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जब कैमरे का अविष्कार हुआ था तब शायद ही किसी ने यह सोचा होगा कि एक दिन यह कैमरा नामक यंत्र इतना प्रचलित हो जायेगा की लोगों को इसकी लत लग जायेगी. भले ही कैमरे का इतिहास बहुत पुराना है. इसके अविष्कार तथा विकास का श्रेय किसी एक व्यक्ति को नही दिया जा सकता, बल्कि यह चरणबद्ध तरिके से विकसित होता गया और आज यह इतना विकसित और लोकप्रिय हो चुका है की अब ये हमारी रोजमर्रा की जिदगी में एक जरुरत बन चुका है. जरुरत ऐसी है की अगर हम कोई फोन खरिद रहे हों तो सबसे पहले हमारा ध्यान उसके कैमरे की क्वालिटी पर ही जाता है. मोबाईल में कुछ हो ना हो कैमरा तो होना ही चाहिये, खास कर फ्रन्ट कैमरा जिसने आज की दुनिया को अपना दीवाना बना रखा है. सेल्फि नाम से प्रचलित अपनी खुद की फ़ोटो लेने की इस विधि से आज कोई अछूता नही है. फिर चाहे कोई किसी देश के प्रमुख नेता हो या कोई आम नागरिक हर कोई इसका प्रेमी दिखता है. खास कर आज की युवा पीढी में इसका क्रेज कुछ ऐसा है कि वो एक अच्छी सेल्फि के लिये अपने जान की भी परवाह नही करते. लेकिन अब यह क्रेज अपनी सीमाये लांघने लगा है. सेल्फि की दीवानगी न सिर्फ मानसिक बीमारी में तब्दिल हो गई है बल्कि लोग खतरनाक सेल्फि लेने की कोशिश में उंचाई से गिरकर, पानी में दुबने से, ट्रेन के सामने आने से जान गंवा रहे हैं. सिर्फ बीते वर्ष 2015 में ही दुनियाभर में 27 लोगों की मौत सेल्फि खींचते समय हो गयी. खास बात यह भी है इनमें से करीब आधी जानें सिर्फ भारत में गईं. सेल्फि एक मानसिक विकार बनता जा रहा है.इस बीमारी को सेल्फिटिस नाम दिया गया है. मनोचिकित्सक मानते है कि जिन लोगों में आत्मविश्वास की कमी होती है, जो लोग पहचान पाने की चाहत रखते है, और अकेलेपन दूर करने के लिए जरूरत से ज्यादा फ़ोटो खींचते है और कुछ कमेंट्स या लाइक्स की आस में इंटरनेट का इस्तमाल करते है, उन लोगों में सेल्फिटिस एक बीमारी बन कर उभरी है. इसलिये सेल्फि लेना कोई बुरा नही है, अपनी फ़ोटो खींचने का शौक तो सभी को होता है. पर अगर वो एक हद में हो तो बेहतर है. एक सेल्फि के लिये अपनी जीवन और भविष्य दांव पर न लगाये.
•विवेकानंद विमल
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