Menu
blogid : 7644 postid : 97

धंधे वाली औरत………

दिल की बात
दिल की बात
  • 52 Posts
  • 89 Comments

दैनिक यात्रियों से रेल खचाखच भारी हुई थी| कमोबेस ये ही हाल महिलाओं के लिए आरक्षित डिब्बे का भी था| जैसे ही रेल ने धीरे धीरे चलना शुरू किया 8-10 मनचलों के एक टोली धड़धड़ा कर महिला डिब्बे में घुस गयी| 8-10 मलांगो की टोली को देख कर सुरक्षा कर्मी की भी बोलती बंद थी| टोली अपनी मनमर्ज़ी से अश्लील फब्तियाँ कर रहे थे, अश्लील इशारे कर रहे थे| डिब्बे में सफ़र कर रही लड़कियों और महिलाओं का लाज से बुरा हाल था किंतु कोई कुछ नही बोल रही थी, सारी की सारी भले घरों से थी| अगले स्टेशन पर वो टोली उतर गयी| उनके उतरते ही महिलाओं का मोन व्रत टूट गया और खूब बुरा भला कहा उस टोली को| किंतु एक महिला चुपचाप बैठी सबकी बात सुनती रही| उस पूरे डिब्बे में उस महिला का कोई मित्तर नही था ऐसा प्रतीत होता था| क्यूंकी उसके साथ किसी की बातचीत नही थी| वो खिड़की वाली सीट पर अकेली बैठी थी, जबकि दैनिक यात्री रेल में सिंगल सीट पर भी तीन-तीन जन बैठे होते हैं| किंतु उस महिला के साथ कोई नही बैठा था| कारण सॉफ था वो महिला धंधे वाली थी और उस डिब्बे में सफ़र करने वाली अन्य महिलाए शरीफ घरों से थी|

मनचलो की टोली का ये सिलसिला लगातार चलता रहा| फब्तियाँ कसना, भद्दी भद्दी गलियाँ देना ये तो आम बात थी उस टोली की| कुछ साहसी महिलाओं बीच बीच में विरोध करने की कोशिश भी की किंतु उनके प्रयाश विफल ही रहते| शूरक्षाकर्मी की तो बोलती उनके सामने बिल्कुल ही बंद रहती थी, वो करता भी तो क्या करता, उसको भी तो अपने बच्चे पालने थे, महीने के अंत में तनख़्वाह तो चुप रह कर भी मिल ही जानी थी और अतरिक्ट साहस दिखने पर कोई अतरिक्त लाभ नही होना था| किंतु एक दिन तो हद हो गयी| उस दिन उस डिब्बे में एक 15-16 साल की लड़की भी सफ़र कर रही थी, शायद ये उसका प्रथम सफ़र था और उस सीट पर एक ही जन को बैठा देख कर वहाँ बैठ गयी| अपने आप में ग़ज़ब की खूबसूरत थी वो बालिका| मनचलों की टोली का रोजाना वाला तमाशा आज अपनी हद को पार कर गया उन्होने उस सीट को घेर लिया जिस पर वो बालिका उस धंधे वाली औरत के साथ बैठी थी|  शरीफ घरों की सभी औरते चुप थी और मनचलों की टोली के होशले बुलंद थे| लड़की अन्य औरतो की तरफ सहयता भारी नज़रों से देख रही थी| फब्तियाँ कसना और इशारे करने तक तो ठीक था किंतु जब उनमे से एक ने उस लड़की को छूने की कोशिश की| तभी डिब्बे में एक दम सन्नाटा छा गया सिर्फ़ गूँज रहा था तो एक थप्पड़ जो एक मनचले के गाल पर पड़ा था| वो बदनाम औरत अपनी सीट से खड़ी हुई और सलवार का नडा खोल कर बोली आओ हराम की औलादो मैं देखती हूँ तुम कितने मर्द और मर्द के बच्चे हो|

कहाँ तो उस महिला डिब्बे में मनचलो का कोलाहल था और कहाँ वो गधे के सिर से सींग के भाँति वहाँ से गायब हो गये| उस दिन के बाद वो टोली उस डिब्बे के आस पास भी नज़र नही आई|

Tags:   

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply