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क्या प्रवासी भारतीयों को पुनर्स्थापित करा पाएगी सरकार?

विमर्यांजलि
विमर्यांजलि
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इन दिनों सऊदी अरब आर्थिक मंदी की मार झेल रहा है। इस मंदी का असर वहां कार्यरत भारतीय मजदूरों पर भी पड़ा है। अपनी नौकरी गंवाने के बाद वो बदहाली का जीवन जीने पर मजबूर हैं। इधर, भारत सरकार ने सऊदी अरब में उनके अनिश्चित भविष्य को देखते हुए उन्हें भारत वापस लाने का निर्णय लिया है। सरकार ने करीब 10,000 भारतीय मजदूरों को एयरलिफ्ट करने का फैसला किया है। गौरतलब है कि पिछले एक साल से लगातार तेल की गिरती कीमतों के कारण सऊदी सरकार मुश्किलों का सामना कर रही है। इससे वहां की स्थानीय निर्माण कंपनियों पर आर्थिक दबाव बढ़ रहा है, जिसके कारण कुछ कंपनियां अपने विदेशी मजदूरों को वेतन देने में असमर्थ प्रतीत हो रही है। स्थिति इतनी गंभीर हो चुकि है कि विदेशी कामगारों के पास इतने भी पैसे नहीं है कि वो अपना पेट भर सके और स्वदेश वापसी के लिए टिकट का इंतजाम कर सकें।
प्रवासी भारतीयों की यह दयनीय अवस्था सऊदी अरब की वर्तमान कार्मिक स्थिति को बताने के लिये काफी है। कई कर्मियों का तो वहां सात महीने से एक साल तक का भुगतान नही हुआ है। इसके विरोध में कई बार विदेशी कर्मी प्रदर्शन भी कर चुके हैं, परंतु सुनवाई नही हुई है। सऊदी अरब सरकार भी इस मामले में कोई ठोस कदम उठाती नही दिख रही है।
ये पहला वाक्या नही है जब वहां कार्यरत विदेशी कामगारों के साथ ऐसा बर्ताव हुआ हो। ऐसे मामले वहां आम हैं। सऊदी अरब में कामगारों की स्थिति सामान्य नही है। वहां भारतीय मजदुर कई प्रकार के शोषण का शिकार होते हैं। प्रवासियों के अनुसार वहां कामगारों को लगातार 15 से 18 घंटे तक बिना किसी दिन छुट्टी या अवकाश के हर रोज कार्य कराया जाता है। खास बात यह भी है कि इस अतिरिक्त कार्य के लिये उन्हें कोई विशेष राशि भी नही प्रदान की जाती है। देखा जाए तो सऊदी अरब मुख्यतः विदेशी कामगारों पर ही आश्रित है। हलांकि इनमें सामान्यतः विदेशी व्यक्ति तकनीकि विभाग से जुड़े हुए है, लेकिन अधिकतर मजदुर खेती, सफाई और घरेलु सेवा क्षेत्र में कार्यरत हैं। सऊदी अरब में मजदुरो और कामगारों का वर्गीकरण उनकी राष्ट्रीयता के आधार पर किया जाता है। समान्यत अरब और पश्चिमी राष्ट्र के व्यक्तियों को सबसे उच्च पद प्राप्त होते हैं। जबकि पूर्व एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के लोगो को सबसे निम्न और बाकी अन्य राष्ट्र के लोगों को मध्यम स्थान दिया जाता हैं। इतना ही नही यहां विदेशी कामगारों के साथ दुष्कर्म और शारीरिक शोषण के मामले भी सामने आये है। इसके अलावा सऊदी अरब में धार्मिक कट्टरता भी एक मुख्य समस्या है। वहां सुन्नी मुसलमानो के अलावा किसी भी जाति-संप्रदाय को किसी भी कार्य के लिये पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त नही है। बहुत सारे मामलों में देखा गया है की कामगार व मजदुर अपने साथ हो रहे दुर्व्यवहार का जिक्र अपने मालिकों के समक्ष सिर्फ इस लिये नही कर पाते है, क्योंकि उन्हें नौकरी से निकाल दिये जाने या और भी अधिक शोषण किये जाने का भय होता है।
एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था ‘ह्यूमन राईट्स वाच्'(एचआरडब्ल्यू) इन परिस्थितियों को “नियर सलेवरी” यानी करीब-करीब दासता या गुलमी जैसी ही व्यवस्था के रुप में परिभाषित करती है। इसकी व्याख्या करते हुए वह आगे कहती है- ‘डिप्ली रूटेड जेंडर, रिलीजीयस एंड रेसीयल डिसक्रिमीनेशन’ यानी लैंगिक, धार्मिक और नस्लिय भेद-भाव, जिसकी जड़ें बहुत गहरी हैं। सऊदी अरब के अंदर और साथ ही साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी ऐसी स्थितियों की भर्त्सना की जाती रही है। परंतु आज भी किसी ठोस कदम का इन्तजार जारी ही है, जिसके पूरे होने की उम्मीद फिलहाल नही दिखती।
बहरहाल, भारतीय कामगार व मजदुरों को भारतीय सरकार ने एयरलिफ्ट करने का फैसला तो कर लिया है। परंतु बड़ा सवाल यह है कि उनके बकाया राशि का क्या होगा और उनका आगे का भविष्य कैसा होगा? क्या सरकार उनके पैसे दिलवा कर उन्हें सऊदी अरब में पुनर्स्थापित करा पाएगी या उनके अनिश्चित भविष्य को देखते आजिविका चलाने के लिये भारत में ही रोजगार की व्यवस्था की जाएगी? अगर हां, तो इतने कम वक्त में इतने लोगों को कैसे रोजगार उपलब्ध कराया जाएगा?
•विमर्या

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