Menu
blogid : 15248 postid : 580729

बोधगया ब्लास्ट पर मुस्लिम राजनीति और सम्राट अशोक महान की उन्हीं की मात्रभूमि भारत में नज़रअंदाज क्यों किया जा रहा है?

PLZ EKTA JI DON’T SHOW JHODHA-AKBAR LOVE STORY O
PLZ EKTA JI DON’T SHOW JHODHA-AKBAR LOVE STORY O
  • 12 Posts
  • 1 Comment

” विजय उसी को प्राप्त होती है जो विजयी होने का साहस करता है ”
‘महान अशोक’ के “महान वचन”/*”चाहे ‘मैं’ खाना, खाता होऊं, या ‘महल’ में
*/‘आराम’ कर रहा होऊं, चाहे ‘शयनगार’ में रहूँ या ‘उद्यान’ में, चाहे
‘बगीचे’ में ‘टहलता’ होऊ… या ‘सवारी’ पर होऊं’ या कहीं के लिए, ‘कूच’ कर
रहा होऊं / हर ‘जगह’, हर ‘समय’ ‘प्रतिवेदक’ (फरियादी) ‘प्रजा’ का हाल
मुझे ‘सुनाएँ/*” ………….. सम्राट अशोक महान……

*/

सम्राट अशोक महान से पहले या बाद में कभी कोई ऐसा राजा या सम्राट नहीं
हुआ जिसने अखंड भारत जितने बड़े भूभाग पर राज किया हो| सम्राट अशोक महँ का
काल ही भारत का सबसे स्वर्णिम काल था जब भारत विश्व गुरु था सोने की
चिड़िया था| साडी जनता खुशाल और बेदभाव रहित थी|कमाल की बात ये है की
सम्राट अशोक महान की उन्हीं की मात्रभूमि भारत में नज़रअंदाज क्यों किया
जा रहा है? क्या इसके पीछे भी वही घृणा की भावना है जो भगवान् बुद्धा,
बाबा साहब जैसे महानतम महापुरुषों की महानता को न देख पाने की इच्छा के
पीछे है|
महान सम्राट अशोक ने 273 BC to 232 BC. तक बुद्ध के विश्वबन्धुता के
शिक्षा सर्वव्यापी-सर्वग्राही सहिष्णुता का प्रबल प्रचार एशिया के साथ
पश्चिमी देशो में 84000 स्तुपो-शिलालेखों द्वारा और वाद-संवाद की
आचार-सहिंता का व्यापक प्रचार भी किया था। यदि चीन भारत को अनेक वस्तुए
भेज रहा था, तो भारत भी उसे बौद्ध धम्म द्वारा समृद्ध बना रहा था। 7-8
Century AD तक विश्व जगत में भारत की पहचान बुद्धत्तरभारत के नाम से थी
और है। जिन बातो को दोहरा रहा हूँ वह इतिहास का अंग बन चुकी है, तभी इन
सीधी-सपष्ट बातों की स्विकारोक्ति होनी ही चाहिए।
महान सम्राट अशोक के कार्यकाल के दौरान बुद्ध के महापरिनिर्वान के शरीर
“अवशेष धातुओं” को 84,000 भागों विभाजित करके 84000 हजार स्तुपो का
निर्माण किया था। और चीन देश के राजा को बुद्ध के शरीर ‘अवशेष धातु’ देकर
उन्हें स्तूप बनवाने के आदेश दिए थे। और चीन देश के सम्राट ने चीन देश
में 19 बौद्ध स्तूप बनवाकर एक स्तूप सम्राट अशोक के नाम से चीन देश के
पश्चिमी जिन वंश (Ningbo City, Zhejiang, 265-316) में बनाया था। जहा
बुद्ध के सिर के अवशेष धातु रखे है। महान सम्राट अशोक, विश्व जगत के
इतिहास में मानव कल्याणकारी राजा थे, जिसके शासन में बुद्ध के धम्मकाया
के नैतिकमूल्यों के आधार पर जपान से मिस्त्र तक बाली से लेकर यूनान तक
समता-स्वातंत्र्य-बन्धुता और न्याय का सुवर्ण युग का विशाल भवन खडा था।
नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री डॉ. अमर्त्य सेन के कथन के अनुसार
सम्राट अशोक के काल में दुनिया की अर्थव्यवस्था में भारत की भागीदारी 35%
थी। और सम्राट अशोक के काल में भारत जागतिक (ग्लोबल) महाशक्ति था। ”लेकिन
उस महान सम्राट अशोक के जयन्ती को लेकर भारत सरकार,राज्य सरकार के साथ
देश की जनता ओझल दिखाई देती है।इसका कारन क्या हो सकता है जरा सोचेंगे तो
आप खुद ही समझ सकते हैं?
