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चुनाव पे चुनाव … खर्च पर खर्च … महँगाई पर महँगाई …

दिल की बात
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लोकतंत्र की शक्ति है चुनाव …. लेकिन चुनाव लड़ने वाले लोग इसका कितना ग़लत फायदा उठाते हैं ये भी सोचने का विषय है …. हो सकता है मैं यहाँ पर बिल्कुल ग़लत हूँ और मेरी सोच पागलो वाली हो … किंतु फिर भी ज़रा सोचो ……..

एक से अधिक जगह से चुनाव लड़ना कितना उचित

एक प्रत्याशी एक से अधिक जगह से चुनाव लड़ने को अपना नामकन भरता है तो वो कितना उचित है …..? यदि वो दोनो जगह से जीत जाता है तो दोनो जगह का प्रातनिधितव नही कर सकता …. एक स्थान तो खाली करना होता है …. स्थान खाली करने का मतलब है एक और चुनाव …. जिस स्थान को वो खाली करता, वहाँ की जनता ने क्या कुसूर किया की उसको जीता दिया ….? चुनाव, बाद महँगाई कितनी बढ़ जाती है जनता को पता है …. महँगाई ना भी बढ़े (ऐसा होता नही है) तो देश पर कितना कर्ज़ बढ़ जाता है किसी को पता है ………

ज़्यादा नही बहुत ही ताज़ा ताज़ा विषय है ….. चुनाव हुए हैं हरयाणा में रतिया और आदमपुर ….. रतिया तो समझ में आता है …. किंतु आदमपुर तो थोपा हुआ चुनाव है मतलब रतिया की सीट तो जनप्रतिनिधि के निधन के कारण से खाली हुई थी किंतु आदमपुर का प्रतिनिधि तो जिंदा है …. फिर क्यू उसने आदमपुर का चुनाव जनता पर थोपा ….. हिसार का चुनाव लड़कर … अपने स्वार्थ के लिए जनता पर एक और चुनाव का बोझ क्यू लाद दिया ………. जनता ने भी खूब साथ निभाया ….. उसी के घर में सीट सोप दी … (उसी की पत्नी को जितवा कर)

क्या जनता को कुछ सोचना नही चाहिए :-

जो नेता दो जगह से चुनाव लड़े उसको अपने यहाँ से हरा दो …. ताकि दोनो जगह से जीतने के बाद वो एक सीट को छोड़ कर आप पर एक और चुनाव तो नही थोपेगा …. चुनाव पर चुनाव ना हो, खर्च पर खर्च ना बढ़ाए और देश पर कर्ज़ ना बढ़े ……

चुनाव आयोग को भी कुछ कदम इस और उठाने चाहिए या नही ….

कि एक जनप्रतिनिधि (जीत चुका) रहते हुए दूसरी सीट पर चुनाव लड़े ……… ?

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