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जिस्मानी रिश्तों के लिए समाज की अनुमति ज़रूरी है

वेद क़ुरआन
वेद क़ुरआन
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सेक्स सम्बन्ध के लिए अपनी रजामंदी के साथ अपने परिवार और समाज की रज़ामंदी भी ज़रूरी है. हाँ, जहां परिवार और समाज ज़ुल्म करें तो वहां उन्हें राह ज़रूर दिखाना चाहिए.

सेक्स सम्बन्ध के लिए अपनी रजामंदी के साथ अपने परिवार और समाज की रज़ामंदी भी ज़रूरी है. हाँ, जहां परिवार और समाज ज़ुल्म करें तो वहां उन्हें राह ज़रूर दिखाना चाहिए.

विवाह पूर्व यौन सम्बंध की त्रासदी
पूर्व हो या पश्चिम, उत्तर हो या दक्षिण, देश हो या विदेश, औरत और मर्द के लिए यौन संबंध की व्यवस्था के लिए निकाह और विवाह की एक रस्म को अदा करना सभी जगह ज़रूरी समझा जाता है। इसके ज़रिये मस्ती के साथ हस्ती की ज़िम्मेदारी को भी बांटा जाता है। सेक्स में मज़ा भी है लेकिन अगर इसे नियमों की अनदेखी करके लिया जाए तो यह सज़ा भी है। जिन समाजों में ऐसा किया गया है, वहां अवैध संतानों, एकल और भग्न परिवारों की बाढ़ आ गई है।
यौन सम्बंध देखने में तो केवल दो व्यक्तियों का निजी सम्बंध लगता है लेकिन दरअसल यह एक तीसरे जीव की रचना का माध्यम भी है। अगर नर-नारी अपने अधिकार और अपने कर्तव्यों की बात नज़रअंदाज़ करके सेक्स कर लें तो उनके मिलन से पैदा होने वाले बच्चे के प्रति वे अपने कर्तव्यों को कैसे नज़रअंदाज़ कर पाएंगे ?
और अगर वे करना भी चाहें तो समाज और क़ानून उन्हें ऐसा करने की अनुमति कब देगा ?
कांग्रेसी नेता एन. डी. तिवारी और उज्जवला ने आपस की रज़ामंदी से बिना विवाह किए यौन सम्बंध बनाए। इसके नतीजे में रोहित जी पैदा हुए। रोहित ने कुछ भी नहीं किया लेकिन उसे कितनी मानसिक वेदना सहनी पड़ी है, इसका अंदाज़ा कोई नहीं कर सकता। अपने बेटे की पीड़ा ने उज्जवला की पीड़ा को भी दुगुना कर दिया होगा। इसमें कोई शक नहीं है। एन. डी. तिवारी को अपना राजनीतिक गुरू और अपना नेता मानने वालों की तादाद भी लाखों में है। बुढ़ापे में हुए एन. डी. तिवारी के अपमान की पीड़ा ने उन लाखों लोगों को भी पीड़ा के सिवाय कुछ न दिया।
इस तरह की बहुत सी घटनाएं हैं और हरेक घटना हमें यही सिखाती है कि बुराई के रास्ते पर चलने का अंजाम कभी अच्छा नहीं हो सकता।
कोई भी नर नारी अपनी प्राकृतिक इच्छाओं का दमन ख़ुशी से नहीं करता है। उसके पीछे कुछ मजबूरियां ज़रूर होती हैं और कभी कभी हद से बढ़ी हुई ख्वाहिशों की वजह से भी लोग अपनी क़ुदरती ख्वाहिशों को कुचलने पर मजबूर होते हैं।
इस का इलाज यही है कि बेलगाम ख्वाहिशों को क़ाबू में किया जाए और लोगों की मजबूरी को मिलकर दूर किया जाए। तब ऐसा समाज बनेगा कि जो भी लड़का-लड़की शादी के योग्य होगा और वह शादी करना चाहेगा तो वह शादी ज़रूर कर सकेगा। तब आपसी सम्बंध में भी आनंद, माधुर्य और स्थिरता होगी और इसके नतीजे में पैदा होने वाली औलाद को भी उचित देखभाल और सुरक्षा मिल पाएगी।
इंसान अपने लालच को क़ाबू करे और सादगी से जिए तो सबके विवाह का इंतेज़ाम हो सकता है और विवाह हो सकता है तो फिर अविवाहित रहने की वजह बाक़ी ही कहां रहती है ?
फिर भी जो अविवाहित रहना चाहें रहें और जो कुछ करना चाहें करें लेकिन इन ‘कुछ‘ लोगों के कारण पूरे समाज की सही-ग़लत की तमीज़ को विकृत नहीं किया जा सकता।

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