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अपनी को आप किन कपड़ो में देखना चाहेंगे…..?

दिल की बात
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अपने से एक सवाल करे कि आप अपनी (बहन, बेटी, पत्नी) को किस परिधान में देखना पसंद करेंगे| दूसरा सवाल कौनसा परिधान पहने किसी अन्य लड़की / महिला को देख कर आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी?

आजकल कपड़ों पर बड़ा ही हो हल्ला हो रहा है, वो भी महिलाओं के पहने जाने वाले कपड़ो पर| महिला को खुद सोचना होगा कि वो किस परिधान में सुंदर लगती हैं और सामने वाले पुरुष की नज़र आपको किस परिधान में घुरेंगी अब चाहे वो बाज़ार में हो या घर में| घर में तो पुरुष पिता या भाई अपनी मर्यादा को समझ कर अपनी अंदुरूनी हलचल को छुपा भी लेता है, किंतु पिता या भाई के स्थान पर पति हो तो क्या होता है, महिला समझ सकती है| जब वो घर में ही 3 में से एक आदमी के द्वारा दबौच ली जाती है तो बाज़ार में तो हज़ारो अंजान चाहेरे होते हैं, जो आपके शरीर को बिना छुए ही नज़रों से बहुत कुछ आपके अंदर का खा जाते हैं|

यहाँ पर चाहे शरीफ हो या बदनाम दूध का धुला कोई नही है, यदि कुछ कामुक दिखेगा तो कौन नही देखना चाहेगा? पुरुष की कमज़ोरी है एक स्त्री| नही हो तो इतिहास उठा कर देख लो जहाँ पर भी कुछ हुआ है चाहे महाभारत हो, या रामायण ये कुछ और ग्रंथ सभी में स्त्री ही कारण रहा है| पुरुष भोगी है और स्त्री भोग्या, जब भोगी को भोग्या आमंत्रित करती है और भोगी ना जाए तो उस भोगी को क्या कहेंगे? (मर्द और भोगी में अंतर है, भोगी कही भी मुँह मारते हैं और मर्द लंगोटी का पक्का होता है वो अपने पर संयम रखता है और सिर्फ़ अपने साथी को ही भोगता है) यदि वो उस समय नही तो बाद में चोरी छुपे अपने साथ की नही मिलेगी तो अपने से कमजोर को भोगने की कोशिश करेगा| तभी बच्चियों के बलात्कार और हत्या के केस बढ़ रहे हैं| सभी जानते हैं जिस वक्त जुनून चढ़ता है तो आँखों के सामने पट्टी बँध जाती है, क्या सही और क्या ग़लत का निर्णय नही ले पता उस वक्त तो सिर्फ़ भोगने को मिल जाए बस उम्र का कोई मतलब नही पक्के और कच्चे का कोई फ़र्क नही और जब वो तूफान गुजर जाता है तो पता चलता है की कुछ ग़लत कर दिया, उस ग़लत को छुपाने के लिए एक और ग़लत किया जाता है| पकड़े जाने पर समाज द्वारा मानसिक रोगी घोषित कर दिया जाता है| ग़लती किसी उसकी जिसने ये घ्रानित कर्म किया या जिसने उसको उकसाया उसकी?

विज्ञान तो क्या सभी जानते हैं पुरुष स्त्री के अपेक्षा जल्दी कामुकता में घुस जाता है, फिर बाज़ारवाद के कारण कामुकता को आमंत्रित करने के निर्जीव साधन तो भरे पड़े है, उपर से खुद कामुकता की पूर्ति करने वाली स्त्री कामुकता को बढ़ावा देने वाले परिधान पहन कर बाहर निकले तो असंयमी तो क्या संयमी पुरुष का भी एक बार तो मन डौल जाए, उपर से क�������������छ ग़लत हो जाए तो तुर्रा ये की हमारे पहनने पर भी अब रोक| आधुनिकता आदमी क����� सभ्य बनाने के लिए है ना के आदम के समय में ले जाने के लिए| सभ्य कौन है वो जो सलीके से अपने को पेश करे मतलब सलीके के कपड़े पहने सलीके से रहे सलीके से व्यवहार करे या आदम के समय की भाँति सिर्फ़ गुप्तांगो को ढकने के लिए सिर्फ़ दो चिथड़े लपेट ले या अंगो के उभारो को और ज़्यादा उभार प्रकट करवा कर सामने वाले कि कामुकता को बढ़ाए|

