हिंदी ब्लॉगिंग ‘हिंग्लिश’ स्वरूप को अपना रही है। क्या यह हिंदी के वास्तविक रंग-ढंग को बिगाड़ेगा या इससे हिंदी को व्यापक स्वीकार्यता मिलेगी? Jagran Contest
मंथन- A Review
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हिंगलिश एक सकारात्मक व विस्तृत सोच
ब्लॉगिंग अर्थात ‘चिट्ठा लिखना’ एक नवीनतम साहित्यिक विधा का नामकरण है जिसमें परम्परागत नियमों से परे दिल व दिमाग में उमड़ते भावों को चित्रित किया जाता है| उस चित्रण की रेखाओं की बनावट वही सबसे अधिक उपयुक्त हो सकती है जिसमें सम्प्रेषण सार्थक हो अर्थात जिनके लिए उन भावों को उकेरा गया है वे उन भावों को सहज रूप में ग्रहण कर सकें| इस चित्रण को ही भाषा कहा जाता है| इतिहास पर नज़र डाली जाये तो यही सामने आता है कि भारतीय भाषा विश्व की अन्य सभी भाषाओँ से अधिक समृद्ध भाषा है| क्यों? क्योंकि भारत का भूगोल व राजनीति आदिकाल से पृथ्वी ग्रह की समूची मानव जाति के लिए आकर्षण रही है| यहाँ पृथ्वी के अन्य भागों से जिन जिन लोगों का चाहे किसी भी प्रयोजन से आना हुआ वे अपने साथ अपनी भाषा या बोलियाँ भी लेकर आए| वे यहाँ आकर रच-बस गए और उनकी भाषा भी भारतीय भाषाओं में आत्मसात होती गई| यही कारण है कि “सर्वश्रेष्ठ भाषा उसी को कहा जाता है जो किसी तालाब में रुके हुए जल जैसी न हो जो अल्पकाल के बाद सड़ने लगे बल्कि भाषा एक बहते हुए दरिया की तरह हो जो नयी धाराओं को अपने साथ मिलाकर आगे बढती रहे व सदा निर्मल, स्वच्छ तथा सुखदायनी बनी रहे| केवल इतना ही नहीं, उस दरिया का एक लक्ष्य भी होता है और वह है- महासागर| उसी प्रकार एक सर्वश्रेष्ठ भाषा का लक्ष्य केवल अपना देश या समाज न होकर ब्रह्माण्ड की सम्पूर्ण मानव जाति होना चाहिए”- उषा तनेजा ‘उत्सव’| इस पूरे एक महीने में जागरण जंक्शन प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए मैंने जितना भी अध्ययन किया, विचार पढ़े, अनुभव पढ़े, आज उन सब का मंथन कर रही हूँ| इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए तो यह अंतिम तिथि है, परन्तु, वास्तव में यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो प्रतिदिन नए सिरे से शुरू होती है और कभी भी समाप्त नहीं होती और न ही होगी| कल तक तो लग रहा था कि इस विषय पर और कितना लिखा जा सकता है, पर अब महसूस हो रहा है कि हिंदी भाषा का प्रसार व गहराई अनुमान से परे है| जितना आगे बढ़ते जायेंगें, नए नए द्वार खुलते जायेंगें| ‘हिंगलिश स्वरूप’ हिंदी भाषा के नए रूप को नाम दिया गया है क्योंकि हिंदी भाषा में इंग्लिश के काफी अधिक शब्द प्रचलन में आ गए हैं| यह बदलाव कोई नया नहीं है| इस से पहले भी जब भारत में वेदों की सरंचना हुई तो संस्कृत भाषा में हुई थी| उसके बाद वही भाषा अनगिनत नामों जैसे प्राकृत, अपभ्रंश, बृज, अवधि, खडी बोली तथा और भी बहुत से रूप आदि में अवतरित होती रही है| साथ ही भारत में जो विदेशी आये चाहे वे राज्य लोभी रहे हों, चाहे व्यापारी रहे हों, चाहे धन संपदा लूटने आये हों, सभी अपने साथ अपनी अपनी अरबी, उर्दू, फारसी आदि भाषाएँ भी लेकर आये| भारतीय भाषाओं ने ‘अतिथि देवो भवः’ वाली भावना से उन्हें स्वीकार किया| आज की हिंदी भाषा पर इंग्लिश का प्रभाव अधिक है तो उसका फल सकारात्मक ही होगा| वास्तव में आज प्राद्योगिकी का युग है| आदान-प्रदान का युग है| हम में जो अधिक शुद्धतावादी हैं उन्हें थोड़ा उदार हृदय होना पड़ेगा| अकेले रह कर विकास की कल्पना करना मूर्खता ही होगी| अंग्रेजी के प्रति अपनी सोच को बदलना होगा| इसी सकारात्मक व विस्तृत सोच की वजह से ही हम विश्व पटल पर अग्रणी हस्ताक्षर करने योग्य हो रहे हैं|
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