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चीन की लापरवाही की देन वैश्विक महामारी

Varsha P
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आज चीन की देन कोरोना महामारी विश्व में कहर बरपा रही है। ऐसे में यह पहली बार नही है, चीन का 2002 और 2003 में SARS सहित कई अन्य वायरस जनित बीमारियों का इतिहास समेटे है। चीन में 2002 में SARS (सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम) नामक बीमारी आई थी जिसने उसी साल नवंबर में WHO को एक विश्वव्यापी स्वास्थ्य खतरा घोषित करने के लिए प्रेरित किया।

 

 

21वीं सदी की इस पहली बड़ी महामारी के दौरान साल 2003 में चीनी सरकार ने इसके विरूध्द एक धर्मयुद्ध शुरू किया। इसी दौरान कुछ ही महीनों के भीतर यह श्वसन संक्रमण यूरोप, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और एशिया अथवा दो दर्जन से अधिक देशों में फैल गया। उसी साल WHO ने चीन को यह कहते हुए आगाह किया था की उसे अपने खान-पान की आदतों में परिवर्तन लाना होगा वरन् भविष्य में इस तरह का संक्रमण दोबारा पैदा हो सकता है जिसकी चीन ने अनदेखी की।

 

 

2007 के एक जर्नल लेख में, चीन के संक्रामक-रोग विशेषज्ञों ने एक अध्ययन प्रकाशित किया था जिसमें कहा गया था कि होर्सशू चमगादड़ (बड़े कान वाले विश्व कीटभक्षी चमगादड़) में SARS-CoV जैसे विषाणुओं के एक बड़े भंडार की उपस्थिति है जो दक्षिणी चीन की खाने की संस्कृति के रूप में शामिल है, को लेख में एक टाइम बोम्ब कहा गया था जिसे नजरअंदाज न किये जाने की भी हिदायत दी गई थी और नतीजतन विश्व कोरोना संक्रमण की चपेट में आ गया।

 

 

2002 में चीन सरकार ने SARS बीमारी को बड़े पैमाने पर अंधेरे में रखा था तथा इससे संबंधित सूचना को WHO से साझा करने में भी कई महीने लगा दिए थे। कुछ विशेषज्ञों की माने तो कोरोना के शुरुआती चरण के दौरान भी चीन सरकार एक बार फिर मौजूदा प्रकोप की जानकारी साझा करने के लिए अनिच्छुक थी जो वुहान के बाजार में जीवित जानवर के संपर्क के माध्यम से फैलना शुरू हुआ। अभी तक कोरोना वायरस का कोई उपचार नही है और न ही वैक्सीन तैयार की जा सकी है, शुरूआती SARS की तरह डॉक्टर लोगों के निदान के लिए लक्षणों पर ही निर्भर हैं। SARS फैलने के बाद वायरस की पहचान करने में ही वैज्ञानिकों को लगभग पांच महीने लगे।

 

 

निस्संदेह इन प्रकोपो का मुख्य कारण चीनी खान-पान में असंतुलन ही रहा है। वुहान स्थित एक वायरोलॉजिस्ट शि झेंगली ने बैट गुफाओं में दर्जनों घातक सार्स जैसे विषाणुओं की पहचान की और उन्होंने चेतावनी दी की ऐसे विषाणु वहां और भी हैं। हैरत की बात यह है की चीन हर उस चेतावनी को नजरअंदाज करता गया जो वर्तमान में सटीक साबित हुई। यदि कोरोना संक्रमण पर काबू कर भी लिया जाए तो आगे चीन कब अपनी गंभीरता सुनिश्चित करेगा यह अहम प्रश्न होगा ताकि भविष्य में विश्व ऐसी दुर्गति से बच सके।

 

 

 

 

नोट : यह लेखक के निजी विचार हैं, इसके लिए वह स्वयं उत्तरदायी हैं।

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