Bhavbhoomi
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गेंदा के सुरभित पीले पुष्पों से
वसुधा का नूतन श्रृंगार हुआ ।
छोटे दिवसों और दीर्घ निशा से
शीत ऋतु का विस्तार हुआ ।
प्रातः दूब हरित सजी होती
तुहिन के सुन्दर ,चटक कणों से ।
चढ़ता जाता दिवस जैसे -जैसे
ओझल होता तुहिन नयनों से ।
रवि की मृदु सुखद किरणों से
ऊष्ण देह जाती है अलसाई ।
मन करता घर छोड़ खुले में
लेटा रहूँ कहीं बिछा चटाई ।
आए कोसों की दूरी पार कर
रंग -बिरंगे पंछी , करने प्रवास ।
छटा सरोवरों की बदल गयी है ,
कूजन -कलरव , सहज उल्लास ।
विहंग-कंठ मानो सितार हुआ ।
शीत ऋतु का विस्तार हुआ ।
विकास कुमार
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