Menu
blogid : 3028 postid : 738429

भाजपा को बहुमत न मिलने का डर

vakrokti
vakrokti
  • 33 Posts
  • 117 Comments

लोकसभा चुनाव 2014 में अब सिर्फ दो चरणों की वोटिंग बाकी है। अगला चरण 7 मई को है, जबकि अंतिम चरण 12 मई को। मतदान की प्रक्रिया पूरी होने के बाद 16 मई को चुनाव के नतीजे भी जा जाएंगे। समय जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, इस बात को लेकर अटकलें तेज होती जा रही हैं कि दिल्ली में अगली सरकार किसकी बनेगी? हाल ही में प्रियंका गांधी ने जब यह कहा कि भाजपा को फिलहाल बहुमत नहीं मिलने जा रहा, तो इस बात को लेकर पहले से चली आ रही माथापच्ची एक बार फिर शुरू हो गई कि आखिर तब क्या होगा? भाजपा के अंदरखाने से भी यह खबर है कि कहीं न कहीं पार्टी को भी यह डर सता रहा है कि सरकार बनाने के लिए वह 272 का आंकड़ा शायद न छू पाए और फिर वही दिल्ली वाला हाल हो जाए। यानी मात्र तीन सीट कम रहने पर भी सरकार बन पाने की मजबूरी। कहते हैं कि राजनीति में सब कुछ संभव है, इसको देखते हुए कांग्रेस ही नहीं, भाजपा ने भी विपक्ष में बैठने की रणनीति अभी से बनानी शुरू कर दी है। वहीं इसका अहसास कर अन्य पार्टियां भी जोड़-तोड़ की रणनीतियां बनाने लगी हैं।
बात सबसे पहले करते हैं उस पार्टी की, जिसकी ‘कथित लहर’ है। सर्वें के नतीजों ने तो फिलहाल एकदम से घोषित कर दिया है कि अगली सरकार भाजपा की ही बननी है और नई सरकार का नेतृत्व नरेंद्र मोदी करने वाले हैं। भाजपाइयों की इस खुशफहमी के बीच उनमें एक डर यह भी है कि कहीं इस बार भी 2004 के नतीजों की पुनरावृत्ति न देखने को मिल जाए। दस साल पूर्व हुए 2004 के चुनाव में भी भाजपा को सर्वेक्षणों में टॉप पर दिखाया गया था, लेकिन उसका सपना पूरा नहीं हुआ। सरकार कांग्रेस के नेतृत्व में संप्रग की बनी। यह उसका पहला कार्यकाल था। फिर भाजपा को 2009 के लोकसभा चुनाव में बाजी पलटने की उम्मीद थी और लाल कृष्ण आडवाणी ने तो स्वयं को प्रधानमंत्री भी मान लिया था, लेकिन नतीजे आने के बाद उसे मुंह की खानी पड़ी। अगर मान लें कि भाजपा का सपना चकनाचूर होने की कहानी की पुनरावृत्ति 2014 में भी हुई, तो ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि मोदी क्या करेंगे? ऐसी स्थिति में मोदी के सामने दो विकल्प हो सकते हैं। एक तो वह गुजरात में बतौर मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा करें, दूसरा विपक्ष में बैठें। भाजपा सुषमा स्वराज के बजाए तेज-तर्रार मोदी को विपक्ष का नेता बनाना चाहेगी। दूसरी ओर विपक्षी पार्टियां इस मुद्ïदे को इस समय जोर-शोर से उठा रही हैं कि चुनाव में जीत मिलने के बाद भाजपा नरेंद्र मोदी की जगह राजनाथ सिंह को प्रधानमंत्री बना सकती है। इससे पार्टी को बार-बार सफाई देनी पड़ रही है कि चाहे कैसी भी परिस्थिति आ जाए, प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी का ही नाम तय है। साथ ही वह यह भी कहने से नहीं चूक रही कि भाजपा गठबंधन को बहुमत न मिलने पर अगर दूसरी पार्टियों से समर्थन लेने की नौबत आई, तब भी मोदी ही प्रधानमंत्री होंगे। हालांकि तमाम डर के बावजूद चर्चा यह भी गर्म है कि मोदी की कैबिनेट अभी से तय है। मोदी की ओर से एक थिंक