महान सम्राट अशोक के समय बौद्धकालखंड के अखंडभारत का बजेट 36 करोड़ का
था, (Ref. Historical Geography of Ancient India by Sir Alexander
Cunningham)। बौद्धकालीन अखंड भारत में बुद्ध के नैतिकमूल्यों के आधार पर
जातीविहीन शील संपन्न गुणों से उच्च आदर्श विचारोका सामजिक विकास 92% था
तो आर्थिक विकास दुनिया के “दो” रुपये तो भारत का “एक” रुपया था,
सामाजिक-आर्थिक विषमता ना के बराबर। अगर बुद्ध की सामाजिक-आर्थिक निति
‘सामूहिक जीवनचर्या’ अर्थात 84000 स्तुपो और संघरामो से बौद्ध
नैतिकमुल्यों के साथ अन्य विषयों की नि:शुल्क दी जाने वाली शिक्षा,
खेतिका और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का राष्ट्रीयकरण यह सम्राट अशोक के
राज्य की सामाजिक और आर्थिक नितिया थी। अगर यह बौद्ध सामाजिक और आर्थिक
नीतिया कार्यांवित होती तो यह बजेट 1956 में 84 हजार लाख करोड़ होता, ओर
भारत के आम आदमीकी महीने कि इन्कम 7 लाख 65 हजार होती।
महान सम्राट अशोक के सान्निध्य में बुद्ध की वादसंवाद की प्रतिबद्धता की
परम्परा खुले विचार विमर्श के संवर्धन के समाधान का एशिया के उपमहाद्वीपो
और पश्चिमी देशो का संसार का प्रथम समेलन का आयोजन ई.पूर्व. तीसरी
शताब्दी में भारत में हुवा था। इस समेलन में विश्व जगत में बौद्ध
नितिमुल्लयो के सभ्य संस्कृती में व्यक्तिक अधिकारों और स्वतंत्रा के
प्रभाव के साथ पुलों-भवनों और प्राद्दोगिकी के संवर्धन की चर्चाये हुई
थी। और इस समृद्ध शक्तिशाली अखंड ‘बुद्धत्तर’ भारत के परम्परा के स्त्रोत
की गूंज अमेरिका स्थित “सयुक्त राष्ट्र संघ” में आज भी “व्यक्तिक
अधिकारों और स्वतंत्रा” पर चर्चाये होते रहती है।

महान सम्राट अशोक द्वारा उत्कृष्ट बौद्ध स्मारकों, विहारों, और संघाराम
और उनमे स्थापित की गई बुद्ध की मूर्तियों और चित्र संसार में श्रेष्टतम
कृतियों में गणना होती है। बुद्ध के शिक्षा का सांस्कृतिक क्षेत्रों के
साथ गणित और विज्ञान पर पड़े पारस्परिक प्रभावों पर विचार करते हुए यह
विद्धित होता है की संसार के पुल,भवन और प्राद्दोगिकी के संवर्धन के
निर्माण की कला का स्त्रोत बौद्ध संस्कृति की देन है। इसलिए बौद्ध सम्राट
कनिष्क (पेषावर, पाकिस्थान) ने कहा है की “वादसंवाद की प्रतिबद्धता की
परम्परा खुले विचार विमर्श, पुलों-भवनों और प्राद्दोगिकी के संवर्धन का
सीधा सबंध बौद्ध विचारो और सिद्धान्तो से है”। अर्थात बुद्ध की शिक्षा
वास्तविक मानव और राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया है। और इसकी प्रारम्भिक
प्रेरणा बुद्ध और उनके संघ के बौद्ध भिक्षुओ और भिक्षुणियो से ही मिली
