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उसको तो जाना ही था ………..

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उसको तो

जाना ही था ………..

माँ और बापू

की छाती

पर थी भार

सावन की नदिया

सा यौवन का ज्वार

लम्पट भंवरों की

परछाईं से दूर

फूल किसी ‘देव’ पर

चढ़ाना ही था

उसको ……………

दूल्हों के हाट में

लग न सकी बोली

जात औ’ बिरादरी में

बात जो चली-

फुसफुसाहटें पड़ोस तक

सुनायी दीं

उन अफवाहों को

झुठलाना ही था

उसको…………………

फिर इक दिन मेहँदी

हाथों में सज गयी

घर के अंगना में

खुशियाँ मचल गयीं

ममता का आँचल

होता गया परे

दुनियां की रीत को

निभाना ही था

उसको…………

नए नए कुनबे का

अजब रंग ढंग

पैसों में तौले जो

जन्मों का संग

यंत्रणा के अंतहीन

पथ पर चलकर

डॉली से अर्थी तक

आना ही था!

उसको…………….

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