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डोकलाम को लेकर चीन और भारत की सेनायें एक-दूसरे के सामने डटी हुई हैं, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि डोकलाम सही मायने में चीन और भूटान का मुद्दा है, ना कि भारत का. भारत 1949 में भारत और भूटान के बीच हुए समझौते के तहत भूटान की सीमाओं की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और इसीलिए भारत ने डोकलाम क्षेत्र में अपनी सेनायें खड़ी की हुई हैं. 1949 में हुए समझौते के अनुसार भूटान ने भारत को अपनी विदेश नीति और रक्षा मुद्दों पर निर्णय लेने में सहयोग की बात कही और 2007 में इस समझौते को नया रूप देते हुए भूटान की विदेश नीति और रक्षा मुद्दों पर भारत की सहमति अनिवार्य कर दी गयी.
डोकलाम एक ट्राई पॉइंट है, जहाँ पर भारत, चीन और भूटान की सीमाएं मिलती हैं. चीन यहाँ पर सड़क निर्माण कर रहा है, जिस पर भूटान को आपत्ति है, क्योंकि इस सड़क के बनने से चीन-भूटान के आर्मी कैंप के काफी पास आ जायेगा, जो भूटान और भारत दोनों के लिए खतरा है. डोकलाम पर सैनिक गतिविधियां बढ़ने से सबसे ज्यादा नुकसान भारत को ही है. क्योंकि चीन डोकलाम क्षेत्र से भारत और उसके उत्तर पूर्वी राज्यों में होने वाली गतिविधियों पर नज़र रख सकता है. युद्ध की स्थिति में चीन इस क्षेत्र में अपनी सेना बढ़ाकर भारत का संपर्क उत्तर पूर्वी राज्यों से तोड़ सकता है. जिस क्षेत्र पर चीन अपना दावा कर रहा है, वहां पर भूटान भी अपना दावा करता है.
दरअसल, चीन ने १८९० की ब्रिटिश-चीन संधि का हवाला देते हुए यह कहा कि डोकलाम चीन का हिस्सा है और भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी इस संधि को मानते थे. इसके जवाब में भारत ने जुलाई २०१७ में दी हुई अपनी विज्ञप्ति में बताया कि नेहरू जी ने यह स्पस्ट किया था कि ब्रिटिश-चीन संधि केवल उत्तर में सिक्किम की सीमाओं को स्पष्ट करती है. इसमें डोकलाम का कोई विवरण नहीं है.
भूटान के राजदूत ने कहा के डोकलाम एक विवादित क्षेत्र है और भूटान का चीन के साथ एक लिखित समझौता है, जिसमें साफ़ तौर पर यह कहा गया है कि इस क्षेत्र में सीमा विवाद का निपटारा शांति और सहमति से होगा. भारत ने भी चीन के इस कदम की कड़े शब्दों में आलोचना की है और कहा कि चीन ने इस क्षेत्र में सड़क निर्माण करके इस शांति समझौते का उल्लंघन किया है जो पूर्णतया गलत है.
दूसरी तरफ चीन ने भारत के इस क्षेत्र में अपनी सेनायें भेजने को अपनी सीमा में घुसपैठ करार दिया है. भारत का खुलकर इस तरह से भूटान की सम्प्रभुता के लिए आगे आना विश्व में भारत कि स्थिति मजबूत करता है. भारत के इस कदम से भारत के मित्र राष्ट्रों को एक सकरात्मक सन्देश जायेगा, जो भारत के विश्व शक्ति बनने को और बल प्रदान करेगा.
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