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बेनकाव हुए कथित उदारवादी

चैतन्य
चैतन्य
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उदारवादियों का उग्र प्रदर्शन

अमरीका में राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे आने के बाद शुरू हुआ हिंसक प्रदर्शनों का सिलसिला एक पखवाड़ा बीत जाने के बाद भी थमने का नाम नहीं ले रहा है। नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ हो रहे इन उग्र प्रदर्शनों में मुसलमानों और मैक्सिकन के साथ खुद को उदारवादी, धर्मनिरपेक्ष और मानवाधिकारवादी बताने वाले बढ़-चढ़ का हिस्सा ले रहे हैं। चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप को लोकतांत्रिक व्यवस्था के सर्वथा प्रतिकूल बताने वाले ही पराजय के बाद जनादेश स्वीकार करने को तैयार नहीं है। ये प्रर्दशनकारी ‘ट्रंप हमारे राष्ट्रपति नहीं’ और ‘निर्वाचन मंडल भंग करो’ जैसे नारे लिखी तख्तियां हाथ में लिए हुए हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे बड़ा हिमायती होने का दावा करने वालों के प्रदर्शनों के बाद उनकी फासीवादी सोच बेनकाब हो गई है। महिलाओं के खिलाफ की गई अमर्यादित टिप्पणियों के लिए ट्रंप सबसे ज्यादा आलोचना हुई थी, लेकिन अब चुनाव के नतीजे आने के बाद महिला अस्मिता और अधिकारों के पैरोकार उन प्रदर्शनों में भी बेहिचक हिस्सा ले रहे हैं जिनमें लोग ट्रंप की पत्नी मेलेनिया की नग्न तस्वीरों को हाथों में लिए हुए हैं। यह तस्वीरें सुपर मॉडल रह चुकी मेलेनिया ने अपने मॉडलिंग कैरियर में फोटोशूट के दौरान खिंचाई थीं। इन कथित उदारवादियों के इस दोहरे चरित्र और असहिष्णुता के कारण ही अमरीकी जनता ने चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में खुलकर अपने विचार नहीं रखे जिसकी वजह से राष्ट्रपति चुनाव को लेकर कराए गए लगभग सभी सर्वेक्षण सटीक अनुमान लगा पाने में असफल रहे।

अमरीकी में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान मीडिया का एक बड़ा वर्ग रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ खड़ा हो गया। उसने न सिर्फ व्यावसायिक मर्यादाओं को ताक पर रखकर निष्पक्षता के सिद्धांत को किनारे कर दिया बल्कि निर्लज्जतापूर्वक इसका ऐलान भी किया। टाइम मैग्जीन और वाशिंगटन पोस्ट ने ट्रंप को राष्ट्रपति पद के अयोग्य मानते हुए साफ तौर पर कह दिया था कि ऐसे उम्मीदवार की मौजूदगी में निष्पक्षता के सिद्धांत पर चलना अवैध को वैधता प्रदान करना होगा। इन चुनावों के दौरान अमरीकी मीडिया खुद को निर्णायक की भूमिका में मानने की भूल कर बैठा नतीजन हिलेरी के साथ उसे भी करारी हार का सामना करना पड़ा। मीडिया रिसर्च सेंटर के एक सर्वे के मुताबिक एबीसी, सीबीएस और एनबीएस टीवी चैनलों के बारे मेंं 90 प्रतिशत से अधिक लोगों का मानना है कि उनका रवैया ट्रंप के खिलाफ अनावश्यक रूप से सख्त था। सीएनएन तो पूरे चुनाव अभियान के दौरान इस 70 वर्षीय उम्मीदवार की खिल्ली ही उड़ाता रहा।

चुनाव के दौरान डोनाल्ड ट्रंप द्वारा उठाए गए मुद्दों को मीडिया ने कभी गंभीरता से नहीं लिया। उनके खिलाफ माहौल तैयार करने में जुटे इन लोगों ने इन विषयों को जानबूझ कर सोची समझी रणनीति के तहत तोड़मरोड़ कर पेश किया। अमरीका में रह रहे तकरीबन 30 लाख अवैध आप्रवासी बहां की जनता के अधिकारों का हनन कर रहे है। मैक्सिको से अवैध आव्रजन अमरीकन जनता के लिए बड़ी समस्या है इसके समाधान के लिए  ट्रंप ने सीमा पर दीवार खड़ी करने का वायदा किया था, ताकि अमरीकी नागरिकों और वैध रूप से रह रहे आप्रवासियों के हितों की रक्षा हो सके। ट्रंप ने इन अवैध आप्रवासियों के खिलाफ कार्रवाई की बात की तो अधिकतर मीडिया संस्थानों ने इसे ऐसे प्रचारित किया जैसे वह राष्ट्रपति बनने के बाद सभी आप्रवासियों को अमरीका से बाहर निकाल देंगे। ट्रंप इस्लामिक कट्टरपंथियों के खिलाफ अपने सख्त रूख के कारण भी विरोधियों के निशाने पर रहे। हालांकि मुसलमानां समेत पूरी दुनिया इन दिनों कट्टपंथी इस्लामिक आतंकवाद से पीड़ित है। लेकिन कट्टरपंथियों को अमरीका में न घुसने देने का वायदा करने पर छद्म धर्मनिरपेक्षों और मुसलमानों के साथ मीडिया का एक बड़ा वर्ग रिपब्लिकन उम्मीदवार के खिलाफ मुखर हो गया। बाकायदा अभियान चलाकर मुसलमानों के वोट बनवाए गए ताकि वे ट्रंप के खिलाफ मतदान करके उनको राष्ट्रपति बनने से रोक सकें। स्पष्टतौर पर ट्रंप कट्टरपंथी आतंकवादियों के खिलाफ बोल रहे थे लेकिन अमरीका समेत दुनियाभर के मुसलमानों ने माना कि वे इस्लाम के विरोध में है। उदारवादी होने का दावा करने वालों ने ट्रंप की इस हद तक मुखालफत की कि ऐसा लगने लगा जैसे वे कट्टरपंथियों के पक्ष में खड़े हुए हैं। अमरीका की जनता का एक बड़ा वर्ग 9/11 के आतंकी हमले में गिराए गए ट्बिन टॉवर की खाली पड़ी जमीन (ग्राउंड जीरो) पर मस्जिद बनाने के खिलाफ है। लेकिन इस्लामिक आतंकवाद का दंश झेल रही अमरीकी जनता की भावनाओं को दरकिनार करके राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ग्राउंड जीरो पर 13 मंजिला मस्जिद बनाने की मांग का समर्थन किया था।

