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दिल्ली में कुछ दिनो पहले विश्व सुफी फोरम का आयोजन हुआ. यह आयोजन कई मायनो में खास माना जा सकता है. एक तरफ जहां आज पूरा विश्व कट्टरता और सांप्रदायिकता की बेरहम आग से झुलस रहा है, आईएसआईएस जैसा संगठन बंदूक के दम पर दुनिया में अपने पांव जमाने की कोशिश कर रहा है वही दूसरी तरफ समानता, एकता और भाईचारे की पताका लिए विश्व के अनेक देशों से आए इन सूफी गुरुओं का एक मंच पर एकत्रित होना निश्चित रूप से ही एक शुभ संकेत था. आज सिर्फ सांप्रदायिकता के नाम पर लगभग हर रोज विश्व के किसी ना किसी हिस्से में बम धमाके होते हैं. इन हमलों में न जाने कितने लोग अपनों को खो देते हैं. अभी हाल में ही कुछ दिनों के अंतराल पर विश्व के दो कोनों में दो बडे हमले हुए. पहला ब्रुसल्स और दूसरा पाकिस्तान में. दोनों में ही काफी क्षति हुई सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों घायल है और जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं. विश्व के लगभग सभी देश आज इसी प्रकार आतंकवाद से संघर्ष कर रहे हैं. हर तरफ से यही प्रयत्न किया जा रहा है कि किसी प्रकार आतंकवाद के इस बढ़ते नापाक कदम को रोका जाए. हर देश अपनी-अपनी क्षमता के अनुरुप कोशिश कर रहा है. अमेरिका और रुस जैसे शक्तिशाली देश लगातार गोला-बारूद से उनके ठिकानों पर आक्रमण करके उनका अस्तित्व मिटाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्हें कुछ हद तक कामयाबी भी मिली है. परंतु हमें यह भी समझना होगा की सिर्फ बंदूक और गोला-बारुद के बल पर हम आतंकवाद के खत्म होने की उम्मीद नहीं कर सकते. आज विश्व को जरूरत है कि वह हर क्षेत्र से आतंकवाद को रोकने की कोशिश करें और उन स्रोतों पर रोक लगाई जाए जिनकी बदौलत ये आज विकसित हो रहे है. आज काफी संख्या में लोग इन संगठनों के उल्टे-सीधे प्रलोभन में फंसकर इनकी तरफ आकर्षित हो जाते हैं और इन आतंकवादी संगठनों तक पहुंच कर ये लोग अपने गलत मंसूबों को अंजाम देते हैं. आज जरुरत है कि इन भटकते युवाओं एवं लोगों को इन आतंकवादी संगठनों के बहकावे में आने से रोका जाए ताकि वह अपनी शक्ति एवं कौशल क्षमता का प्रयोग गलत स्थान पर न करे.
भारत में हुए विश्व सूफी फोरम का आयोजन भी इसी दिशा में एक कदम माना जा सकता है. सुफीवाद हमेशा से ही शांति, सौहार्द और मानवता जैसे मानवीय गुणों में विश्वास करता रहा है. उनके नज़रों में ना कोई ऊंचा है न नीचा ,सभी एक समान है. मशहूर सूफी संत बुल्ले शाह ने कहा था कि ‘ईश्वर सभी के दिल में रहते हैं’. इसी बात को आगे बढ़ाते हुए दुसरे शब्दों में हजरत निजामुद्दीन कहते हैं कि ‘परवरदिगार उन्हें प्यार करते हैं जो इंसानियत को प्यार और सम्मान देते हैं’. लेकिन शायद आज यह बात आतंक के आकाओं के गले नहीं उतरती है. उनके लिए अन्य संप्रदाय को मानने वाले लोग न तो इंसान हैं,न ही ईश्वर केअंश. उन्होंने जिहाद जैसे पवित्र शब्द का भी दुरूपयोग करके आज पूरे विश्व में हिंसा फैलाने का काम किया है. वह धर्म की आड़ में अपना राज स्थापित करना चाहते हैं. वो चाहते हैं कि लोग उनकी सुने और उनके गुलाम बने रहें. इसलिए आज के इस खौफनाक परिवेश से विश्व को बाहर लाने में सूफीवाद एक अहम योगदान दे सकता है. यदि भटकते युवकों को सुफीयत की राह दिखाई जाए तो सब कुछ बदल सकता है. प्राचीन सूफी विद्वानों ने भी सूफीवाद की व्याख्या एक ऐसी परंपरा के रुप में की है जिसका लक्ष्य सभी के हृदय को स्वच्छ बनाना तथा अन्य सांसारिक वस्तुओं से विमुख करके ईश्वर की ओर मोड़ना है.