है। यदि किसी को इन रचनाओं में किसी को संदेह हो तो वह व्यक्ति नितान्त
निरक्षर और उजड़ड ही होंगा।
महान सम्राट अशोक के चौमुख प्राचीन सुवर्णयुग के अखंडभारत के विकास का
आधार बुद्ध के नैतिकमूल्यों कि शिक्षा के आधुनिक भारत के प्रतिक चार
दिशाओं के सिंह और धम्म चक्र, स्वतंत्र भारत के लोकतंत्र के अखंडता के
चिरस्थाई के लिए देश के जनमानस को बुद्धत्तरभारत के चौमुख नैतिकमूल्यों
के विकासात्मक कार्यो के संस्करण की प्रेरक गाथा के प्रति बाबासाहेब डॉ.
आम्बेडकर ने अपनी सन्मान जनक कृतज्ञता प्रकट करते हुए विश्व जगत में भारत
के बौद्ध कालीन सुवर्ण युग को गौरवान्वित किया। जिसके लिए विश्व जगत
बाबासाहेब डॉ. आम्बेडकर के संघर्षमय जीवन के लिए सदेव ऋणी है।
काशी अथवा वाराणसी से लगभग 10 कि.मी. दूर स्थित सारनाथ प्रसिद्ध बौद्ध
तीर्थ है। पहले यहाँ घना वन था और मृग-विहार किया करते थे। उस समय इसका
नाम ‘ऋषिपत्तन मृगदाय’ था। ज्ञान प्राप्त करने के बाद गौतम बुद्ध ने अपना
प्रथम उपदेश यहीं पर दिया था। सम्राट अशोक के समय में यहाँ बहुत से
निर्माण-कार्य हुए। शेरों की मूर्ति वाला भारत का राजचिह्न सारनाथ के
अशोक के स्तंभ के शीर्ष से ही लिया गया है। यहाँ का ‘धमेक स्तूप’ सारनाथ
की प्राचीनता का आज भी बोध कराता है। विदेशी आक्रमणों और परस्पर की
धार्मिक खींचातानी के कारण आगे चलकर सारनाथ का महत्व कम हो गया था।
मृगदाय में सारंगनाथ महादेव की मूर्ति की स्थापना हुई और स्थान का नाम
सारनाथ पड़ गया। 11वीं शती में महमूद ग़ज़नवी ने सारनाथ पर आक्रमण किया
और यहाँ के स्मारकों को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। तत्पश्चात 1194 ई॰ में
मुहम्मद गौरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ने तो यहाँ की बचीखुची प्राय: सभी
इमारतों तथा कलाकृतियों को लगभग समाप्त ही कर दिया। केवल दो विशाल स्तूप
ही छ: शतियों तक अपने स्थान पर खड़े रहे। 1794 ई॰ में काशी-नरेश चेतसिंह
के दीवान जगतसिंह ने जगतगंज नामक वाराणसी के मुहल्ले को बनवाने के लिए एक
स्तूप की सामग्री काम में ले ली। यह स्तूप ईटों का बना था। इसका व्यास
110 फुट था। कुछ विद्वानों का कथन है कि यह अशोक द्वारा निर्मित
धर्मराजिक नामक स्तूप था। जगतसिंह ने इस स्तूप का जो उत्खनन करवाया था
उसमे इस विशाल स्तूप के अंदर से बलुवा पत्थर और संगमरमर के दो बर्तन मिले
थे जिनमें बुद्ध के अस्थि-अवशेष पाए गए थे। इन्हें गंगा में प्रवाहित कर
दिया गया। करीब ५०० ई.पू. में गौतम बुद्ध फाल्गु नदी के तट पर पहुंचे और
बोधि पेड़ के नीचे तपस्या कर्ने बैठे। तीन दिन और रात के तपस्या के बाद
उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई, जिस्के बाद से वे बुद्ध के नाम से जाने
गए। इसके बाद उन्हों ने वहां ७ हफ्ते अलग अलग जगहों पर ध्यान करते हुए
बिताया, और फिर सारनाथ जा कर धर्म का प्रचार शुरू किया। बुद्ध के
अनुयायिओं ने बाद में उस जगह पर जाना शुरू किया जहां बुद्ध ने वैशाख
महीने में पुर्णिमा के दिन ज्ञान की प्रप्ति की थी। धीरे धीरे ये जगह
बोध्गया के नाम से जाना गया और ये दिन बुद्ध पुर्णिमा के नाम से जाना
गया।

लगभग 528 ई. पू. के वैशाख (अप्रैल-मई) महीने में कपिलवस्तु के राजकुमार
गौतम ने सत्य की खोज में घर त्याग दिया। गौतम ज्ञान की खोज में निरंजना
नदी के तट पर बसे एक छोटे से गांव उरुवेला आ गए। वह इसी गांव में एक पीपल
के पेड़ के नीचे ध्यान साधना करने लगे। एक दिन वह ध्यान में लीन थे कि
गांव की ही एक लड़की सुजाता उनके लिए एक कटोरा खीर तथा शहद लेकर आई। इस
भोजन को करने के बाद गौतम पुन: ध्यान में लीन हो गए। इसके कुछ दिनों बाद
ही उनके अज्ञान का बादल छट गया और उन्हें ज्ञान की प्राप्ित हुई। अब वह
राजकुमार सिद्धार्थ या तपस्वी गौतम नहीं थे बल्कि बुद्ध थे। बुद्ध जिसे
सारी दुनिया को ज्ञान प्रदान करना था। ज्ञान प्राप्ित के बाद वे अगले सात
सप्ताह तक उरुवेला के नजदीक ही रहे और चिंतन मनन किया। इसके बाद बुद्ध
वाराणसी के निकट सारनाथ गए जहां उन्होंने अपने ज्ञान प्राप्ित की घोषणा
की। बुद्ध कुछ महीने बाद उरुवेला लौट गए। यहां उनके पांच मित्र अपने
अनुयायियों के साथ उनसे मिलने आए और उनसे दीक्षित होने की प्रार्थना की।
इन लोगों को दीक्षित करने के बाद बुद्ध राजगीर चले गए। इसके बुद्ध के
उरुवेला वापस लौटने का कोई प्रमाण नहीं मिलता है। दूसरी शताब्दी ईसा
पूर्व के बाद उरुवेला का नाम इतिहास के पन्नों में खो जाता है। इसके बाद
यह गांव सम्बोधि, वैजरसना या महाबोधि नामों से जाना जाने लगा। बोधगया
शब्द का उल्लेख 18 वीं शताब्दी से मिलने लगता है।

विश्वास किया जाता है कि महाबोधि मंदिर में स्थापित बुद्ध की मूर्त्ति
संबंध स्वयं बुद्ध से है। कहा जाता है कि जब इस मंदिर का निर्माण किया जा
रहा था तो इसमें बुद्ध की एक मूर्त्ति स्थापित करने का भी निर्णय लिया
गया था। लेकिन लंबे समय तक किसी ऐसे शिल्पकार को खोजा नहीं जा सका जो
बुद्ध की आकर्षक मूर्त्ति बना सके। सहसा एक दिन एक व्यक्ित आया और उसे
मूर्त्ति बनाने की इच्छा जाहिर की। लेकिन इसके लिए उसने कुछ शर्त्तें भी
रखीं। उसकी शर्त्त थी कि उसे पत्थर का एक स्तम्भ तथा एक लैम्प दिया जाए।
उसकी एक और शर्त्त यह भी थी इसके लिए उसे छ: महीने का समय दिया जाए तथा
समय से पहले कोई मंदिर का दरवाजा न खोले। सभी शर्त्तें मान ली गई लेकिन