ये विचार पुरुष को नही बल्कि स्त्री को खुद करना है कि वो अपने आपको परोसना पसंद करती है या अपने को सामानित नज़रों से दिखलाना पसंद करती है| हमारे बुजुर्ग पुरुष तो जानते है कि हमारे बच्चे गर्त में ना गिरे इसके लिए स्त्री को सभ्य होना होगा किंतु कुछ युवा (लड़कियों की संख्या कुछ ज़्यादा और कुछ संख्या में लड़के भी) उनके फ़ैसलों को तुगलिकी फरमान, खाप का दखल आदि आदि कहकर उनका विरोध करते हैं, मेरा एक सवाल सभी से क्या वो अपनी बहन या बेटी को शारीर की नुमायश करने वाले परिधान पहना कर बाजार में भेजना चाहेंगे? फैशन के नाम पर नग्नता या कामुकता बढ़ाने वाले कपड़े पहने ही क्यूँ जाए? क्या कपड़े शरीर को मौसम की मार से बचाने के लिए होते है या फैशन के नाम पर शरीर की नुमायश करने के लिए|

यहाँ महिला ही नही बल्कि अब तो पुरुष भी ऐसे कपड़े पहने है जिससे उनके अंतः वस्त्र अपनी कहानी बयान करे|  कुछ तो अन्तः वस्त्र भी नहीं पहनते और उनकी कमर से निचे V शेप साफ़ नजर आती है, ये उनके लिए तो फैशन हो सकता है किन्तु क्या ऐसे कपड़े सलीकेदार हो सकते है जिससे कि हमारी बहू बेटी को अपना मुँह फेरना पड़े| ये सच ही है पुरुष को बाज़ार में कुछ नंगा दिखता है तो वो उसको घूरता है और स्त्री को यदि कुछ ऐसा दिखता है तो वो गर्दन को झुका लेती है| यदि ऐसा ही कुछ होना है तो स्त्री और पुरुष के द्वारा ऐसे परिधान पहने ही क्यू जाए? क्यूँ ना फैशन के नाम विदेशी और देशी कंपनियों द्वारा नग्नता परोसते इन कपड़ो की होली जला दी जाए जैसे आज़ादी के आंदोलन में विदेशी कपड़ो की होली जलाई जाती थी|

चलते चलते –

जो घटना लिख रहा हूँ उसको पढ़ कर आप मुझे मानसिक रोगी समझे या मेरी गंदी मानसिकता की सोच कहे किंतु घटना का लिखना ज़रूरी है इस मुद्दे को देखता हुए|

अभी कुछ दिनो पहले एक मित्र के यहाँ जाना हुआ, मुलाकात के बाद वापस घर आने के लिए मेट्रो पकड़ी और खुशकिश्मति से मेट्रो में सीट मिल गयी| दो स्टेशन के बाद एक परिवार चढ़ा पिता, माँ और बेटी| बेटी की उम्र होगी ये ही कुछ 13-14 वर्ष| मेरा मानना ये है कि इस उम्र के बच्चे माता पिता के कहने में होते है, उनको क्या पहनना है, कैसा पहनना है वो माता-पिता पर निर्भर करता है| बातचीत से काफ़ी सभ्य लग रहे थे, किंतु कपड़ो से मेरी नज़र में वो आदम के जमाने के थे| पुरुष ने तो जींस और टी-शर्ट पहन रखी थी, किंतु माँ और बेटी के कपड़ो का ज़िक्र नही कर सकता| किंतु इतना ज़रूर है यदि वो दोनो किसी सुनसान रास्ते में पड़ जाती तो गोहाटी वाली घटना से पहले दिल्ली की घटना अख़बारो में ज़रूर आ जाती|

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