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‘रामभक्त’ हिंदी

फाकामस्ती
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बृहस्पतिवार को अयोध्या मसले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की बेंच का फैसला आया तो आम लोगों को सब्र का पाठ पढ़ाने वाले अखबारों के दफ्तर में ‘जय श्री राम’ का नारा भी लगा और कुछ जगहों पर मिठाइयां भी बंटी। अब कहा जा सकता है कि यह भी (हिंदू) ‘आस्था’ का सवाल है और क्या अखबारकर्मियों की आस्था नहीं होती? जरूर होती है, लेकिन सवाल उसकी अभिव्यक्ति का है। और वो जब भीतर होती है तो बाहर भी कई तरीके से होती है। मेरा मंतव्य भीतरी अभिव्यक्ति से कम और बाहरी से ज्यादा है। मैं अपनी तरफ से कुछ नहीं कहूंगा, केवल इस फैसले पर अखबारों में छपी खबरों के चयन, उनकी भाषा व शीर्षकों का थोड़ा हिसाब रखूंगा और फिर यह सवाल पूछूंगा- क्या हिंदी अखबारों के पाठक व पत्रकार, अंग्रेजी अखबारों के पाठकों व पत्रकारों से ज्यादा ‘रामभक्त’ व ‘आस्थावान’ हैं? (यहां मैं ‘सांप्रदायिक’ लिख दूंगा तो जाहिर है, सूली पर चढ़ा दिया जाऊंगा)। या अंग्रेजी के अखबार ‘छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी’ हैं?
दिल्ली में बंटे हिंदी के देश के पांच प्रमुख अखबारों की कोर्ट के फैसले की मुख्य खबर की हैडिंग है- ‘विराजमान रहेंगे रामलला’, ‘रामलला रहेंगे विराजमान’, ‘जहां रामलला विराजमान वही जन्मस्थान’, ‘वहीं रहेंगे राम लला’ और ‘भगवान को मिली भूमि’। ये वो पांच अखबार हैं जिनका हिंदी प्रकाशन प्रमुख है। दो अन्य प्रमुख हिंदी अखबारों (लेकिन ये बड़े अंग्रेजी अखबार समूहों का हिस्सा हैं) के शीर्षक थे- ‘किसी एक की नहीं अयोध्या’ और ‘मूर्तियां नहीं हटेंगी, जमीन बंटेगी’। दो अन्य अखबार जो किसी समय बुलंदी पर थे, लेकिन अब गुमनाम हैं (शायद रामभक्त नहीं हैं, इसलिए) के शीर्षक थे- ‘तीन हिस्सों में बटेंगी विवादित भूमि’ और ‘तीन बराबर हिस्सों में बंटे विवादित भूमि’। दो अन्य अखबार भी देखे, लेकिन ये मूलतः बिजनेस दैनिक हैं। उनके शीर्षक देखिए- ‘बंटी जमीन, एक रहे राम और रहीम’ और ‘अयोध्या में राम भी इस्लाम भी’। माने न माने, सौ फीसदी मामले में अखबार की प्रकृति से शीर्षक मेल खाता है।
अब अंग्रेजी को देखें- अंग्रेजी के देश के सबसे बड़े अखबार की हेडिंग थी- 2 Parts To Hindus, 1 Part To Muslims, दिल्ली में उसके सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी की थी- Disputed site is Ram birthplace: HC, हलचल पैदा करने वाले एक अन्य अखबार की थी- Ram stays, split Ayodhya land: HC, दक्षिण के सबसे बड़े अंग्रेजी अखबार की थी- High Court awards two-thirds of disputed Ayodhya site to Hindu parties, one-third to Sunni Waqf Board, देश के सबसे बड़े बिजनेस दैनिक की थी- LAND DIVIDED, INDIA UNITED, दिल्ली के सबसे बड़े टैबलॉयड दैनिक की थी- A Judgment of Faith और मुंबई के एक प्रमुख अंग्रेजी दैनिक की थी- In 2-1 verdict, HC splits Ayodhya land 3 ways. Country stays calm.
इतना ही नहीं, खबरों की भाषा में भी जमीन-आसमान का अंतर था। बानगी देखें- हिंदी के सबसे बड़े अखबार की पहली लाइन थी- ‘रामलला जहां हैं, वहीं विराजमान रहेंगे। यह उनका जन्मस्थान है।‘ वहीं अंग्रेजी के सबसे बड़े अखबार की पहली लाइन थी- Sixty years after Ram’s idols were forcibly installed under the central dome of the Babri Masjid, the Allahabad high court, in a judgment running into about 12,000 pages, paved the way on Thursday for the construction of a temple at that very spot which is believed by many Hindus to be his birthplace. अंतर खबरों के चयन में भी था। हिंदी के ज्यादातर अखबारों ने फैसले के नकारात्मक पहलुओं, कमजोरियों पर कोई चर्चा-टिप्पणी नहीं छापी। उलटे दो अखबरों ने तो पहले पन्ने पर विशेष संपादकीय छापे। एक का शीर्षक था- ‘आस्था के लिए न्याय’ और दूसरे का- ‘भए प्रगट कपाला’। वहीं अंग्रेजी अखबारों ने दोनों पहलू लिए और असहज विषयों को भी उठाया- जैसे कि क्या भगवान को प्रतिवादी बनाया जा सकता है या फिर जिस एएसआई रिपोर्ट को फैसले का आधार बनाया गया, उसी में कितनी खामियां थीं, वगैरह-वगैरह।
यह अखबारी अंतर समझ के बाहर है। क्या माध्यम की भाषा भी धार्मिकता तय करती है?

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