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पाकिस्तान इन दिनों काफी मुश्किलोंके दौर से गुजर रहा है। एक तरफ जहां भारत द्वारा किए गए सर्जिकल स्ट्राइक और सार्क सम्मेलन में भारत समेत अन्य प्रमुख देशों द्वारा खुद को अलग किए जाने से पाकिस्तान पूरे विश्व में अलग-थलग पड़ता दिखाई दे रहा है, वहीं दूसरी तरफ, आतंकवाद के मुद्दे पर भी उसे चौतरफा आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। इसी बीच पाकिस्तान में एक और मुद्दा इन दिनों जोरों से तूल पकड़ता दिख रहा है। यह मामला पाकिस्तान में प्रेस की आजादी का है। पाकिस्तान में मीडिया व पत्रकारों को जिस प्रकार के खतरों का सामना करना पड़ता है, वह पूरे विश्व के सामने अब जगजाहिर हो चुका है। अभिव्यक्ति की आजादी के वहां क्या हालत होंगे, इसका अंदाजा इसी बात से आसानी से लगाया जा सकता है।
ताजा मामला पाकिस्तान के लिडिंग डेली ‘द डान’ के एक पत्रकार के देश छोड़ने पर प्रतिबंध को लेकर है। पत्रकार सेरिल अलमेड़ा ‘द डाँन’ में असिस्टेंट एडीटर के पद पर कार्यरत है। सेरिल को पाक की ‘एग्जिट कंट्रोल लिस्ट’ में उस समय रख दिया गया जब कुछ दिनों पहले उन्होंने सरकार और सेना के बीच मतभेदों से जुड़ी एक फ्रंट पेज स्टोरी लिखी। सेरिल अलमेड़ा के निजी जीवन पर गौर करें तो, वह एक गोवन कैथोलिक समुदाय से संबंध रखते हैं, जो करीब सौ वर्ष पूर्व कराची में आकर बस गए थे। समुदाय के अधिकतर लोगों ने विभाजन के बाद पश्चिमी देशों की ओर रुख कर लिया। लेकिन, करीब 15000 ऐसे नागरिक आज भी पाकिस्तान में ही बसे हैं। इंग्लैंड में कानून की पढ़ाई से स्नातक करने के बाद सेरिल पाकिस्तान लौट आए और करीब एक वर्ष तक उन्होंने वकालत का अभ्यास किया। इसके बाद उन्होंने अपना पेशा बदलते हुए पत्रकारिता में कदम रखा और द डॉन से जुड़ गए।
इसी महीने डॉन के फ्रंट पेज पर एक खबर छपी जिसे सेरिल ने लिखा था। इस लेख के मुताबिक पाक सरकार ने सेना को आदेश दिया था कि वह या तो आतंकियों के खिलाफ कार्यवाही करे या फिर दुनिया में अलग-थलग रहने को तैयार रहे। हालांकि, पाक सरकार ने इस खबर से साफ इंकार करते हुए इसे एक मनगडंत कहानी बता दी। इस संदर्भ में, बाद में, सेना प्रमुख जेनरल राहील शरीफ, प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, वित्त मंत्री इश्हाक डार, आंतरिक मामलों के मंत्री निसार अली खान, पंजाब के मुख्यमंत्री शहवाज शरीफ और आईएसआई के चीफ रिजवान अख्तर ने मुलाकात की, जिसके बाद अलमेड़ा के खिलाफ ये आदेश जारी किया गया।
इस बीच, प्रतिबंध के विरोध में पाकिस्तान में आवाजे भी उठ रही हैं। पाकिस्तानी पत्रकारों की सुरक्षा के लिए बने एक कमेटी ने पाकिस्तान सरकार को जल्द से जल्द या बैन हटाने को कहा है। कराची प्रेस क्लब ने भी इस बैन का विरोध किया है।
हालांकि, यह कोई पहला मामला नहीं है जिसमें पत्रकारों के लिए पाकिस्तान कब्रगाह साबित हुआ हो। पहले भी ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिसमें पाकिस्तानी पत्रकारों को सरकार व सत्ताधिकारियों द्वारा प्रताड़ित किया गया है। केवल इसी वर्ष ही पाकिस्तान में 31 पत्रकारों की हत्या हुई है। इसके अतिरिक्त, पाकिस्तान उन देशों में चौथे स्थान पर है जिन्हें पत्रकारिता व पत्रकारों के लिए सबसे घातक माना जाता है। इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट(आईएफजे) की रिपोर्ट के मुताबिक इस क्रम में वह केवल मेक्सिको, फिलीपींस और इराक से ही पीछे है। इस रिपोर्ट के अनुसार 1990 से अब तक करीब 2,297 पत्रकार और मीडिया कर्मचारी को मौत के घाट उतारा गया है। आँकड़े के आधार पर, इन खतरनाक देशों में इराक नंबर एक पर है, जहां 309 मौतें हुई हैं, इसके बाद फ़िलीपींस(146), मेक्सिको(120), पाकिस्तान(115), रूसी संघ(109), अल्जेरिया(106), भारत(95), सोमालिया(75), सीरिया(67) और ब्राजील(62) का नंबर आता है।
पत्रकारों को मुख्यत लक्ष्य निर्धारण के बाद मारा जाता है। पूरे विश्व भर में ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें उन पर बॉम्ब अटैक, क्रॉस-फायर या अपहरण करके इन वारदातों को अंजाम दिया गया। करीब 112 पत्रकार केवल पिछले वर्ष मारे गए। गौर करें तो, वर्ष 2006 में सबसे अधिक पत्रकारों ने अपने प्राण गंवाए। 2006 में कुल 155 पत्रकार मारे गए। लेकिन दुख तो तब होता है जब पता चलता है कि ऐसे प्रत्येक 10 में से केवल एक दोषी को ही सजा मिल पाती है। पाकिस्तान की बात करें तो 2001 से अब तक कुल 71 पत्रकार कार्यरत रहते हुए मारे गए। इनमें से 47 ऐसे थे जिन्हें बरबरता पूर्वक मार दिया गया जबकि बाकीयों ने जोखिम भरे कार्यों की पूर्ति के क्रम में प्राण गवाए। इसमे मुख्य बात यह है कि इन में से केवल दो ही हत्याओं के जिम्मेदार लोगों को न्यायालय द्वारा दोषी करार दिया जा सका। आंकड़ों पर ध्यान दें तो पाकिस्तान उन देशों में पांचवे स्थान पर है जहां पत्रकारों पर हुए हमलों के मामले सबसे अधिक विचाराधीन व अर्निणित है।
पत्रकारों को राजनीतिक दलों, माफियाओं, आतंकवादियों, सुरक्षा एजेंसियों द्वारा डराने-धमकाने की खबरें पाकिस्तान में आती रहती हैं। पाकिस्तान में कहीं न कहीं सरकारी तानाशाहों द्वारा पत्रकारिता के सच्चे वसूलों को कुचलने की कोशिश लगातार जारी है। कहा जाता है की पत्रकार खबरें बनाते हैं, खुद खबर नहीं बनते। लेकिन, इन दिनों पाकिस्तान में सब उल्टा चल रहा है, जो यह बताने के लिए काफी है कि वहां सब कुछ ठीक नहीं है। सरकार सरिल अलमेड़ा सरिखे पत्रकारों के खबरों को झूठा साबित करके सेना के आगे अपनी बेबसी और आतंक के खिलाफ अपनी नाकामयाबी को छुपाने की कोशिश कर रही है। परंतु सच तो सच है, वह सामने आ ही जाता है|
•विमर्या
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