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मगरूर इंसान खुदा को नकारता फिरे,
मंदिर मस्जिद में आडंबर खूब करें,
सोचे मंदिर-मस्जिद से बाहर वो क्या देख रहा फिर जो चाहे करें,
ज़माने में अपनी इंसानियत का ढ़ोंग खूब करें,
और ज़माने से छिपकर इंसानियत का कत्ल रोज़ करें,
कोड़ी की धूप-दीप, रोज़े और व्रत से अपने पापों का हिसाब करें,
बड़ा समझे खुद को इतना के खुदा से सौदा करें,
कर दे हमारी पहले ख्वाहिश पूरी फिर खुदा को हम इतना दान करें,
है नादान तू न जाने के तुझे वो कर्मो से तौला करें,
तू चाहे जितने नकाब अपने चहरे पर रखा करें,
पर वो तो तेरी रूह को देखा करें,
कोशिश करें तू चाहे जितनी पर न है पर्दा जो रूह पर नकाब करें,
डूबा है इस कदर तू पापो में के पाक नदियाँ भी अब न धोया उसे करें,
साथी है वो उसका जो इंसानियत से इबादत करें,
सदियों से फन फैलाए दुष्टो को भी वो पलभर में खाक करें,
इधर-उधर क्या ढूंढे उसको के वो तो कण कण में वास करें,
इंसानियत धर्म को बस वो स्वीकार करें,
इंसानियत नाम की पूजा को बस वो ग्रहण करें।
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