छद्म धर्मनिरपेक्षता और उदारवाद के नाम पर इस्लामिक कट्टरपंथियों के खिलाफ नरम रवैये के कारण अमरीकी जनता का एक बड़ा वर्ग तमाम खामियों के बावजूद रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप के पक्ष में खड़ा हो गया। लेकिन दंभ भरे उदारवादियों के उपहास का पात्र बनने के भय से उन्होंने कभी खुलकर अपनी भावनाओं को जाहिर नहीं किया। इसी का परिणाम था कि अमरीका में चुनाव पूर्व कराए गए लगभग सभी सर्वेक्षणों के नतीजे ध्वस्त हो गए। अवैध आव्रजन के कारण बेरोजगारी और इस्लामिक कट्टरपंथियों के आतंकवाद से पीड़ित अमरीकी जनता को डोनाल्ड ट्रंप के मुखर राष्ट्रवाद ने उदारवादियों की छद्म धर्मनिरपेक्षता के मुकाबले ज्यादा आकर्षित किया और मतदान के दिन उन्होंने शांति से ट्रंप की नीतियों पर मुहर लगा दी।

अमरीकी चुनाव की तरह ही 2014 के आम चुनावों के दौरान भारत में भी प्रधानमंत्री पद के भाजपा उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ जमकर विषवमन किया गया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तो उन्हें मौत का सौदागर भी कह दिया। पुलिस मुठभेड़ में मारी गई इशरत जहां के संदिग्ध आचरण और आतंकवादियों के साथ उसके संबंधों के सुबूतों को दरकिनार करके उसे मासूम और बेगुनाह बताने की कोशिश की गई। जांच एजेंसियों और न्यायालय से निर्दोष साबित होने के बावजूद नरेंद्र मोदी को गुजरात दंगों का सूत्रधार बताया जा रहा है। लेकिन जिस गोधरा कांड की वजह से गुजरात दंगे शुरू हुए उसको अंजाम देने वाले मुस्लिम कट्टरपंथियों की भर्त्सना करना तो दूर धर्मनिरपेक्षता के अलमबरदार गोधरा कांड को भी ‘भगवा ब्रिगेड’ की करतूत साबित करने में जुटे हुए हैं। अमरीकी चुनाव की तरह ही आम चुनावों के दौरान कांग्रेस ने मुसलमान वोटों को लामबंद करने के लिए जामा मस्जिद के इमाम बुखारी से कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने की अपील करवाई थी। लेकिन साम्प्रदायिक रूप से अति संवेदनशील उत्तर प्रदेश में राजग को 73 सीटें जिता कर जनता ने इसका जवाब दे दिया। अब मोदी सरकार बनने के बाद भी उस पर असहिष्णुता फैलाने, दलित और गरीब विरोधी होने के आरोप लगाए जा रहे हैं। फिलवक्त नोट बदलने के लिए बैंकों के सामने लाइन में खड़े लोग भले सरकार के निर्णय के साथ हैं लेकिन मोदी को गरीब विरोधी बताने वाले मुखर हैं। मोदी विरोधी सरकार की नीतियों के पक्ष में कोई भी तर्क सुनने को तैयार नहीं हैं। वे सरकार नीतियों का समर्थन करने वालों की बात सुनने के बजाय उनकी खिल्ली उड़ा रहे हैं। सोशल मीडिया पर ‘मोदी भक्त’ शब्द को एक गाली की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। भाजपा और संघ से संबंध न रखने वाले सरकार की नीतियों के समर्थक खामोश हैं संभवतः वे फिर मतदान दिवस के इंतजार में हैं। डोनाल्ड ट्रंप को सिर्फ इंटरटेनमेंट पेज पर छापने की बात कहने वाले हाफिंगटन पोस्ट और उनको ‘जोकर’ तक कहकर भाषाई मर्यादा को तार तार करने वाले मीडिया के लिए अमरीकी चुनाव एक सबक है। दंभ से भरे मीडिया और अतिवादियों के अमर्यादित आचरण के खिलाफ लोगों की प्रतिक्रिया खामोशी के साथ धमाका करती है।

विकास सक्सेना

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