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फोन तो बंद कर सकते हैं, पर इन टावरों का क्या करें ?

विमर्यांजलि
विमर्यांजलि
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आज के दौर में मोबाइल हर किसी के लिए एक महत्वपूर्ण जरूरत बन चुका है। एक दूसरे से जुड़े रहने का सबसे सरलतम साधन मोबाइल और इंटरनेट ही है। चाहे किसी को संदेश भेजना हो या किसी से बात करनी हो मोबाइल के माध्यम से यह कार्य हम आसानी से कर सकते हैं। खासकर जब से मोबाइल की दुनिया में ‘स्मार्टफोन’ की तकनीक का पदार्पण हुआ है तब से इस क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव व प्रगति हुए हैं। लेकिन तकनीकी विकास की इस अंधी दौड़ में कुछ चीजें ऐसी भी हैं जिन पर हम ध्यान देना भूल गए और फलस्वरुप आज उससे हमें नुकसान भी झेलना पड़ रहा है। मोबाइल पर संदेशों के आदान-प्रदान में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले टावर और उससे निकलने वाले रेडिएशन इन्हीं में से एक है। वर्तमान समय में हम में से अधिकतर लोगों का काफी समय मोबाइल पर ही बीतता है, लेकिन इसकी जरूरत के आगे बेबस हम इंसान शायद ही समझ पाते हैं कि जब भी हम उसका प्रयोग अपने शरीर के करीब रखकर करते हैं या उसे अपने सिर के आसपास रख कर सो जाते हैं। तब भी उससे रेडिएशन निकलते रहते हैं जो हमारे लिए खतरनाक है।
लेकिन, देखा जाए तो मोबाइल से निकलने वाली तरंगे उन रेडियोएक्टिव तरंगों के मुकाबले नगण्य है जो हमारे आस पास खड़े टॉवरों से निकलते हैं। मोबाइल टॉवरों के मकड़जाल के बीच बसे शहर, कस्बे या बस्तियों की हालत आज माइक्रोवेव ओवन में पकते भोजन के समान हो चुकी है जहां कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहां इनका रेडिएशन ना पहुंच रहा हो। यहां तक कि जब हम सोते हैं तो अपनी सुरक्षा के लिए हम मोबाइल स्विच ऑफ या बंद कर सकते हैं या उसे दूर रख सकते हैं ताकि उससे निकलता रेडिएशन हम तक ना पहुंचे, परंतु दुर्भाग्यवश हम उन टावरों का कुछ नहीं कर सकते जो हमारे दरवाजे के बाहर खड़े होकर चौबीसों घंटे रेडियोएक्टिव तरंगें छोड़ती रहती है। यद्यपि चौंकाने वाली बात यह भी है कि आज भारत हर क्षेत्र में प्रगति कर रहा है परंतु जब बात लोगों के सेहत की आती है तो मुश्किल से ही कोई इस विषय पर ध्यान देता नजर आता है। इसी का नतीजा है कि हमारे देश में ऐसा कोई कठोर कानून नहीं है जो निर्माण कंपनियों को बाध्य कर सके कि वह आबादी से दूर किसी सुरक्षित स्थान पर टावर खड़े करें।
ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिनमें इन टावरों के घातक परिणाम को देखा जा सकता है। जो लोग टावर के नजदीकी क्षेत्रों में बसे होते हैं उन पर इसका सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। फलस्वरूप ब्रेन कैंसर, सिर दर्द और जन्म से विकलांगता आदि कई बीमारियों का खतरा बढ़ता है। अंतरराष्ट्रीय कैंसर अनुसंधान एसोसिएशन (आईएआरसी) के थिंक टैंक ने भी टावर को कैंसर का एक बड़ा कारक माना है। इसके अलावा भी यह बात सर्वविदित है कि गर्भवती महिलाओं को चिकित्सक एक्स-रे की सलाह नहीं देते हैं क्योंकि इसकी खतरनाक तरंगों से होने वाले बच्चे पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। अब सवाल यह है की आज के मोबाइल और उसके टावरों से निकलने वाली तरंगे कितनी सुरक्षित हैं? और क्या लोगों को इस विषय में नहीं सोचना चाहिये ?
पश्चिमी विकसित देशों में मोबाइल टावरों को घनी आबादी वाले क्षेत्रों या घर की छतों पर लगाने की इजाजत नहीं दी जाती। उन्हें आबादी से दुर यानी किसी पहाड़ी या राजमार्गों पर स्थापित किया जाता है ताकि लोग हर वक्त उसके सीधे सम्पर्क में न रहें। हालांकी हमारे देश के कई राज्यों के उच्च न्यायालयों ने इस संदर्भ में कुछ आदेश दिये हैं। इसमें मोबाईल कंपनीयों को हिदायत दी गई है की स्कुलों और अस्पतालों के करीब टावरों को न स्थापित किया जाए, परंतु इसका कड़ाई से पालन होता नहीं दिख रहा है। इसके प्रमाण देश भर में देखे जा सकते हैं।
सरकार व लोगों को अपने आस-पास खड़े हो रहे इन टावरों से बचने के उपाय ढूढने होंगे अन्यथा आने वाले वर्षों में इसके भयावह परिणाम देखने को मिल सकते हैं। आज के तकनिकी दौर में जब इंटरनेट और उसके अनेकों एप्स हमारे लिये जीवनरेखा बन रहे हैं , ऐसे में हमें यह भी तलाशना होगा कि कैसे हम हमारे स्वास्थ्य और हमारे दरवाजे के बाहर खड़े इन टावरों के बीच सामंजस्य बैठा सकते हैं।
•विमर्या

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