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फिल्म ओम शांति ओम में शाहरुख खान ने एक डायलॉग कहा था कि अगर किसी चीज को दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने की कोशिश में लग जाती है। यह सच भी है, अगर हौसले बुलंद हो तो मुसीबतें हमारे राह में रोड़ा नहीं बन सकतीं। चाहे कितनी भी कठिनाई क्यों ना आए आप अपनी मंजिल तक पहुंच ही जाएंगे। पिछले दिनों पुणे में एक 94 वर्षीय महिला ने चुनाव जीतकर एक बार फिर ऐसे जुमलों को सही ठहरा दिया। मंगलवार को जब 94 वर्षीय गंगूबाई नीवरूत्ती भामबुरे ने पुणे के बंबुरवाड़ी गांव से निर्विरोध सरपंच के पद के लिए चुनी गई तो ग्रामीणों और समर्थकों के खुशी का ठिकाना न रहा। आस-पास के गांव और पंचायत से लोग उन्हें बधाई देने पहुंच रहे हैं। आमतौर पर लोगों द्वारा ‘आजी’ कह कर पुकारी जाने वाली गंगूबाई पुणे जिले और शायद देश की अबतक की सबसे बुजुर्ग सरपंच है।
खास बात यह है कि जिस उम्र में लोग अपनी सारी क्रियाशीलता को छोड़कर अपने अंतिम सांसो के साथ भगवान का नाम लेने में लगे रहते हैं कि उन्हें कुछ दिन और जीने को मिल जाए। उस उम्र में आजी ‘नाऊ इट्स टाइम टू वर्क’ कह कर सबको चौंका देती हैं। अपने लोगों, समर्थकों और गांव के लिये कुछ बेहतर करने की उनकी चाहत किसी को भी उनका मुरीद बनाने के लिये काफी है। वो जितने सम्मान और आदर भाव से लोगों की बातें सुनती हैं, उतनी ही चपलता व मुखरता से सवालों का जवाब भी देती हैं। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने पुत्र की उम्र के समतुल्य बता कर उनके साथ एक दिली रिश्ता बनाने की कोशिश करती हैं, तो प्रधान मंत्री को खत लिख कर अपने सात गांव के लगभग 250 किसानों के 1000 हेक्टेयर सूखे जमीन तक पानी पहुंचाने की उम्मीद के साथ मांग करने का भी आश्वासन देती है।
देखा जाए तो साक्षरता के लिहाज से अंगूठाछाप गंगुबाई कभी स्कूल नहीं गईं। लेकिन वह आज एक साक्षर युवती की तरह चलना चाहती हैं, एक शिक्षक की तरह बोलना चाहती हैं। खास बात यह भी है कि यह कोई पहली दफा नहीं है जब उन्होंने कोई चुनाव जीता है। पहले भी उन्होंने ग्राम पंचायत चुनाव में एक 30 वर्षीय स्नातक महिला को हराया था, जो एक राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखती थी।
भारत को युवाओं का देश कहा जाता है। युवा शक्ति और ऊर्जा को हमारे राष्ट्र का प्रतीक माना जाता है। लेकिन जब गंगुबाई जैसे बुजुर्ग हमारे सामने खड़े होते हैं, तो लगता है जैसे हमने अपने बुजुर्गों के संकल्प व शक्ति को आंकने में थोड़ी भूल कर दी है। फिर चाहे वह देश के प्रथम नागरिक हों या कोई आम बुजुर्ग। हर तबके में हमें ऐसे वृद्ध मिल जाते हैं जो सभी के लिए प्रेरणा स्रोत है। शुरूआत अगर प्रथम नागरिक या देश के सर्वोच्च पद से की जाए तो डॉ.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम और प्रतिभा पाटिल जैसे लोग प्रेरणा दाई है। मिसाईल मैन कलाम साहब जहां अपने अंतिम दिनों में भी उतने ही सक्रिय व तरोताजा थे जितने की पहले। वृद्धावस्था में भी काम के प्रति उनके लगन और समर्पण को देख कर लोग दंग रह जाते थे। शायद यही वजहें थीं जिसके कारण आज वह देश के सबसे लोकप्रिय राष्ट्रपतियों में से एक है। वहीं प्रतिभा पाटिल इस देश की पहली महिला राष्ट्रपति थी। साथ ही साथ उस उम्र में भी उनकी उर्जा काबिल-ए-तारीफ थी। उन्होंने तब सबको हैरत में डाल दिया जब 74 वर्ष की उम्र में भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान सुखोई-30-एमकेआई की उन्होंने सवारी की। इनके अलावा हमारे देश के आम बुजुर्गों की भी अनेक गाथाएं हैं, जिन्होंने अपने दम पर कई बदलाव कर लोगों को सोचने पर मजबुर कर दिया। इस श्रेणी में बिहार के माउंटेन मैन दशरथ मांझी को कौन भूल सकता है, जिन्होंने केवल अपने दम पर पहाड़ को काटकर रास्ता तैयार कर दिया। उनके संकल्प और हथौड़े की चोट के आगे 22 वर्ष का लंबा अंतराल और पहाड़ की ऊंचाई व लंबाई भी छोटी पड़ गई। उन्होंने अपने लगन और संघर्ष से 360 फूट लंबा और 25 फूट गहरा पहाड़ खोदकर अपने गांव तथा इस सारे देश को अपना ऋणी बना लिया। सबसे ज्यादा उम्र में मैराथन दौड़ने वाले फौजा सिंह भी इसी श्रेणी में एक नाम है जिन्होंने सौ वर्ष की उम्र में भी मैराथन दौड़ कर उम्र की सारी बाधाओं को लांघ लिया। इसके इतर, स्वयं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और अन्ना हजारे जैसे बुजुर्गों को कौन भूल सकता है जिन्होंने बिना हिंसा के केवल सत्य और अहिंसा के बल पर तत्कालीन हुकूमत को अपने आगे झुकने पर विवश कर दिया।
शायद इन सारे बुजुर्गों का जीवन हमें यही बताता है कि उम्र का हौसलों से कोई लेना देना नहीं होता। संकल्प के आगे हर बाधा बौनी साबित होती है। उम्र सिर्फ एक अंक है, वह किसी की लाचारी का प्रतीक नहीं बन सकती। ऐसे लोग न केवल वृद्धों के ही आदर्श और प्रेरणा स्रोत है बल्कि यह हम जैसे युवाओं के लिए भी प्रेरणादाई है। वो लोग जो उम्र बढने के साथ सोचने लगते हैं की अब तो हमारी उम्र हो गई है, अब हमसे ये सब नही हो सकता या वो युवा भी जिंदगी के ठोकरों से हार कर अपने आप को खत्म कर लेना चाहते हैं, या जिन्होंने अपनी सारी उम्मीदें छोड़ दी हैं, उन सब के लिए ऐसे वृद्ध प्रेरणापुंज है। इन लोगों के संघर्ष, मनोबल, आत्मशक्ति और पराक्रम को देखकर एक ही बात याद आती है कि-
“खुदी को कर बुलंद इतना
कि हर तकदीर से पहले
खुदा बंदे से पूछे
बता तेरी रजा क्या है।”
•विमर्या
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