टैंक को नियुक्त किया गया है, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रहे ब्यूरोक्रेट्ïस को शामिल किया गया है। ये ब्यूरोक्रेट यह बता रहे हैं कि नई सरकार को किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिए और उसे क्या-क्या करना चाहिए? साथ ही यह भी माना जा रहा है कि नई सरकार के बाद भाजपा के घोषणा पत्र में शामिल बातों को पूरा करने के लिए इन ब्यूरोक्रेट्ïस को पूर्ण अधिकार और शक्तियां दी जाएंगी।
अब बात करते हैं सत्तासीन पार्टी कांग्रेस की। इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की कमान फिलहाल चौथी पीढ़ी राहुल गांधी के हाथ में हैं। पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी के बाद एक बार फिर कांग्रेस ने गांधी परिवार के राहुल गांधी को प्रोजेक्ट किया है। दस साल से केंद्र में काबिज सत्तासीन पार्टी कांग्रेस को इस बार परिवर्तन का डर है, वहीं भ्रष्टाचार व महंगाई जैसे मुद्ïदे भी उसके काफी खिलाफ जा रहे हैं। इस चुनाव में हार का अहसास कर राहुल गांधी ने अभी से अपनी रणनीति बदल दी है। बीते दिनों हुई अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में शामिल कुछ वरिष्ठ कांग्रेसियों ने इस बात का संकेत दिया है कि वह 2014 के लिए नहीं, 2019 के लिए माथापच्ची कर रहे हैं। उनकी रणनीति यह भी है कि अगर भाजपा को बहुमत नहीं मिला, तो तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने के लिए समर्थन दिया जाए। यह सर्वविदित है कि जब भी तीसरे मोर्च की सरकार बनी, मध्यावधि चुनाव हुए और कांग्रेस फिर सत्ता में लौटी। आपातकाल के बाद 1977 में जनता पार्टी की सरकार को कांग्रेस ने इसी रणनीति के तहत ध्वस्त किया था। विवाद में फंसाकर पहले मोरारजी देसाई को ‘शहीद’ किया, फिर चौधरी चरण सिंह को समर्थन देकर उनकी सरकार बनवाई। बाद में इंदिरा ने चरण सिंह से समर्थन वापस लेकर उनकी सरकार गिरा दी। 1979 में दोबारा चुनाव हुए तो कांग्रेस ने शानदार जीत हासिल की। कांग्रेस की कुछ ऐसी ही रणनीति है कि अगर वह 2014 में हारी और भाजपा को बहुमत नहीं मिला, तो तीसरे मोर्चे की सरकार बनवाएगी। फिर बीच में समर्थन वापस लेकर मध्यावधि चुनाव के जरिए वापस लौटना चाहेगी। वहीं अगर भाजपा की सरकार बनती है, तो कांग्रेस के सामने यह विकल्प होगा कि राहुल गांधी विपक्ष में बैठें। पांच साल वह भाजपा सरकार के प्रति जन असंतोष की जमीन तैयार करें और देश की जनता को यह विश्वास दिलाएं कि वह ही एकमात्र मजबूत विकल्प हैं।
फिलहाल, सारे कयासों पर 16 मई को स्वयं ही विराम लग जाएगा। चुनाव के नतीजे से जहां नई सरकार का रास्ता साफ हो जाएगा, वहीं कुछ पार्टियां के लिए यह सबक भी साबित होगा। अभी तक के हुए चुनावों में रिकॉर्ड मतदान ने यह भी दिखाया है कि सरकार चुनने में जनता ने बेहद दिलचस्पी दिखाई है और वह नई सरकार को उम्मीद भरी नजरों से देख रही है। इसका सीधा-सा अर्थ यह भी है अगर सरकार मनमानी भरे फैसले लेती है, तो उसे अगले चुनाव में इसका खामियाजा अवश्य भुगतना पड़ेगा।

Deputy News Editor
News Bench
Ecnon House, G-22, Sector-3, Noida, 201301
Web: newsbench.in

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh