूली
२.ऑफिस में कोई कम के बदले सुविधा शुल्क (जितना बड़ा काम उतनी बड़ी फीस)
peon आपसे ५ रुपया लेकर आपकी फाइल को एक जगह से दूसरी जगह पहुचता है.तो clerk 50 रुपया लेकर साहब से फाइल साइन करवाता है.
३.गाँव में चिट्ठी पहुचानेवाला भी कभी पैसे की मांग कर देता है.
४.स्कुलों में डोनेसन देकर एडमीशन
५.परीक्षा में नकल,
६.परीक्षाथी का गलत मूल्यांकन – सही उत्तर पर अंक न देना और गलत/अलिखित उत्तरों पर भी अंक दे देना,
७.जबरन चन्दा लेना नहीं देने पर गलत ढंग से प्रताड़ना.
८.नौकरियों में पक्षपात
८.अपने विरोधियों को दबाने के लिये सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग
९.न्यायधीशों द्वारा गलत या पक्षपातपूर्ण निर्णय
१०.वंशवाद,
११.ब्लैकमेल करना,
१२. टैक्स चोरी,
१३. झूठी गवाही,
१४. झूठा मुकदमा,
१५.पैसे लेकर संसद में प्रश्न पूछना,
१६.पैसे लेकर वोट देना,
१७.वोट के लिये पैसा और शराब आदि बांटना,
१८.पैसे लेकर रिपोर्ट छापना,
१९.विभिन्न पुरस्कारों के लिये चयनित लोगों में पक्षपात करना,
२०.सेक्स के बदले पक्षपात,
२१.भाई-भतीजावाद
और पता नहीं क्या क्या होते है हमारे समाज में.

सदा से ही यह माना जाता रहा है कि शक्ति व्यक्ति को भ्रष्ट बनाती है ।व्यक्ति के पास गलत पैसा हो तो व्यसन में चला जाता है. यह सच भी है। जब व्यक्ति पर कोई अंकुश न हो तो उसके भ्रष्ट होने की संभावनाएं सचमुच बढ़ जाती हैं। शक्ति का दूसरा पहलू भय है। दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू मात्र हैं। थोड़ा और गहराई से देखें तो हम पायेंगे कि भय और शक्ति के साथ-साथ लालच और ईष्या भी भ्रष्टाचार के जनक हैं।

