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“आतंकवाद का असर हिन्द के मुसलमान पर “

vidyarthi_uwaach
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यार ये आतंकवाद विषय काफी चर्चित है और मेरे कुछ हिन्दू दोस्तों ने सिर्फ इसे एक धर्म से जोड़कर जो बातें की वो हो सकता है कि उनकी नजर में अच्छी हो ,सच्ची हों , उनमे कुछ खोट नजर आता है ,दरसल हम लोगो ने आतंकवाद को सिर्फ पाकिस्तान और मुस्लमान से सीधा जोड़ दिया है हाँ हमे कहीं न कहीं ये दीखता भी है कही भी कोई आतंकवादी पकड़ा जाता है तो उसका धर्म एक ही है ज्यादातर, ,अगर आज isis इतना कहर बरपा रहा है तो उसके जनक भी वो लोग हैं जो आज उसको नियंत्रित करने के लिए व्याकुल है ,जो कल तक तेल की पाइपलाइन के चलते उसको फंडिंग कर रहे थे आज वो उसी की बात नहीं सुन रहा है , और ये बात किसी से छुपी नहीं है । चलिए isis की अपनी जटिलताएं हैं, उसका कभी और हल निकालेंगे , मिल के निकालेंगे ।

मगर आज वो देखते हैं जिसका असर हमारे मुल्क के देशभक्त मुसलमानो पर पड़ रहा है , आज इस मुल्क का २५ करोड़ आदमी एकदम अलग थलग पड़ा है क्यों , क्यूंकि भाई उस कॉम के कुछ लोगों ने आतंकवाद का सहारा लिया अपनी समस्याएं सुलटाने के लिए ,चलिए शुरुआत से चलते है एक सफर पर ,

१९४७ में जब एक तरफ देश आजाद हुआ था तो दूसरी तरफ राष्ट्रभक्ति का तगड़ा इम्तिहान चल रहा था , जो हिंदुस्तान की मिटटी से प्यार करते थे वो यहीं रहे जो पाकिस्तान की मिटटी से प्यार करते थे वो वहां रहे ,वो चाहे सिख आबादी हो जिसे अपनी लाहौर ,पठानकोट, रावलपिंडी की मिटटी से प्यार था उन्होंने हिंदुस्तान आने की नहीं सोची , वो चाहे मुस्लमान हो लखनऊ,हैदराबाद के जिन्हे यहां की मिटटी से प्यार था उन्होंने कभी पाकिस्तान जाने की नहीं सोची , जिसकी मोहब्बत जहाँ थी वो वहीँ बस गया ,अब हम अगर उसको देशभक्ति का नाम देना चाहे तो शायद इससे बेहतर शब्द होगा भी नहीं उनके इस बलिदान को सराहने के लिए , जिन्होंने अपने भाई ,बहिन ,रिश्तेदारों को छोड़ना कबूल किया मगर अपनी मिटटी को नहीं छोड़ा ,

उनके लिए मुन्नवर बाबा ने कहा है कि

बस कहानी का ये हिस्सा आज तक सबसे छुपाया है ,

कि हम अपनी मिटटी का खातिर अपना सोना छोड़ आएं हैं ॥

तो बात है इतनी सी की जो देशभक्ति का परीक्षण देना था उसमे १९४७ में ही सभी भाई पास हो गए थे ,और आज जो ये अपेक्षा रखते हैं, जो हिंदुस्तान में बहुल समाज के लोग अल्पसंख्यक समाज से कि वो हर कदम पर देशभक्ति का सर्टिफिकेट उनके हस्ताच्छर में प्रमाणित करवाए , तो भाई आप अब तो ज्यादती ही कर रहे हैं , उनसे जगह जगह पर बदसलूकी करके , उनके देशभक्त होने पर सवालिया निशान खड़ा करने वाले आप कौन होते हैं ? जब भी देशभक्ति को साबित करने का नंबर आया उन्होंने हमसे कंधे से कन्धा मिलाकर साथ दिया अब वो चाहे अब्दुल हामिद बनके हो या कलाम बनके ,(मैं आजादी के बाद के मुस्लिम नायकों का नाम इसलिए ले रहां हूँ क्यूंकि आजादी से पहले ये दोगलापन समाज में मौजूद ही नहीं था सारे भाई भाई थे जिनका एक ही मकसद था आजादी ,)

जरा सी देर के लिए मान लो, की मैं जो एक हिन्दू समाज में पैदा हुआ ,ब्राह्मण के घर में जन्म लिया ,जिसमे मेरा कोई हाथ नहीं था मेरा नाम एक हिन्दू देवता की नाम से रख दिया गया भाई कसम से उसमे भी मेरा कोई हाथ नहीं था , थोड़ी देर के लिए मान लो मैंने एक मुस्लिम घर में जन्म लिया होता जिसका नाम सरदार खान है ,अब सरदार खान का जन्म हो गया और उसने दुनिया देखनी प्रारम्भ की ,हालांकि सरदार खान के माता पिता शिक्षित नहीं हैं, फिरभी मेरे अब्बा ने ये सोचा की चलो इसको पढाते लिखाते हैं ,कभी ये भी कलाम जैसा बनके हमारा नाम रोशन करेगा ,मैं स्कूल गया सरस्वती शिशु मंदिर जो हमारे शहर का नामी गिरामी विद्यालय था मेरे अब्बा उसमे मेरा दाखिला कराने ले गए ,लेकिन मैं उस विद्यालय से बेरंग लौटा दिया गया ,अब मेरा दाखिला कहीं किसी मदरसे में कराया गया जहाँ के मौलवी साहब विज्ञानं से ज्यादा हदीस और शरीयत के कानूनों की बात करते थे ,वहां मैंने अल्लाह को कुछ और पाया ,मैंने अपने आस पड़ोस देखना शुरू किया तो देखा कि कुछ लोग हमें हमारे नाम से नहीं बल्कि मियां ,और तरह तरह के शब्दों से पुकारते थे और हम लोग शहर के एक नाले के उस पार बस्ते थे जिसको मिनी पाकिस्तानभी कहा जाता था ,पता नहीं क्यों मगर कहते थे , दर्जे का व्यव्यहार किया जाता था ,कुछ राजनैतिक पार्टियां हमारा साथ तो देती थी मगर सिर्फ अपना वोटबैंक फिट करने के लिए हमारी चिंता उन्हें थी ही कब ,तो कुल मिला के तिरस्कार भरे बचपन से छुटकारा तब मिला जब कसबे से शहर आये यूनिवर्सिटी , मगर जैसे ही चारबाग स्टेशन पर उतरे एक पुलिस वाले भाई साहब ने हमारा नाम पूंछ लिया जैसे ही उन्होंने सुना खान ,खोल दी, हमारे सारे बैग की दुकान वहीँ पर और लेने लगे तलाशी मुझे समझ में नहीं आया कि खान शब्द में कि वो व्यक्ति तलाशी लेने लगा , मगर खैर कुछ मिला नहीं , तो जाने दिया , लखनऊ यूनिवर्सिटी में हॉस्टल के लिए अर्जी दी, अब कमरों में कोई हम्मरे साथ रहने को तैयार नहीं मुसलमान होने के कारन, गोस्त खाने की वजह से ,एक दोस्त का सहारा मिला जैसे तैसे दिन गुजरे काटता गया , नौकरी का नंबर आया तो वहां भी कुछ गड़बड़ दिखी ,तो कुल मिला के जीवन हमेशा तिरस्कार में ही गुजरा , अकेला मई ही नहीं था ,कुछ हिन्दू भी थे जिनको दलित ,चमार कहते थे हाल था ,मतलब मेरे मुस्लमान पैदा होने में मेरा कोई हाथ नहीं था फिर भी जिंदगी तिरस्कारों से गुजरी । कहानी ख़त्म, मगर दुःख होता है अगर मैं सरदार खान बनके इस कहानी को पढता हूँ , इतना दुराचार हमारे मुल्क के मुस्लमान भाइयों पर क्यों ??

