Menu
blogid : 54 postid : 45

थोड़ी प्याज दिला जाते, हे ओबामा!

फाकामस्ती
फाकामस्ती
  • 15 Posts
  • 176 Comments

हे तारणहार! जब इस देश को इतना देकर जा रहे हो तो हमें थोड़ा आलू-प्याज दिला जाते। हमारी जरूरत तो इस समय सबसे ज्यादा यही है। अब यह गुहार आपसे इसलिए है क्योंकि जब कल मैं शाम को सोम बाजार पहुंचा और ठेले वाले ने बीन्स का भाव 20 रुपये पाव बताया तो सहज जिज्ञासा हुई कि बीन्स के भाव दीवाली पर कौन सा रॉकेट पकड़कर उड़े कि फिर धरा पर न गिरे? ठेले वाले ने मेरी अज्ञानता पर परिहास करते हुए कहा कि भइये, ओबामा आए हैं तो बीन्स महंगी नहीं तो क्या सस्ती होगी? अपनी इतनी किरकरी होने के बाद मैं दाएं-बाएं देखकर चुपके से खिसक लिया और उसके बाद मेरी मंडी में किसी ठेले वाले से यह पूछने की हिम्मत नहीं हुई कि प्याज 30 रुपये किलो क्यों है, आलू 20 रुपये किलो क्यों है और मटर 100 (जी हां.. सौ) रुपये किलो क्यों है।
कल हमारे देश के करुणानिधानों के सामने आपके ओजस्वी भाषण से अभिभूत हुए मीडिया से चमत्कृत हुआ मैं जब सोम बाजार पहुंचा तो चमत्कार का हैंगओवर काफूर हो गया और इस हकीकत से रू-ब-रू हुआ कि घर की हफ्तेभर की सब्जी के लिए जो चार झोले कंधे से टांके में पहुंचा था वो इस बार थोड़े और खाली लौटेंगे। वैसे तो अब यह हर हफ्ते की उत्तरोत्तर प्रक्रिया ही बन गई है। इसलिए जब ठेले वाले ने इस सत्य का ज्ञान कराया कि आपके चरणों का असर हमारी सब्जी मंडी तक पहुंच चुका है तो सहज ही इच्छा हुई कि आपसे विनती करूं कि जब सब को इतना दिए जा रहे हो तो थोड़ा प्याज हमें भी दिलवा जाते तो कुछ दिन का काम चल जाता। वैसे मुझे इतना पता है कि आपका देश अमेरिका दुनिया में किसी भी गरीब को रोटी नहीं दिला सका, अलबत्ता उसने लाखों-करोड़ों का दाना-पानी छीना ही है, लेकिन इस बार मुंबई व दिल्ली में कुछ तोहफे बांटे हैं तो थोड़ा रहमोकरम हमारी सब्जी मंडी पर भी हो जाता तो बड़ी कृपा रहती। अब इतना तो हमें भी समझ ही आ रहा था कि सुरक्षा परिषद में परमानेंट सीट का जो झुनझुना दिखा कर आप इतनी वाहवाही पाए हो, वो बड़ी लंबी पोल है। आखिर सुरक्षा परिषद में सुधार की शर्त लटका दी… न नौ मन तेल होगा, न… लेकिन कसम से अगर वहां से आलू-प्याज का नाम भी ले दिए होते तो आगे सोफे पर उनींदे बैठे पवार भइया की आंखें चौकस हो जाती। अब हमारे यहां भले ही छोकरे फाकामस्ती करें, आंखें मलते रहें लेकिन अपने देश के लिए तो पचास हजार नौकरियां लिए ही जा रहे हो। देखा न! पाकिस्तान का नाम भर ले दिया तो हमारे गुरुघंटालों की कैसे बांछें खिल गईं। उनका तो दंडवत करने का मन कर रहा था, बस इस संकोच में रह गए कि आप कहीं कुछ और न समझ जाओ। फिर भी हमारे गुंटुर के नामधन्य ने चार लाख की चेन तो आपको गिफ्ट कर ही डाली। गलत न समझे, असल में वे भी ‘किसान’ हैं और चार बार से सांसद हैं। उनके गुंटूर में किसानों का हाल क्या है, यह तो अपने को नहीं मालूम लेकिन आपको क्या कमी है? चार लाख की चेन इधर खिसका देते तो कुछ आलू-प्याज का इंतजाम…
चलो खैर, वो तो तोहफा था, किसी से तोहफा मांगने की तहजीब नहीं हमारी। वो तो उस रोज सब्जी बाजार ने ऐसा धोबी-पाट मारा कि आपसे आलू-प्याज की गुहार लगा बैठे। ना दे सकोगे, मालूम है, आप तो लेने में माहिर हो। ससुरे अपने ही कौन से दिए दे रहे हैं, बस ले ही तो रहे हैं। सोम बाजार से घर जाते-जाते आखिरी चोट टमाटर वाले ने कर दी। नामुराद देसी टमाटर बीस रुपये किलो और विदेशी दस रुपये किलो दे रहा था। उससे चुहल करने का मन हुआ तो कह डाला कि गुरु टमाटर विदेश से मंगा रहे हो और अपने देश के टमाटर से मंहगा बेच रहे हो। उसने अपनी तीखी नजर मेरी ओर फेरी और मुझे भीतर तक भेदते हुए बोला इस दस रुपये वाले टमाटर में जो विदेशी खाद डली है, उससे तुम्हारी आंतें जल जाएंगी। मेरी बोलती बंद थी। घर लौटते हुए पेट में मरोड़े उठ रहे थे… हे ओबामा!!!

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh