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सब को जगाते -जगाते -थक -हार के सिर निद्रा में चली गयी वो !

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दर्द भरे शब्दों और आंसुओं में भिगो – भिगो कर टी वी एंकरों द्वारा परोसे गए भावनात्मक और ग़मज़दा माहौल से न तो देश के लोगों का वहशी चरित्र चरित्र बदला जा सकता है और न बदला गया , ये सिर्फ और सिर्फ एक खानापूरी के सिवा और कुछ नहीं हैं , जब तक मीडिया और टी वी में महिलाओं और लड़कियों को “वस्तु ” बनाकर परोसने वाले विज्ञापन दिखाए जाते रहेंगे , तब तक चरित्र बदलाव के कल्पना करना एक मृगमरीचिका मात्र है .
जब तक लड़की पटाने और परफ्यूम छिड़क कर लड़कियों के उड – उड़ कर गिरने वाले दृश्य टी वी पर दिखाए जाते रहेंगे , तब तक यह कल्पना कैसे की जा सकती है की लोगों पर इस सब का असर नहीं पड़ेगा . वास्तव में सारा देश आँखों पर काली पट्टी बांध कर धृतराष्ट्र की तरह जी रहा है , जी केतली में भरे पानी की तरह उबलता तो है पर ज़ल्द ही बरफ की तरह ठंडा हो जाता है .
हम या हमारी मानसिकता इस कदर बिगड़ चुकी है , जिसकी आमूल चूल सर्जरी की ज़रूरत है , इसे सिर्फ मरहम- पट्टी भर करने से सुधारा नहीं जा सकता .
सिर्फ सपने दिखा – दिखा कर आप , इसी तरह जिंदगियों को हारने पर मजबूर करते रहेंगे .11

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