अगर सबसे ज्यादा किसी समुदाय के बच्चे शिक्षा से दूर हैं तो वो मुस्लिम समुदाय है और दलित भी है, एक रिपोर्ट के अनुसार ३४ % मुसलामानों के बच्चों ने कभी स्कूल नहीं देखा होता ,जहाँ सम्पूर्ण देश में आश्रितों की संख्या का औसत ५२% है वहीँ मुस्लिमों का ग्राफ ७५% का है ,जितनी अशिक्षा ,उतना तिरस्कार, उतना आतंकवाद ,क्यूंकि अगर हम सरदार खान होते सच के ,और कोई देता हमरी माँ बहन को गाली ,या हमसे मांगता सर्टिफिकेट ,या हमको बताता आतंकवाद का धर्म और हम होते अशिक्षित , तो हमारे पास भी एक ही चारा रह जाता सिर्फ बन्दुक उठाने का , और वो काम हिन्दू समाज के लोग भी नक्सल वाद के नाम पर बखूबी कर रहें हैं , क्यूंकि वो भी सरदार खान जैसे सताए हैं ॥

कुल बात का मतलब ये निकला की अगर जरा सी गलती हो गयी होती ऊपर वाले से तो हमारा धर्म ,कुल सब बदल जाता ,तब क्या हम वो सोच पाते जो आज सोचते हैं की आतंकवाद का एक ही धर्म होता है , जो उन्हें सिर्फ कसाब से जोड़कर देखते जो एक हिन्दुस्तानी भी नहीं था , जो अफजल से जोड़ते है हमें , उनके लिए एक ऑप्शन कलाम का भी था , अब्दुल हामिद भी था , मगर उन्होंने गलत जोड़ दिया ॥

और हम भी ठहरे इतने बेवकूफ हिंदुस्तान की तुलना किससे करते हैं ,पाकिस्तान से जो आज यातनाएं झेल रहा है क्यूंकि वहां सिर्फ एक ही तबका बचा है वहां के सारे अल्पसंख्यक मार दिए गए , उनकी संख्या आप उँगलियों पे गिन सकते हैं , आप अपने इस स्वर्ग से हिंदुस्तान को अगर स्वर्ग सा ही देखना चाहतें हैं , तो इसकी अखंडता और सम्प्रभुता और विभिन्नता का सम्मान करना सीखें, हिन्द के मुस्लमान को एक उन्नत भविष्य की और ले जाने में मदद करें क्यूंकि अगर एक भी व्यक्ति पीछे रह जाता है तो समाज पीछे हो जाता है ,देश पीछे हो जाताहै ।

उदय दादा की पंक्तियां थी

न तेरा है , न मेरा है ,ये हिंदुस्तान सबका है ,

न समझी गयी बात तो नुकसान सबका है ॥

और हाँ आतंकवाद को कोई धर्म नहीं होता है ,आतंकवाद एक ऐसे बीमारी है जो मज़बूरी और अशिक्षा नाम के बैक्टीरिया से पनपती है ,फिर सम्पूर्ण जगह को अपना शिकार बनती है।।

चलिए एक उन्नत भविष्य की ओर चलते हैं ,

हालाँकि मैं बड़ा चिंतक नहीं हूँ न मेरे करोड़ फॉलोवर है जो मेरे कहने पर ये रास्ता अख्तियार कर लेंगे , मगर शुरुवात कहीं न कहीं से तो ,

लेखक कृष्ण कुमार शुक्ल विद्यार्थी

(कश्मीर की अपनी अलग जटिलताएं हैं उसका मसला धीरे धीरे हल होगा , जब देश बदलेगा तो कश्मीर बदलेगा )

आप की टिप्पड़ियों का इंतज़ार रहेगा ,ये शांत बैठने का वक़्त नहीं है ,

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