Vichar
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कहाँ हैं मेरी जड़ें?
वहाँ –
उठी जहाँ थी
मेरी डोली
या फिर
वहां –
जहां से
जाना है
चार कन्धों पर
मैं द्रव सी तरल
ढल गयी
कितने ही सांचों में
कभी माँ
कभी बहन
कभी पत्नी
कभी प्रेयसी
मुझे
न बाँध सकी
कोई भी
परिभाषा
कहो कौन हूँ मैं?
कहाँ हैं
मेरी जड़ें?
मैं एक पौधा
जो रोप
दिया गया
इस जमीन से,
उस जमीन पर
मैं एक नदी –
जिसकी नियति है
सागर से मिलना,
और लुप्त हो जाना
अनाम गहराइयों में
कहो कौन हूँ मैं –
कहाँ हैं मेरी जड़ें?
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