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वर्तमान युग में विरोधी राष्ट्र से हो रही समस्यायों से निजात पाने के लिये कोई भी देश युद्ध का सरलतम रास्ता ही चुनता है. आज आधुनिक विज्ञान के सहयोग से हर देश घातक औजारो का निर्माण कर रहा. हर एक मुल्क के बीच एक होड़ सी लगी हुई है कि कौन कितने घातक हथियार बना सकता है. हम मानव के शैतानी दिमाग और उसके गिरते स्तर का अन्दाजा उत्तर कोरिया द्वारा किये गये हाईड्रोजन बम के परिक्षण से लगा सकते हैं. एक तरफ जहां उत्तर कोरिया जैसे देश अपनी ताकत बढाने के लिये इन खतरनाक और अधिक मारक क्षमता वाले आधुनिक हथियार तैयार कर रहे है, वही दूसरी तरफ आईएसआईएस जैसा आतंकवादी संगठन हथियारो के बल पर अपने पांव जमाने की कोशिश कर रहा है. हर तरफ हिंसा का वातावरण है. अतीत में भी अनेको बार युद्ध हुए है और धरती खुन से नहा गई है. प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में जो विनाश और नरसंहार हुआ, वह सर्वविदित है.पर शायद मानव सभ्यता अब तक उन युद्धो से कुछ सीख नही सकी है. अगर युद्ध और हिंसा से शांति आती तो शायद आज का आधुनिक समाज इतना अशांत न होता. प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइस्टीन से किसी ने एक बार तीसरे विश्व युद्ध के सम्बन्ध में पूछा, तो उन्होंने उत्तर दिया कि तीसरे विश्व युद्ध के बारे में तो कुछ नहीं कहा जा सकता, पर चौथे विश्व युद्ध के सम्बन्ध में जरुर कुछ-कुछ कल्पना की जा सकती है.इसी कल्पना को स्पष्ट करते हुए आइस्टीन ने कहा था कि तीसरे विश्व युद्ध के बाद यदि कोई लड़ाई लड़ी गई, यदि इसके बाद थोड़े-बहुत मनुष्य बचे और उनमें कोई युद्ध हुआ तो वह युद्ध ईंट, पत्थरों से लड़ा जायगा.यानी तीसरे विश्व युद्ध में इतना प्रलयंकारी विनाश होगा कि मनुष्य जाति का अस्तित्व बचेगा, इसमें सन्देह है.यदि मनुष्य का अस्तित्व किसी प्रकार बचा रहा तो भी यह निश्चित है कि सभ्यता और संस्कृति का तो अन्त हो ही जायगा…आज आइंस्टीन के इस कथन में सत्यता नजर आती है. हमने इतने घातक हथियार तैयार कर लिये है की अगर कोई विश्वयुद्ध हो शायद ही हम में से कोई बच पाये. आज जरुरत है की हर राष्ट्र इस विषय में सोचे की मानव समाज किस दिशा में प्रगति कर रहा है.कही हम प्रगति के नाम पर अपने विनास का रास्ता तो नही तैयार कर रहे.
•विवेकानंद विमल
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