व्यग्र गांववासियों ने तय समय से चार दिन पहले ही मंदिर के दरवाजे को खोल
दिया। मंदिर के अंदर एक बहुत ही सुंदर मूर्त्ति थी जिसका हर अंग आकर्षक
था सिवाय छाती के। मूर्त्ति का छाती वाला भाग अभी पूर्ण रुप से तराशा
नहीं गया था। कुछ समय बाद एक बौद्ध भिक्षु मंदिर के अंदर रहने लगा। एक
बार बुद्ध उसके सपने में आए और बोले कि उन्होंने ही मूर्त्ति का निर्माण
किया था। बुद्ध की यह मूर्त्ति बौद्ध जगत में सर्वाधिक प्रतिष्ठा प्राप्त
मूर्त्ति है। नालन्दा और विक्रमशिला के मंदिरों में भी इसी मूर्त्ति की
प्रतिकृति को स्थापित किया गया है। इस मंदिर को यूनेस्को ने २००२ में
वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया था। बुद्ध के ज्ञान प्रप्ति के २५० साल
बाद राजा अशोक बोध्गया गए। माना जाता है कि उन्होंने महाबोधि मन्दिर का
निर्माण कराया। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि पह्ली शताब्दी में इस
मन्दिर का निर्माण कराया गया या उस्की मरम्मत कराई गई।

हिन्दुस्तान में बौद्ध धर्म के पतन के साथ साथ इस मन्दिर को लोग भूल गए
थे और ये मन्दिर धूल और मिट्टी मंे दब गया था। १९वीं सदी में Sir
Alexander Cunningham ने इस मन्दिर की मरम्मत कराई। १८८३ में उन्हों ने
इस जगह की खुदाई की और काफी मरम्मत के बाद बोधगया को अपने पुराने शानदार
अवस्था में लाया गया।
विश्व को सत्य, अहिंसा और करूणा का संदेश देने वाले भगवान बुद्ध का
बोधगया स्थित मंदिर रविवार सुबह धमाकों से दहल उठा। आतंकियों ने 9
सिलसिलेवार बम धमाके किए। 4 ब्लास्ट मंदिर परिसर में ही हुए। बोधिवृक्ष
के पास पहला ब्लास्ट हुआ। इन विस्फोटों में दो विदेशियों (एक म्यांमार व
एक तिब्बती) समेत पांच लोग घायल हो गए। 14 – 15 जून 1947 को दिल्ली में
आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में हिन्दुस्थान विभाजन का
प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था कि गांधी ने वहां पहुँच कर प्रस्ताव का
समर्थन कराया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं कहा था कि देश का बटवारा
उनकी लाश पर होगा। देश का साम्प्रदायिक आधार पर विभाजन हुआ, मुसलमानों का
पाकिस्तान और हिन्दुओं का भारत, तो जिन्ना ने सम्पूर्ण साम्प्रदायिक
जनसंख्या के स्थानांतरण की बात रखी, जिसे गांधी और नेहरू ने अस्वीकार कर
दिया। नास्तिक नेहरू ने हिन्दू विद्वेषवश भारत को हिन्दू राष्ट्र न बनाकर
सेक्यूलर राष्ट्र बना दिया। विभाजन के पश्चात भारत में कुल 3 करोड़
मुस्लिम जनसंख्या थी, जो आज बढ़कर 23 करोड़ हो गयी है, दूसरी ओर
पाकिस्तान में हिन्दुओं की जनसंख्या 21 प्रतिशत थी, जो अब घटकर 1.4
