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हिंदीभाषी लोगों का हिंदी में फेल हो जाना

...आओ 'हिंदी दिवस' मन
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अभी कुछ दिन पहले उ.प्र. माध्‍यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा हाईस्‍कूल और इंटरमीडिएट का परीक्षाफल घोषित किया गया। ध्‍यान देने वाली बात यह है कि हिंदी भाषी राज्‍य उत्‍तर प्रदेश के लगभग 8 लाख परीक्षार्थी हिंदी और सामान्‍य हिंदी विषय में फेल हो गए जो कि परीक्षा में शामिल हुए कुल परीक्षार्थियों का लगभग 16 प्रतिशत है। इनमें से लगभग 2.7 लाख परीक्षार्थी इंटरमीडिएट में और 5.28 लाख परीक्षार्थी हाईस्‍कूल में फेल हुए हैं। चौकाने वाली बात यह है कि सबसे ज्‍यादा परीक्षार्थी वाराणसी, प्रयागराज, गोरखपुर, मेरठ और बरेली जिले से हैं जो हिंदी साहित्‍य और भाषा के गढ़ माने जाते हैं। आखिर ऐसा होने का क्‍या कारण है? क्‍या हम यह मान लें कि अच्‍छी शिक्षा नहीं मिल पाने के कारण ये परीक्षार्थी फेल हो गए? क्‍या इसके पीछे सारा दोष शिक्षा व्‍यवस्‍था या अध्‍यापकों का है जो बच्‍चों को अपनी ही भाषा ठीक से नहीं पढ़ा पा रहे हैं? या सारा दोष इन परीक्षार्थियों का है जो अपनी ही भाषा में फेल हो गए? या इसके पीछे हमारी सामाजिक, सांस्‍कृतिक और प्रशासनिक सोच और व्‍यवस्‍था भी जिम्‍मेदार है?

 

 

 

