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विशवास सदगुरु की कृपा से प्राप्त होता है !

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विशवास सदगुरु की कृपा से प्राप्त होता है और टिकता भी इन्हीं की कृपा से है वर्ना अकिंचन जीव की दशा तो यह है की काम हो गया तो विशवास है न हुआ तो डावांडोल है. विशवास का महल प्रभु प्रेम की सुदृढ़ नींव पर ही टिक सकता है, निहित स्वार्थों की रेत पर नहीं. अच्छे समय  में तो विशवास बना रहता है विपरीत  परिस्थितियों में इसका बना रहना जरूरी है. कई बार स्थितियां ऐसी हो जाती हैं की दृढ़ विश्वासी भी असहज हो उठते हैं लेकिन यह ध्यान आते ही की की सदगुरु का मेहर भरा हाथ सिर पर है और जो कुछ भी हो रहा है वह “होनी ही है, अनहोनी नहीं’, वह हरि इच्छा में ही हो रहा है फिर चिंता भी स्वत: समाप्त हो जाती है.
हरजीत निषाद जी, संपादक : सन्त निरंकारी हिंदी पत्रिका,
मई-2012 , पेज 2

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