मंथन- A Review
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घिसी पिटी राहों पे चलना मेरा शौक नहीं
चूहे बिल्ली की दौड़ दौड़ना मेरा शौक नहीं
जिस मंजिल पर लगी हों सब की निगाहें
उसे अपनी मंजिल बनाना मेरा शौक नहीं.
लोग कहते है-
काँटों पर चलकर नहीं देखा तो क्या देखा
अंगारों पर जलकर नहीं देखा तो क्या देखा
पर ए दुनिया वालों-
एक ही मंजिल पर भीड़ बढाने के लिए
बेवजह अपने पाँव दुखाना मेरा शौक नहीं.
जानती हूँ अपने शौक को, गर्व है अपने हुनर
लाख भागे दुनिया, हथियाने औरों का हुनर
मैं हूँ ऐसा पारस गुमनाम और छुपा हुआ
पत्थर को पत्थर समझना मेरा शौक नहीं.
जिस दिशा भी चली उसे ही राह बना लिया
जहाँ भी डाला डेरा मंजिल को वहीँ पा लिया
भटके भले ही दुनिया बेहतर की चाह में
पर जिंदगी भर भटकना मेरा शौक नहीं.
-उषा तनेजा ‘उत्सव’
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