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हरेक धर्म-मत-दर्शन में दान, परोपकार और सेवा का उपदेश मौजूद है। इन्हीं बातों की शिक्षा देने के लिए मंदिर-मस्जिद-गुरूद्वारे बनाए गए हैं। आज मंदिरों और मज़ारों पर सोना, चांदी, हीरा और रूपया सब कुछ इतना चढ़ाया जा चुका है कि अगर उसे उसी धर्म-मत के लोगों में बांट दिया जाए तो ग़रीबी ख़त्म हो जाएगी और भारत की आर्थिक समस्या भी ख़त्म हो जाएगी।
धर्म-मतों के मानने वालों ने अगर अपने धर्म-मतों को ठीक ढंग से माना होता तो किसी नास्तिक को शिकायत का कोई मौक़ा न मिलता। नफ़रत किसी समस्या का हल नहीं है। नफ़रत वही लोग फैलाते हैं जो कि अपने धर्म-मत को ठीक ढंग से नहीं मानते। धर्म का राजनीति के इस्तेमाल एक बड़ी समस्या है। आज यही हो रहा है।
धर्म के अनुसार आचरण करने से शांति आती है जबकि धर्म के नाम का अपने संकीर्ण राजनीतिक हित के लिए इस्तेमाल किया जाए तो इससे समाज में अशांति आती है।
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