प्रतिशत रह गयी है। तुर्क और मुगलों की प्रापर्टी की सुरक्षा व्यवस्था के
लिए वफ्फ तैयार किया गया और और उनको पाकिस्तान में प्रापर्टी वफ्फ के
द्वारा सौपी गयी और कमी समझने पर उनकी जमीन का पेमेन्ट भी किया गया।
मुसलमानों के हिस्से की जमीन पाकिस्तान में चली गयी और वफ्फ के द्वारा
मुसलमानों को सभी सुविधाऐं दी गयी, परन्तु पाकिस्तान से भारत आने वाले
हिन्दुओं के लिये कुछ नहीं किया गया। आखिर ऐसा विद्वेष हिन्दुओं के साथ
क्यों किया गया और यह विद्वेष आज भी जारी क्यों है ! जो मुसलमान
पाकिस्तान चले गये उनकी संपत्ति की खातिर सरकार फिर ऐसा कानून बनाना
चाहती है कि वह संपत्ति उन पर पहुँच जाये। मुगलकाल में हिन्दुओं के लिए
नियम अलग और मुस्लिमों के लिए अलग होता था, आज भी वह नियम लागू है, जब
कोई हिन्दू मेला या तीर्थयात्रा होती है तो टैक्स या किराया बढ़ा दिया
जाता है और मुसलमानों को हज यात्रा में आर्थिक अनुदान दिया जाता है।
सरकार की भारत विरोधी मानसिकता देखिये भारतीय नगरों के नाम अरब
साम्राज्यवादी आक्रांताओं के नाम पर रखे गये, भारतीय महापुरूषों को
हाशिये पर फेंक दिया गया, देखिये विजयनगर हिन्दू राज्य था उसका नाम बदलकर
सिकंदराबाद रख दिया गया। महाराणी कर्णावती के नाम से नगर का नाम कर्णावती
रखा गया परन्तु इसका नाम बदलकर क्रुर आतंकी के नाम पर अहमदाबाद रख दिया
गया और अकबर ने प्रयाग का नाम बदलकर इलाहाबाद रख दिया और साकेतनगर जो राम
के राज्य से नाम था उसे बदलकर फैजाबाद कर दिया गया, शिवाजी नगर का नाम
बदलकर आतंकी औरंगजेब के नाम पर औरंगाबाद कर दिया गया, लक्ष्मीनगर का नाम
बदलकर नबाब मुजफ्फर अली के नाम पर मुजफ्फरनगर रख दिया, भटनेरनगर का नाम
गाजियाबाद रख दिया, इंद्रप्रस्थ का नाम दिल्ली रख दिया गया। इसी प्रकार
आज भी हमारे उपनगरों व रोडों के नाम आतंकवादियों के नाम पर रखे जा रहे
है, तुगलक रोड, अकबर रोड, औरंगजेब रोड, आसफ अली रोड, शाहजहाँ मार्ग,
जहागीर मार्ग, लार्ड मिन्टो रोड, लारेन्स रोड, डलहोजी रोड आदि – आदि। जरा
विचार करो, नीच किस्म के आतंकवादियों के नामों का इस प्रकार से भारत पर
जबरदस्ती थोपा जाना एक षडयन्त्र है नहीं है क्या, यह वैचारिक गुलामी का
प्रतिक है। अयोध्या के श्री राम मंदिर को विश्व जानता है कि यहां राम का
जन्म हुआ और उसका भव्य मंदिर था, एक अरबपंथी लुटेरा जेहादी सेना लेकर आया
उसने लूट मचाई, भारतीय स्वाभिमान को नीचा दिखाने के लिए उसने मंदिर को
तोड दिया, लुटेरा भी चला गया और देश का एक भाग भी चला गया, परन्तु फिर भी
मुकदमा भारतीय स्वाभिमान के प्रतिक श्रीराम और एक लुटेरे के बीच में ?
