- 19 Posts
- 1 Comment
2016 आने वाला है. हर वर्ष कि भांती इस वर्ष भी लोग अंग्रेजी नववर्ष का धूम धाम से स्वागत करते नजर आयेंगे. वैसे तो हर दिन नया ही होता है.हर सुबह सूरज कि किरण नया सवेरा लेकर ही आती है. पर ज्योतिष और विज्ञान के गणित ने समय के सीमा को बांध दिया .और इसी से नव वर्ष का भी उदय हुआ. परंतु चाहे वह अंग्रेजी नववर्ष हो या विक्रम संवंत का नया साल,तो उसे मनाने का सलीका सीखना भी जरुरी है.एक तरफ जहाँ लोग एक दूसरे को नव वर्ष के बधाई संदेश देंगे,नए साल मे कुछ नया और अच्छा करने का संकल्प ले रहे होंगे.तो दूसरी तरफ समाज का एक तबका ऐसा भी होगा जो पल पल बढ़ती आधुनिकता में संस्कारों की बली चढ़ा कर फुहड़ता का आवरण ओड़ता नजर आयेगा. 31 दिसंबर की रात हुड़दंग की रात बन जायेगी.खास कर आधुनिकता से ग्रसित नई पीडी नए साल का स्वागत हूल्ड़बाजी से करती नजर आयेगी.सारी रात पार्टी का दौर चलेगा.इन पार्टीओ मे न जाने कितनी ही शराब की बोतले फुटेंगी.कुछ खास किस्म के विकसित लोग जगह जगह जुवे के अड्डे लगा जम जायेंगे. डीजे के कान फ़ाडू आवाज और अश्लील गानो पर लोग अपने नृत्य कौशल का प्रदर्शन करना भी नहीँ भूलेंगे.
लेकिन सोचने वाली बात ये है कि भला किस बात की इतनी खुशी?आखिर किस बात पर हम अपने सारे संस्कारो की मर्यादा को तार तार कर देते है. हां, मानता हुं नया साल है,खुशी तो बनती ही है.पर इसका मतलब ये तो नही कि रात को शराब कि पार्टीयां हो,पुलिस अलर्ट रहे और किसी का आने वाला नया साल परेशानीयों से उलझ जाये. ऐसा एक भी नया साल नही गुजरता है, जब हम नव वर्ष के अगले दिन अखबार के पन्ने उलटते हों और उसमे दुर्घटनाओ कि खबर ना हो.नव वर्ष मनाने के और भी अच्छे तरिके हो सकते है.शराब पी कर हुल्लड़बाजी करने या जूए खेल कर पैसे बर्बाद करने कि बजाय उस पैसे से ठंड में ठिठुरटे किसी गरीब को हम कंबल या कपडे भी बांट सकते है.नव वर्ष का अच्छे कर्मो में सदउपयोग कर उसे यादगार भी बना सकते है.
•विवेकानंद विमल
Read Comments