हिंदी भाषी वि़द्यार्थियों के हिंदी में फेल होने के कारण-

  1. सामान्‍य तौर पर किसी परीक्षा में परीक्षार्थी उसी विषय में फेल होता है जिस पर वह कम ध्‍यान देता है या जिसे वह कम महत्‍व का समझता है। हिंदी पट्टी मसलन उ.प्र. और बिहार में हाईस्‍कूल और इंटर के विद्यार्थियों का जितना जोर अंग्रेजी और गणित पर होता है उतना हिंदी पर नहीं। अंग्रेजी में उसे फेल होने का सबसे ज्‍यादा डर होता है इसीलिए वह पूरे वर्ष अंग्रेजी पढ़ने में एड़ी-चोटी का जोर लगा देता है। इसके एवज में वह हिंदी विषय पर ज्‍यादा ध्‍यान नहीं दे पाता जिसके पीछे कमोबेश यह मन:स्थिति भी होती है कि हिंदी तो अपनी भाषा है कुछ नहीं पढ़ने के बावजूद हिंदी में कुछ न कुछ लिख के तो आ ही जाउंगा।
  2. हमारे समाज में शिक्षा/पढ़ाई प्राप्‍त करने की सबसे बड़ी वजह रोजगार या कमाई का ज़रिया प्राप्‍त करना होता है। हिंदी के बरअक्‍स अंग्रेजी और अन्‍य विषयों में रोजगार के ज्‍यादा अवसर होने के कारण भी विद्यार्थी और हमारा समाज हिंदी विषय को उतना तवज्‍जों नहीं देता है।
  3. हमारे समाज में हिंदी को लेकर हीनभावना ज्‍यादा ही है। इसे लड़कियों द्वारा पढ़ने वाला विषय समझा जाता है जिसमें पास होने के लिए बहुत मेहनत की जरूरत नहीं पड़ती? यदि आप हिंदी भाषी या हिंदी पट्टी से आते है तो पहली नजर में आप को कमतर आंका जा सकता है चाहे आप कितने भी बड़े विद्वान क्‍यों न हो।
  4. विभिन्‍न प्रतियोगी परीक्षाओं मसलन UPSC, UPPSC, Banking, Railway आदि में हिंदी भाषा के प्रति उपेक्षा का भाव चाहे वह परीक्षा पेपर में गलत अनुवाद के रूप में हो या साक्षात्‍कार में अंग्रेजी बोलने वाले अभ्‍यर्थियों को ज्‍यादा वेटेज देने से हो, होने के कारण हिंदी पढ़ने-पढ़ाने वाले लोगों को हतोत्‍साहित करती है और उनके अंदर हिनताबोध पनपने लगती है।
  5. भारत की आज़ादी के बाद अंग्रेज तो चले गए किंतु अंग्रेजी भाषा के माध्‍यम से हम आज भी एक उपनिवेशी भाषा के मा‍नसिक गुलाम हैं। अंग्रेजी हमारे ज़ेहन में इस कदर रच-बस गई है कि अंग्रेजी बोलने और अंग्रेजीदा लोग हमें ज्‍यादा एलिट लगते हैं और हिंदी बोलने वाले लोगों से गवारपन की बू आने लगती है। हमारे आस-पास कुकरमुत्‍ते की तरह अंग्रेजी मीडियम स्‍कूलों का खोले जाने के पीछे यह एक बड़ी वजह है, जहां बच्‍चों के सोचने-समझने की क्षमता में विकास करने के बजाए उसे अंग्रेजी तोता बनाया जाता है। और परिणामस्‍वरूप बच्‍चा अंग्रेजी और हिंदी के बीच में कही रह जाता है।
  6. हमारी शिक्षण पद्धति और शिक्षण नीतियां इस बात को प्रसारित करने में असफल रही हैं कि भाषा ज्ञान के आदान-प्रदान का एक माध्‍यम बस है, शिक्षा का उद्देश्‍य विद्यार्थी में सोचन-समझने की क्षमता का विकास करना है। और यह क्षमता तब ज्‍यादा प्रभावशाली तरीके से विकसित होती है जब हम अपनी भाषा में शिक्षा ग्रहण करते हैं। अपनी भाषा में शिक्षा नहीं मिलने और अपनी भाषा के प्रति सम्‍मान का भाव नहीं होने के कारण आज भारत में ज्ञान के स़ृजन और शोध प्रवृत्ति का ह्रास हुआ है।
  7. हमारी सरकारे और प्रशासनिक नीति-निर्माता चीन और जापान जैसे देशों के बरअक्‍स अपनी भाषा को प्रसारित करने, आत्‍मनिर्भर बनने और अपनी भाषा को महत्‍व एवं रोजगार पैदा करने में उतने कारगर नहीं रहे हैं। आज़ादी के बाद भाषा के आधार पर राज्‍यों का गठन होने और भाषा को लेकर हुए आंदोलनों के बावजूद भाषा को लेकर जमीनी स्‍तर पर रणनीतिक अभाव देखने को मिलता है।

 

हिंदी भारत के लगभग 40 प्रतिशत लोगों की पहली भाषा है और लगभग 30 प्रतिशत लोगों की दूसरी भाषा है अर्थात ऐसे लोग जिनको हिंदी का बहुत ज्ञान तो नहीं है किंतु हिंदी भाषा को समझते हैं। मतलब भारत में लगभग 70 प्रतिशत लोगों द्वारा और मारीशस, फिजी, त्रिनिडाड, नेपाल इत्‍यादि देशों में हिंदी भाषा बोले जाने के बावजूद हम अपनी ही भाषा को सम्‍मान की नज़र नहीं देखते हैं, इस भाषा को बोलने वाले लोगों को सम्‍मान नहीं देते हैं और अपने बच्‍चों से उम्‍मीद करते हैं कि वे उस भाषा में अच्‍छा करें? हिंदी आज जो बची-खुची हुई है उसमें सबसे बड़ा योगदान बाज़ार और हिंदी सिनेमा है क्‍योंकि ये दोनो ही इस देश के लोगों पर निर्भर है जोकि अधिकांशत: हिंदी भाषी है। हिंदीभाषी परीक्षार्थियों का अपनी भाषा हिंदी में फेल होना दरअसल हमारी सामाजिक-शैक्षणिक व्‍यवस्‍था और प्रशासनिक नीति-निर्माताओं का फेल होना है। अभी यह शुरूआत है यदि हमने ठीक से आत्‍म-विश्‍लेषण नहीं किया और हमारे बच्‍चों में अपनी भाषा के प्रति आत्‍म-सम्‍मान का भाव नहीं जगा पाएं तो स्थिति और भयावह हो सकती है।

 

 

 

डिस्क्लेमर : उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण जंक्शन किसी भी दावे या आंकड़े की पुष्टि नहीं करता है।

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