कैसी है यह आजादी !
आज भारतीय हिन्दू समाज के छद्म सेक्यूलर नेता तात्कालिक लाभ के लिए देश
को गद्दारों के हवाले करने का काम कर रहे है। भारत के सात राज्यों में तो
हिन्दू अल्पसंख्य हो ही चुका है, अब सम्पूर्ण भारत की बारी है। हे भारत
वंशियों अभी भी समय है चेत जाओं, वरना आने वाले समय में तुमको भयंकर
यातनाओं का शिकार होना पडेगा और तुम्हारी बहन – बेटियों को जेहादी
विधर्मीयों की रखैल बनकर रहना पडेगा, इसका इतिहास साक्षी है।
अमेरिका में 11 सितंबर 2001 को वल्र्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादी हमला होता
है और अमेरिकी सरकार पाकिस्तान में घुसकर लादेन जैसे आतंकवादी को मारकर
उसकी लाश को समुद्र में फेंक देती है। हमारे देश की सर्वोच्च अदालत संसद
पर हमले के लिए अफजल गुरू को फांसी की सजा सुना देती है लेकिन सरकार इस
आतंकवादी को फांसी दिए जाने की बजाय मामले को टालना ज़्यादा पसंद करती
है। सरकार को ये लगता है कि अफजल गुरू को फांसी दिए जाने पर देश का
मुस्लिम तबका उससे नाराज नहीं हो जाए।
उत्तर प्रदेश में मुस्लिम राजनीति अपने घटिया स्तर तक पहुंच चुकी है और
इसको इस स्तर तक पहुंचाने का घृणित कार्य किया है राज्य में सत्तारूढ़
समाजवादी पार्टी और केन्द्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस ने। दोनो का लक्ष्य
है 2014 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिमों का एकमुश्त वोट प्राप्त करना। इस
लड़ाई में दोनों इस कदर उलझ गये हैं जिससे न सिर्फ मर्यादाएं तार-तार हो
रहीं हैं बल्कि समाज का बंटवारा भी हो रहा है। कांग्रेस की ओर से बेनी
प्रसाद वर्मा, सलमान खुर्शीद और दिग्विजय सिंह लगे हैं तो समाजवादी
पार्टी की ओर से खुद मुलायम सिंह यादव, आजम खां, अहमद हसन और दिल्ली की
जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी इस खेल में शामिल है। केन्द्रीय मंत्री
बेनी प्रसाद के ‘आतंकवाद से रिश्ते’ वाले मुलायम सिंह के संदर्भ में दिए
बयान के तूल पकड़ने पर बेनी ने भले माफी मांग ली हो। पर सपा उनके इस्तीफे
की मांग नहीं छोड़ रही है।
बेनी ने वह बयान अपने संसदीय क्षेत्र गोण्डा में दिया था। उन्होंने कहा
कि मुलायम सिंह के आतंकवादियों से रिश्ते भी है। बात यही खत्म हो जाती तो
ठीक था बेनी वर्मा ने यह आरोप संसद में भी दोहराया हालांकि इस मामले में
कांग्रेस को माफी भी मांगनी पड़ी लेकिन यह माफी दिखावा है। मुस्लिम वोट
बैंक की राजनीति में शामिल कांग्रेस ने बेनी को अपने शब्द वापस लेने के
लिए नहीं कहा, किरकरी से बचने के लिए उसने बयान से अपने को अलग कर लिया।
लेकिन उसकी ओर से केन्द्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद लखनऊ में आकर मुसलमानों
को आरक्षण की बात कह गए। उनका कहना था कि आन्ध्रप्रदेश की तर्ज पर पूरे
देश में 4.5 प्रतिशत आरक्षण मुस्लिमों को दिया जाना चाहिए।
मुलायम सिंह मुस्लिम वोटो के पुराने ठेकेदार निकले, उन्होंने फटाफट
मुस्लिमों के पक्ष में बोलना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि उत्तरप्रदेश
की जेलों में बन्द मुसलमानों (उनकी नजर में निर्दोष) को रिहा किया जाएगा।
मालूम हो कि कुछ साल पहले फैजाबाद, गोरखपुर, वाराणसी और लखनऊ में मुस्लिम
आतंकवादियों ने सिलसिलेवार विस्फोट किये जिसमें कई लोग मारे गये थे।
लेकिन मुलायम सिंह ऐसे लोगों को निर्दोष मान रहे हैं। माना जा रहा है कि
अयोध्या में कारसेवा के दौरान गोली चलवाने वाले मुलायम सिंह आतंकवादियों
को छोड़ भी सकते हैं। 1990 के उनके मुख्यमंत्री काल में बहराईच में सिमी
के अध्यक्ष को जेल से रिहा कराया जा चुका है। सरकार ने उसके खिलाफ लंबित
मुकदमों को वापस कर लिया था।
यही नहीं, उनके पुत्र और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इस
घटनाक्रम के बाद आल इण्डिया पर्सनल ला बोर्ड के अध्यक्ष राबे हसनी नदवी
से मिलने के लिए नदवा कालेज तक चले गये। वहां उन्होंने मुस्लिमों के लिए
अपनी सरकार द्वारा किए जा रहे कार्यों की सूची तक सौप दी और कहा कि आगे
भी मुस्लिमों के लिए बहुत कुछ किया जाएगा। उन्होंने उत्तरप्रदेश में
हाईस्कूल व इण्टर पास मुस्लिम लड़कियों को 30000 रुपए की मदद का भी जिक्र
किया। इधर सपा की ओर से आजम भी सक्रिय हो गये हैं। मुस्लिमों के बीच पैठ
बढ़ाने के लिए आजम खां का दौरा लगातार चल रहा है। इस सिलसिले को अहमद हसन
भी आगे बढ़ा रहे हैं। दिल्ली में बैठे-बैठे वोटों की सौदागरी करने वाले
इमाम अहमद बुखारी की मुलायम सिंह यादव से तनातनी है। लेकिन यह केवल
दिखावा है। मुस्लिम वोटों के लिए इमाम बुखारी किसी भी स्थिति तक जा सकते
हैं। यहां बताते चले कि उत्तरप्रदेश में 1990 के बाद कभी ऐसा नहीं हुआ कि
सपा ने मुस्लिम वोटों का मोह छोड़ा हो। इस बार भी यही खेल खेला जा रहा
है। यह भी महत्वपूर्ण है कि लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस भी पीछे
नहीं रहने वाली है। केन्द्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे और कांग्रेस
महासचिव दिग्विजय सिंह द्वारा हिन्दू आतंकवाद का मुद्दा उठाया जाना इसी
रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
इन दोनों पार्टियों द्वारा मुस्लिम वोट बैंक का यह खेल अनायास नहीं खेला
गया है। उत्तर प्रदेश में कम से कम 20 लोकसभा सीटें और सौ से अधिक
विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां एकमुश्त मुस्लिमों का वोट जिधर जाता है उधर
जीत की संभावना बढ़ जाती है। अपनी काली करतूतों के कारण जनता में
अलोकप्रिय हो चुकी कांग्रेस और सपा अपना वजूद बचाने के लिए अर्थहीन
किन्तु समाज विरोधी बयानबाजी में लिप्त है। यह लड़ाई बढ़नी ही है और
लोकसभा चुनाव आते-आते और घिनौना रूप लेगी।


VATSAL VERMA (freelancer journalist cum news correspondent/Bureau
Chief) in Kanpur ( U.P.) Mob- 08542841018

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh