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हे दुनिया के सरताज

vikash kamboj
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 vikash kamboj
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(1) हे दुनिया के सरताज,
उस जन्नत को फिर ला दे,
इन पेड़ो को फिर लहलहा दे,
प्रकृति को स्वच्छ बना दे,
हवाओ में भर दे खुसबू,
रंगो से इस जमीं को सजा दे,
कहते है जमीं से आसमां तक तू समाया है,
फिर क्यों ये अंधकार की काली छाया है,
मुक्ति दिला जमीं को इस जहर से,
इन्सान ने जो पेड़ो को खिलाया है,
ये धुआं नही दुखो की परछाई है,
अगली पीड़ियों की जिसमे बर्बादी समाई है,
हे प्रभु तू ही दिखा कुछ करिश्मा,
इस इन्सान की तो मति मारी है,
जो जानता है जितना अधिक,
कभी-कभी होता है उतना ही बाधित,
इस इन्सान ने सब कुछ पाया,
शुद्ध वातावरण को खुद अशुद्ध बनाया|

(2) हे दुनिया के सरताज,
उस जन्नत को फिर ला दे,
पशु-पक्षी मिट गये जो जमीन से,
उन्हें फिर जमीं पर बसा दे,
जंगलो में गूंजे उनकी मनमोहक आवाजे,
ऐसी कोई करामात दिखा दे,
कहते है हर जीव में वास है तेरा,
फिर क्या अब अवकाश है तेरा,
चलने क्यों देता है मानव की मनमानी,
इन जीवो की ना इसने कदर जानी,
ये पाप नहीं महापाप है,
बेकसूरों पे किया जिसने अत्याचार है,
हे प्रभु तू ही कर कुछ रहम,
इन्सान तो दानवो का भी सरदार है,
जो जानता है जितना अधिक,
कभी-कभी होता है उतना ही बाधित,
इस इन्सान ने सब कुछ पाया,
खुद की रही फिक्र दुसरो को मिटाया|

(3) हे दुनिया के सरताज,
उस जन्नत को फिर ला दे,
जल में घुला विष निकाल,
जल को अमृत बना दे,
जी चाहे जहाँ प्यास बुझाये,
फिर नदियों में वही जल बहा दे,
कहते है तेरा बख्सा हुआ अमृत है नीर,
फिर क्यों नहीं हुआ तू अधीर,
जिन्दगी का दूसरा नाम है जल,
तलाश है जिसकी ला दे वो कल,
ये जल नहीं विषाक्त जल है,
होता खत्म जिससे बल है,
हे प्रभु तू ही दिखा कुछ कमाल,
इन्सान तो बिलकुल ही खुदगर्ज है,
जो जानता है जितना अधिक,
कभी-कभी होता है उतना ही बाधित,
इस इन्सान ने सब कुछ पाया,
अमृत दिया तुने इसने विष बनाया|

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