हाल ही में कई घोटाले चर्चा का कारण बने। यह सभी घोटाले किसी एक व्यक्ति अथवा कुछ व्यक्तियों के पास असीम शक्ति होने के कारण घटित हो सके। मंत्रियो को लगभग निरंकुश शक्ति सौंप दी गई और उनने अपनी-अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया। इसी प्रकार भविष्य की असुरक्षा का भय भी भ्रष्टाचार को जन्म देता है। जब कोई व्यक्ति थोड़े समय के लिए सत्तासीन होता है तो वस्तुत: भविष्य की अनिश्चितता और असुरक्षा के भय से ग्रस्त होता है। अनिश्चित भविष्य उसे अपनी शक्तियों के दुरुपयोग के लिए प्रेरित करता है, जिसके परिणामस्वरूप वह भ्रष्ट तरीकों से धन इकट्ठा करने लगता है। चुनावों में पूर्ण जनादेश यदि न हो तो संयुक्त सरकारें सत्ता में आती हैं। सरकार बनाने के लिए निर्दलीय एवं छोटे दलों के सांसदों और विधायकों की खरीद-फरोख्त होता है , संयुक्त सरकार के दलों को खुश रखने के लिए किए जाने वाले बड़े ही रहस्यमय समझौते भी भ्रष्टाचार के जनक हैं।
हमारे देश की सबसे बड़ी विडम्बना यह है की जो भी सत्ता में आते है सीमित समय के लिए आते है.पांच साल के लिए आते है तो बस अपना जोड़ लो, अपना future secure भविष्य सुरक्षित कर लो , पता नहीं अगली बार चुनाव जीतू आ न जीतू.मै राजतन्त्र की महिमा का गान तो नहीं कर रहा पर उसमे कुछ ऐसा था की राजा की जिम्मेदारी हो जाती थी की प्रजा को कैसे खुश रखे.अब तो बस ५ साल की बात होती है कैसे वोटरों को लुभाया जाय,ताकि बस उन्हें वोट दे और जीता करके सदन में भेजे,बस ये भेजना भेजना ही हो जाता है, वह फिर वापस नहीं आता है जनता के पास.चुनाव के लिए मुश्किल से पैसा जुटाने वाले करोड़ पति अरबपति बस पांच साल में बन बैठते है.मजे की बात यह होती है की भ्रष्टाचार के लिए गठित जाँच एजेंसियां इनकी ही पिछलग्गू होती है.भ्रष्टाचार के लिए अगर कोई कानून बनाने की बात हो तो परस्पर विरोधी भी बस एक ही स्वर में बोलने लगते है .सरकारी अधिकारियों के काम भी निराले होते है. ये तो हमारे देश के दामाद ही होते है.इन अधिकारियों को नौकरी से हटाना आसान नहीं है.इनके गलत कारनामो के लिए इनको बर्खास्त नहीं किया जाता बल्कि इनकी पुरस्कार दिया जाता है,वह ऐसे की इनको suspend यानि की निलंबित किया जाता है.निलंबन में भी इनको वेतन का अधिकांश भाग इनको मिलता रहता है.वह भी बिना काम किये.वह अधिकारी अपने इस खाली समय और आधिकारिक संपर्कों का लाभ लेकर अपने घर के काम या कई तरह के व्यवसाय आरंभ कर लेते हैं और दुगनी कमाई करने लगते हैं।Transfer यानि की स्थानांतरण भी इनका पुरस्कार ही है. आज यहाँ कल वहां.नए जगह पर नए सिरे से नयी सतर्कता के साथ काम चालू. नये संपर्क बनाने में बस थोड़ा-सा ही समय लगता है और भ्रष्ट अधिकारी अपने पिछले अनुभव के आधार पर कुशलता से फिर से भ्रष्ट रवैया अख्तियार कर लेता है।सरकारी विभागों में जटिल प्रक्रिया और कामों की सुस्त रफ्तार, अस्पष्ट कानून, न्याय की लंबी प्रक्रिया आदि भ्रष्टाचार के बड़े कारण हैं।
यदि हम सचमुच भ्रष्टाचार दूर करना चाहते हैं तो हमें एक बड़े परिदृश्य में सोचना होगा और सभी मोर्चों पर एक साथ काम करना होगा वरना आधा-अधूरा प्रयास सफल नहीं हो सकेगा। समस्या यह भी है कि सरकार की ओर भ्रष्टाचार के नाम पर घडिय़ाली आंसू, दिखावे के बयान और सतही कार्यवाहियां ही देखने को मिल रही हैं। राजनीतिक और प्रशासनिक क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए सरकार नए बिल लाने का इरादा ही नहीं रखती है।

अब समय आ गया है कि जनसामान्य और प्रबुद्धजनों को एकजुट होकर एक शांतिपूर्ण क्रांति की नींव रखना चाहिए । भ्रष्टाचार को समाप्त करना अगर आसान नहीं है तो असंभव भी नहीं है।बस जरुरत है इसके लिए हमें एकजुट होकर इसके विरोध करने कि . साहस दिखाकर इसको न कहने कि.
जनता के हर वर्ग को इसे समझने, दूसरों को समझाने और सबको साथ लेकर इस प्रयास को मजबूती देने का काम करना होगा तभी हम भ्रष्टाचार से लड़ पायेंगे और एक स्वस्थ, समृद्ध और विकसित सुसंस्कृत समाज का निर्माण करना होगा तभी हम एक महाभारत का विशाल भारत का समृद्ध भारत का सुशिक्षित भारत का निर्माण पायेंगे अन्यथा हम बस सरकार को और अधिकारीयों को कोसते रह जायेंगे यह अँधेरा मिटेगा जरुर मिटेगा भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण जरुर होगा बस आइये हम एक संकल्प आज से ले कि हम स्वयं न तो भ्रष्टाचार करेंगे न तो भ्रष्टाचार करने वालों का सहयोग करेंगे । हम बदलेंगे तो युग बदलेगा हम सुधरेंगे तो युग सुधरेगा.

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