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क्या चीन के खिलाफ अमेरिका का नया सैन्य अड्डा बन रहा है भारत?

देश की विदेश नीति
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अमेरिका का भारत की चीन के खिलाफ खुले तौर पर मदद करना अच्छी बात है. मगर जैसा अमेरिका का इतिहास रहा है, उसे देखकर यही लगता है कि कहीं भारत अमेरिका का चीन के खिलाफ उसका नया सैन्य अड्डा तो नहीं. अमेरिका का चीन के खिलाफ हर मौके पर भारत को समर्थन करना कहीं न कहीं यही दर्शाता है.
अमेरिका ने कभी भी किसी की, बिना किसी मतलब के मदद नहीं की, चाहे वो अफगानिस्तान के खिलाफ पाकिस्तान की मदद करना हो या या इस्राइल का समर्थन हो या फिर रूस के खिलाफ क्रीमिया का समर्थन करना. हर जगह अमेरिका ने अपने विरोधियों को हराने के लिए स्थानीय देशों का उपयोग किया है.
आज के समय में चीन अमेरिका का सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी बनकर उभरा है, जिसे अमेरिका बिना भारत की मदद के दबा नहीं सकता. यही वजह है की अमेरिका भारत के साथ खुलकर सैन्य अभ्यास कर रहा है, जिसमें उसने चीन के  परंपरागत दुश्मन जापान को भी शामिल किया.

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जिस दक्षिण चीन सागर पर चीन अपना एकाधिकार दर्शाता है, वहां से अमेरिका का भी मध्य एशिया के लिए व्यापारिक मार्ग होकर गुजरता है, जो अमेरिका के व्यापार का एक बड़ा हिस्सा है. चीन अगर दक्षिण चीन सागर में मजबूत होता है, तो उससे दक्षिण एशियाई देशों के साथ-साथ भारत और अमेरिका का भी काफी नुकसान होगा.
चीन जैसे विस्तारवादी विचारधारा वाले राष्ट्र की स्थिति का मजबूत होना किसी भी देश के हित में नहीं है. चीन का इतिहास उसकी इन करतूतों से भरा पड़ा हुआ है. जिस प्रकार से चीन ने तिब्बत पर कब्ज़ा जमाया, उसी तरह से अब उसकी नज़र भूटान और भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों पर है. परन्तु भारत का भूटान के साथ डोकलाम मुद्दे पर मजबूती के साथ खड़ा रहना भारत की वर्तमान मजबूत स्थिति को दर्शाता है.
भारत का अमेरिका के साथ मिलकर चलना कई मायनों में हितकारी है, परन्तु उसे यह ध्यान रखना होगा कि अमेरिका केवल एक मित्र की तरह भारत की मदद करे न की भारत की विपरीत परिस्थितियों का लाभ उठाये.

अमेरिका का भारत की चीन के खिलाफ खुले तौर पर मदद करना अच्छी बात है. मगर जैसा अमेरिका का इतिहास रहा है, उसे देखकर यही लगता है कि कहीं भारत अमेरिका का चीन के खिलाफ उसका नया सैन्य अड्डा तो नहीं. अमेरिका का चीन के खिलाफ हर मौके पर भारत को समर्थन करना कहीं न कहीं यही दर्शाता है.

अमेरिका ने कभी भी किसी की, बिना किसी मतलब के मदद नहीं की, चाहे वो अफगानिस्तान के खिलाफ पाकिस्तान की मदद करना हो या या इस्राइल का समर्थन हो या फिर रूस के खिलाफ क्रीमिया का समर्थन करना. हर जगह अमेरिका ने अपने विरोधियों को हराने के लिए स्थानीय देशों का उपयोग किया है.

आज के समय में चीन अमेरिका का सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी बनकर उभरा है, जिसे अमेरिका बिना भारत की मदद के दबा नहीं सकता. यही वजह है की अमेरिका भारत के साथ खुलकर सैन्य अभ्यास कर रहा है, जिसमें उसने चीन के परंपरागत दुश्मन जापान को भी शामिल किया.

जिस दक्षिण चीन सागर पर चीन अपना एकाधिकार दर्शाता है, वहां से अमेरिका का भी मध्य एशिया के लिए व्यापारिक मार्ग होकर गुजरता है, जो अमेरिका के व्यापार का एक बड़ा हिस्सा है. चीन अगर दक्षिण चीन सागर में मजबूत होता है, तो उससे दक्षिण एशियाई देशों के साथ-साथ भारत और अमेरिका का भी काफी नुकसान होगा.

चीन जैसे विस्तारवादी विचारधारा वाले राष्ट्र की स्थिति का मजबूत होना किसी भी देश के हित में नहीं है. चीन का इतिहास उसकी इन करतूतों से भरा पड़ा हुआ है. जिस प्रकार से चीन ने तिब्बत पर कब्ज़ा जमाया, उसी तरह से अब उसकी नज़र भूटान और भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों पर है. परन्तु भारत का भूटान के साथ डोकलाम मुद्दे पर मजबूती के साथ खड़ा रहना भारत की वर्तमान मजबूत स्थिति को दर्शाता है.

भारत का अमेरिका के साथ मिलकर चलना कई मायनों में हितकारी है, परन्तु उसे यह ध्यान रखना होगा कि अमेरिका केवल एक मित्र की तरह भारत की मदद करे न की भारत की विपरीत परिस्थितियों का लाभ उठाये.

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