ईमानदारी का जो जितना ज्यादा ढोल पीटता दिखे , समझ लो वो उतना बड़ा बेईमान या ब्लैकमेलर .यंहा लोगो को अपना परिवार पालने से फुर्सत नहीं मिलती वहीँ इन ढोल पीटने वालों को ईमनादारो की बारात निकालने का साधन कहाँ से मिल जाता है , इस पर कभी किसी ने नहीं सोचा ?
जहाँ तक मुझे याद आता है पिछले २५ – ३० सालों से हर साल भ्रस्टाचार लगातार बढ़ ही रहा है , जितने नए दल बनते है उतना ही भ्रस्टाचार और बढ़ जाता है , क्यूंकि कोई भी अपने मेहनत की कमाई से किसी को चंदा नहीं देता , मगर इस सच्चाई को कोई भी समझने को तैयार नहीं हैं , लेने वाले बढ़ते जाते है और उसी अनुपात में बेईमानी की कमाई भी ,.जो आखिर में चुनाव लड़ने वाले तथाकथित ईमानदारों की भेंट चढ़ जाती . भ्रस्टाचार मिटने का नाम नहीं लेता पर भ्रस्टाचार ख़त्म करने का दावा करने वालों की संख्या बराबर बढती जा रही है .
जामा पहना दो , बेईमानी की कमाई पर टैक्स लगा दो .
.झूठी नैतिकता , और आदर्शों का लबादा उतार फेंको वरना चाहे कितने दल बना लो , कितने अनशनकारी पैदा कर दो , भ्रस्टाचार न मिटा है न मिटेगा . , हाँ भ्रस्टाचार मिटाने के नाम पर रोज़ नयी – नयी दुकाने ज़रूर खुलती चली जाएँगी .जनता इस सच को जितना ज़ल्दी समझ लेगी , उसका शोषण उतनी ज़ल्दी कम हो जायेगा कटु सत्य यही है , मानो या न मानो !
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