इस विश्व सूफी फोरम का आयोजन इस मायने में भी खास माना जा सकता है क्योंकि इस बार इसकी शुरुआत भारत से हो रही है. भारत जैसे देश में के लिए यह गर्व की बात है किहमारा देश आज भी विश्व के उन कुछ गिने चुने देशों में शामिल है, जिसने आजादी के छः दशक बाद भी अपनी धर्मनिरपेक्षता नहीं खोई. इस देश ने कभी भी कट्टरता को पांव पसारने नहीं दिया. हाल के दिनों में जब वैश्विक स्तर पर सुफीयत अपनी पहचान होने के कगार पर है, ऐसे में भारत जैसे राष्ट्र की अलग अहमियत है क्योंकि इस देश में सूफीवाद सदा से ही फली-फुली है. इस देश में न सिर्फ मुस्लिम बल्कि अन्य मतों के लोगों ने भी दिल खोल कर सूफीवाद को अपने अंदर समेटा है. सुफीयों ने भारत की धरती पर जन्में अन्य धर्मों से बहुत कुछ लिया है तो बहुत कुछ दिया भी है. जैसे माला जपने की क्रिया, शहद का दैनिक जीवन में निषेध, अहिंसा पालन, योग आदि चीजें उन्हें भारत से ही मिली है. लेकिन साथ ही साथ उन्होंने भी भारतीय सभ्यता और संस्कृति को अपना अमूल्य योगदान दिया है. यहां के संगीत, साहित्य, अध्यात्म आदि क्षेत्रों में सुफीयों का योगदान प्रत्यक्ष तौर पर देखा जा सकता है. उनकी काव्य रचनाएं आज भी भारतीय साहित्य जगत की शोभा बढ़ा रही है. फरीद, जयसी, उस्मान सरिखे कवियों ने अपनी रचनाओं में न केवल ईश्वरीय प्रेम को उकेरा अपितु उन्होंने भारतीय जनमानस तथा संस्कृति को भी अपनी कविताओ में समेटने की कोशिश की. भारतीय संगीत के विकास में भी सुफीयों का महत्वपूर्ण योगदान है. इसमें आमिर खुसरो का नाम सबसे अग्रणी माना जाता हैं.
भारतीय धर्मों और सूफीवाद की साझा संस्कृति की बदौलत ही आज इस देश में सौहार्दता, सहिष्णुता और धर्मनिरपेक्षता इस आयाम तक पहुंच सकी है. विश्व सूफी फोरम के मंच से प्रधानमंत्री मोदी ने भी यही बात कही कि ‘भारत सिर से पांव तक सोहार्द का प्रतीक राष्ट्र है और हिंसा के बढते माहौल में सूफी ही उम्मीद का नूर है और शांति की आवाज है’. इसलिए अगर विश्व से आतंक का साया मिटाना है तो अवश्य ही भारत तथा भारत जैसे अन्य देशो को भी सुफीयों के साथ मिल कर विश्व भर में शांती स्थापित करने की कोशिशे करनी होगी.
•विवेकानंद विमल ‘विमर्या’
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