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इस देश में बड़ी बड़ी बाते बेशक हो परन्तु क्या हमारे देश के लोग इन बातो को जीवन में उतारेंगे .जैसे हम रिश्वत नही लेंगे ,नही देंगे ईमानदारी से जीवन बिताएंगे .यह एक सवाल है जिसका जवाब हर आदमी अपने अपने हिसाब से दे सकता है .लेकिन ७० पर्तिशत लोग आपको यही कहते मिलेंगे यह सब कहने में ही अच्छा लगता है ज़रा सोचिये आपके गाव में क्या कोई गरीब ईमानदार व्यक्ति कभी सरपंच पद पर नियुक्त हुआ है ? जरा सोचिये क्या आगे किसी मध्यमवर्गीय जो चुनाव में रुपया न बाट सके ,दारू ,या मिठाई चाए पानी न पिला सके वह सरपंच बन सकता है .उसकी काबलियत अलग चीज़ है लेकिन क्या समाज उसकी बातो पर भी गोर करता है जो बिना गाडियों के काफिले के आपके घर वोट मांगने आता है .विधायक ,हो या लोकसभा का का कोई ईमानदार व्यक्ति यदि उसका ब्योत पैसो का नही है तो क्या हम उसकी बातो को गंभीरता से सुनते है ? गरीब आदमी के घर कोई गम हो दुःख हो तो कितने देश के एसे नागरिक है जो उसका हाल भी पूछने जाते है जब की अमीर पूंजीपति के घर उसकी ख़ुशी में भी बिन बुलाये ही दोड़े जाते है .अब आप अन्ना प्रकरण को ही लीजिये जब अन्ना जी को अनशन के लिए इजाज़त नही मिल रही थी तब कितने बड़े लोग ऐसे थे जो उनके साथ थे लेकिन जब उनका आन्दोलन सफल होता दिखा तब देखिये कैसे सभी पकी हुई खीर खाने दोड़ पड़े .अभिनेता ,गायकार और भी तमाम तरह के लोग शोहरत पाने के लिए मंच पर आने लगे .पैसो के आगे सब नतमस्तक क्यों है इस देश में कहा खो गया हमारा सवाभिमान कहा खो गयी हमारी संस्कृति .
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