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क्या आपने अपने कभी ध्यान दिया है की आपके आस पास जो लोग गरीब होते हैं उनका निरादर करने की हमारे देश में एक परंपरा सी ही बन गयी है । गरीब यानी की हमारे देश के ऐसे लोग जो की या तो हमारे घर या दफ्तर में चपरासी की तरह नियुक्त होते हैं या फिर यह लोग रिक्शा चलाते हैं ऑटो, बस इत्यादि चलाते हैं, सब्जी का ठेला लगा कर सब्जी बेचते हैं या फिर ऐसे ही कोई दूसरा काम करते हैं।
इन लोगों के पास ज्यादा धन भी नहीं होता और यह ज्यादा पढ़े लिखे भी नहीं होते हैं । आपने जरूर कहीं ना कहीं किसी ना किसी अमीर पढ़े लिखे या साख वाले इंसान को आये दिन इन जाहिल लोगों पर चिल्लाते हुए भी देखा होगा । कभी न कभी तो आप खुद भी इन लोगों पर गुस्साए होंगे । इनकी कुछ गलती भी रही होगी मगर खैर उस पर हम इस लेख के अंत में विचार करेंगे ।
अब जो काम पढ़े लिखे लोग हैं उन्हें पढ़े लिखे लोगों से अक्सर दांत, तिरस्कार और बेइज़्ज़ती का सामना करना पड़ता है । कई बार तो कुछ लोग ज्यादा गुस्से में आ कर इन पर हाथ भी छोड़ देते हैं । ऐसे दो वाकये तो मेरे सामने ही हुए हैं । मगर प्रश्न यह उठा है की क्या काम पढ़े लिखे होने से हम इन पर गुस्साने का और इन्हे झिड़कने का अधिकार प्राप्त कर लेते हैं ? और उससे भी बड़ा प्रश्न यह है की क्या पढ़े लिखे इंसानो को ऐसा शोभा देता है।
पढ़ाई तो हमे एक अच्छा इंसान होने का आश्वाशन देती है मगर क्या इस तरह से डांटना या झिड़कना एक अच्छे इंसान की निशानी है ? क्या आपको कोई डांटता है तो आपको अच्छा लगता है ? या फिर यह पढाई जिस पर हम इतना अभिमान कर बैठते हैं हमे उतना अच्छा इंसान बनाने का काम नहीं करती जितना की हम सोचते हैं । यहाँ प्रश्न आपकी अच्छाई पर नहीं बल्कि हमारी आधुनिक पढ़ाई की शैली पर है ।
अब आइये उस पहलु पर विचार करते हैं जिस में हम या और कोई भी इंसान इन्हे डांटने पर विवश हो जाता है । पहली बात तो यह की गलती किसी भी इंसान से हो सकती है । मगर अगर यही गलती किसी अमीर, रसूख वाले या फिर ऐसे किसी इंसान से होती है जो की आपसे जयादा ताकतवर है तो क्या आप इसी तरह से उसे भी डांटते ? नहीं न । बात इसकी नहीं है की उनकी गलती है, बात यह है की वह हालात के मारे हैं।
नोट : यह लेखक के निजी विचार हैं और इसके लिए वह स्वयं उत्तरदायी हैं।
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