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आर्थिक विकास और गरीबी

Bhavbhoomi
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वर्ष 1991 के बाद आर्थिक वृद्धि दर के मामले में भारतीय अर्थव्यवस्था ने काफी तरक्की की है । पिछले 20 वर्षों के दौरान GDP ( Gross Domestic product ) की औसत वार्षिक वृद्धि दर 6 प्रतिशत के आसपास रही है । 2005 से 2008 के बीच औसत वार्षिक वृद्धि दर तो 9 प्रतिशत से भी अधिक थी । आज भारत दुनिया की सबसे तेज गति से विकास करनेवाली अर्थव्यवस्थाओं में एक है यह एक खुश करने देने वाला तथ्य है , परंतु केवल वृद्धि दर से ही वस्तुस्थिति की पूरी जानकारी नहीं मिल सकती । आर्थिक वृद्धि दर के साथ – साथ गरीबी में कमी की दर पर विचार करना भी आवश्यक है क्योंकि विकास का सबसे बड़ा लक्ष्य गरीबी दूर करना ही तो है ।
गरीबी को लेकर विभिन्न विशेषज्ञों ने विभिन्न अनुमान प्रस्तुत किये हैं जिनमें एकरूपता का अभाव है । इस सन्दर्भ में योजना आयोग द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों पर विचार किया जाए । योजना आयोग के अनुसार वर्ष 1993-94 में 36 प्रतिशत गरीबी थी जो 2004-05 में घटकर 27.5 प्रतिशत हो गयी । इन 11वर्षों के दौरान गरीबी में कमी की औसत वार्षिक दर एक प्रतिशत से भी कम है । स्पष्ट है कि आर्थिक वृद्धि दर और गरीबी में कमी की दर के बीच बहुत अंतर है । जिस तरह GDP में वृद्धि हुई उस तरह गरीबी में कमी नहीं हुई ।अब प्रश्न यह है इस स्थिति के क्या कारण हैं ? एक कारण जनसंख्या- वृद्धि है , परन्तु इससे अधिक महत्वपूर्ण कारण यह है कि उच्च आर्थिक वृद्धि दर का लाभ सभी आय -वर्गों में न्यायपूर्ण तरीके से वितरित नहीं हुआ है । गरीबों को आर्थिक विकास का कम लाभ पहुँचा है ।
गरीबी में पर्याप्त कमी नहीं आने के कारण ही भारत आज ग्लोबल हंगर इंडेक्स और मानव विकास सूचकांक में काफी पिछड़ा हुआ है । खाद्य सुरक्षा के मामले में जिस देश की हालत जितनी अच्छी होती है । ग्लोबल हंगर इंडेक्स में उस देश का स्थान उतना ऊपर होता है । भारत को ग्लोबल हंगर इंडेक्स -2011 में 67 वाँ स्थान मिला है । स्पष्ट है कि खाद्य सुरक्षा में भारत की स्थिति काफी कमजोर है । जहाँ गरीबी अधिक होती है वहाँ लोगों को पर्याप्त एवं पौष्टिक भोजन नहीं मिल पाता । मानव विकास सूचकांक जीवन प्रत्याशा ,शिक्षा तथा जीवन- स्तर को लेकर तैयार किया जाता है । मानव विकास सूचकांक -2011 में भारत को दुनिया के 187 देशों में 134 वाँ स्थान दिया गया है । गरीबी जीवन -स्तर निम्न होने का मुख्य कारण है ।
अब समय आ गया है जब नीति -निर्माता केवल वृद्धि दर के आँकड़ों को देखकर ही मुग्ध न हों । वे उच्च आर्थिक वृद्धि दर प्राप्त करने के साथ-साथ गरीबी में कमी को भी आयोजन का मुख्य लक्ष्य समझें । नीतियों में ऐसे परिवर्तन लाएँ जाएँ जिससे तीव्र आर्थिक विकास के लाभ का वितरण न्यायपूर्ण तरीके से हो और गरीबी में तेजी से कमी आए ।

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