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केजरी कुछ भी करें, उनकी मर्जी

vakrokti
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दिल्ली के पूर्व सीएम और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को पटियाला कोर्ट ने नितिन गडकरी अवमानना केस में बेल बांड न भरने के बाद तिहाड़ जेल भेज दिया। लोकसभा चुनाव में हार के बाद केजरीवाल के इस कदम से नई चर्चा छिड़ गई है। मीडिया, बुद्घिजीवियों व सोशल साइटों पर ज्यादातर का यही मानना है कि यह केजरीवाल का नया ‘नाटक’ है। दिल्ली में विधानसभा चुनाव की आहट के बीच इस कदम के अपने ही मायने हैं।
दरअसल, नितिन गडकरी ने केजरीवाल पर इसी साल जनवरी में आपराधिक मानहानि का केस किया था। आपराधिक मानहानि के केस में केजरीवाल को कोर्ट में हाजिर होने का आदेश दिया गया था, लेकिन केजरीवाल ने चुनाव प्रचार में व्यस्त होने की बात कह कोर्ट से समय मांगा था। 21 मई को मामले की सुनवाई के दौरान पटियाला हाउस कोर्ट ने केजरीवाल को जेल भेजने से पहले उनके सामने जमानत लेने का रास्ता भी रखा था। कोर्ट ने केजरीवाल को 10 हजार रूपये का मुचलका भरकर जमानत लेने को कहा था, लेकिन केजरीवाल ने मुचलका भरने और जमानत लेने से इंकार कर दिया। इस पर कोर्ट ने केजरीवाल को 23 मई तक की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। 23 मई को सुनवाई के दौरान अरविंद फिर अपनी बात पर अड़ रहे, इसलिए उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। इससे पूर्व केजरीवाल को जेल भेजने के खिलाफ आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने तिहाड़ के बाहर जमकर हंगामा किया थ मजबूरन पुलिस ने तिहाड़ के आसपास धारा 144 लगा दी। इस तरह जो भी पूरा घटनाक्रम हुआ, उससे अब एक बार फिर केजरवाल खबरों में हैं।
लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद हर दिन की घटना देखें तो यह साफ पता चल जाएगा कि अब केजरीवाल की वास्तविक मंशा क्या है। 16 मई की दोपहर तक ‘आप’ के अरमान धूल में मिल चुके थे। लगभग 100 सीटों का सपना पाले ‘आप’ को मात्र 4 सीटों से ही संतोष करना पड़ा, जबकि 434 उम्मीदवारों में से 421 की जमानत जब्त हो गई। 17 मई तक पार्टी के प्रमुख नेता हार की सही वजह बताने को सोचते रहे। फिर उन्हें दिल्ली में सरकार से इस्तीफा देने की गलती महसूस हुई। इसी बीच दिल्ली में विधानसभा चुनाव की आहट हुई। 18 व 19 मई दो दिनों तक ‘आप’ के नेता कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली में फिर सरकार बनाने की कवायद करते रहे, लेकिन चुनाव में स्वयं करारी हार से चिंतित कांग्रेस ने ‘पहले वाली गलती’ न दोहराने में ही अपनी बेहतरी समझी। दिल्ली विधानसभा चुनाव को तय मान ‘आप’ ने 20 मई को नई रणनीति बनाई। इसके बाद 21 मई को गडकरी अवमानना मामले में केजरीवाल ने बेल बांड भरने से इंकार कर दिया। उनका गिरफ्तार होना पूरी तरह सुनियोजित था। अरविंद की रात तिहाड़ में ही बीती। 22 मई की सुबह उठते ही उन्होंने दिल्ली के सभी बड़े समाचार पत्रों की मांग की। वह शायद ‘कवरेज’ देखने को उत्सुक थे।
अब देखिए, फेसबुक पर लोगों ने क्या लिखा। बंगलुरू के प्रदीप अपने वाल पर लिखते हैं, ‘चुनाव में अधिकतर उम्मीदवारों की जमानत जब्त होने से सदमे में डूबे केजरीवाल को ‘जमानत’ शब्द से नफरत-सी हो गई है।’ नई दिल्ली के संजय कहते हैं, ‘अदालत की मान हानि कर और अपने आप को ज्यादा दिखा कर कोई होशियार नहीं बन सकता। असली बात तो यह है कि ‘बाहर’ हार की जो चक-चक सुनने को मिल रही थी, उससे तो अच्छा है कि कुछ दिन ‘अंदर’ रहकर आगे की प्लॅनिंग कर लेंगे। 3 या 4 माह बाद आखिर दिल्ली के साथ हरियाणा विधानसभा का चुनाव होना है।’ वहीं मेरठ के एस.एन. योगप्रस्थी का मानना है, ‘आम आदमी पार्टी ने जल्दी ही अपने नेतृत्व को नहीं बदला, तो फिर इस पार्टी का हर दूसरे दिन राष्ट्रीय मुद्ïदा केजरी का कानून तोडऩा, माफी मांगना, जिसको मर्जी आए भ्रष्ट कहना और कोर्ट की अवमानना करना, सडक़ पर लेट जाना, जेल जाने के घटिया अवसर निकालना और जनता द्वारा जाहिर किए जाने वाले मतों में सेंध लगा कर बहुमत को निष्क्रिय करना ही रह जाएगा। इनके लिये देश की कीमत अपनी नौटंकी को चमकाने से ज्यादा कुछ नहीं।’
हालांकि बहुतेरे केजरीवाल का बचाव करते भी दिखते हैं। पंजाब के विपिन कुमार नामदेव सवाल करते हैं, ‘सारे नेता एक-दूसरे के खिलाफ आरोप लगाते हैं लेकिन मुकदमा तो कोई नहीं करता था। केजरीवाल के खिलाफ ही मुकदमा क्यों हुआ?’ इलाहाबाद के सुमीत द्विवेदी भी इसी तरह का सवाल उठाते हैं, ‘पिछले साल गडकरी ने दिग्विजय सिंह पर भी मानहानि मुकदमा किया था, पर उस मुकदमे में कोई सुनवाई हुई, तो फिर अरविंद मामले में तुरंत कार्रवाई क्यों की गई? पूरे देश में मोदी चुनाव आयोग से लेकर कितने नेताओं को भ्रष्ट कहते रहे, पर कोई केस नहीं हुआ। जब उमा भारती को हुबली कोर्ट ने अगस्त 2004 में दंगा उकसाने के कारण (छह लोग मरे) वारंट पर जेल भेजा था, तो भाजपा ने बंगलुरू में आंदोलन किया था कि जब तक उमा की रिहाई नहीं होगी सत्याग्रह जारी रहेगा। इसमें वाजपेयी और आडवाणी भी शामिल हुए थे, लेकिन अरविंद मामले में यह ड्रामा हो गया उसी भाजपा के लिए।’ इसी तरह दिल्ली के अश्वनी पाठक भी कहते हैं, ‘आज तक कांग्रेसी नेता और बीजेपी ने इतना गलत बयान दिया है फिर उन लोगों को तो सजा नहीं मिली। सब राजनीति है। दरअसल, दोनों पार्टियां मिलकर केजरीवाल को उठने नहीं देना चाहतीं।’
इन सबके बीच दिल्ली के भूपेंदर की बात भी गौर करने लायक है, ‘लोग शायद भूल गए हैं कि दिल्ली में केजरीवाल की 19 दिन की सरकार के दौरान सभी ऑफिसों में कर्मचारी ठीक दस बजे तक पहुंच जाते थे। उस समय भ्रष्टाचारियों के मन में एक डर था कि कहीं उनकी घूस लेने की शिकायत न हो जाए, क्योंकि केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक हेल्पलाइन शुरू की थी। आखिर केजरीवाल को दिल्लीवासियों को 20,000 लीटर पानी मुफ्त में देने का क्या फायदा था? बिजली बिल कम किया, 6000 ऑटो परमिट दिए, नर्सरी एडमिशन पर रोक लगाई, बिजली कंपनियों के खिलाफ ऑडिट करवाया, यह सब किसके लिए था? आज सब उनकी खिलाफत कर रहे हैं। दरअसल, देश के लोग ही ईमानदार व्यक्ति को नहीं बर्दाश्त करते।’
खैर, कुछ भी हो लेकिन लोकसभा चुनाव में ज्यादातर प्रमुख पार्टियों के सफाए के बीच केजरीवाल के इस कदम से हर तरफ ‘मोदी चर्चा’ पर ब्रेक लगा है। माना यही जा रहा है कि केजरीवाल लोगों का ध्यान खींचना जानते हैं। फिलहाल, दिल्ली विधानसभा के चुनाव में आम आदमी पार्टी के लिए पिछली बार की तरह इस बार जीत हासिल करना आसान नहीं है। मुद्ïदे पुराने हो चुके हैं, अब तरीके नई चाहिए।

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