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यौन शिक्षा की आवश्यकता- जागरण जंक्शन फोरम

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क्या सेक्स- एजुकेशन, यौन अपराधों पर लगाम कस सकती है?
उत्तर है -हाँ पर एक हद तक. सेक्स -एजुकेशन की सबसे ज्यादा जरूरत, कम उम्र के मासूम बच्चों को है. किशोरों को तो उनके दैहिक परिवर्तन ही, बिना कुछ कहे; बहुत कुछ सिखा देते हैं. इन्टरनेट की ‘बदौलत’, समय से पहले ‘ सब कुछ’ सीखने को मिल रहा है- उनमें से बहुतों को. ऐसों के लिए, कैसी एजुकेशन?! अबोध बालकों के लिए यह बेहद जरूरी है. ३-४ साल का होते ही किसी न किसी रूप में, उन्हें विकृत मानसिकता के लोगों से सावधान करना चाहिए. चौकलेट या अन्य किसी लालच में पड़कर, अजनबी लोगों के साथ जाने से रोकना चाहिए. आजकल जगह जगह (अस्पताल के शिशु वार्डों या फिर बच्चों के अखबार में) यह सावधानियां चार्ट के रूप में शब्दांकित/ चित्रांकित की गयी हैं. इनमें ‘अच्छे स्पर्श’ एवं ‘बुरे स्पर्श’ का भेद, यौन -दुर्व्यवहार के लिए ‘ना’ कहने की आवश्यकता( भले ही दुर्व्यवहार करने वाला कितना भी करीबी क्यों न हो) मुख्य हैं. किन्तु इतने छोटे बच्चों को शिक्षित करना, तलवार की धार पर चलने जैसा है. गलत ढंग से दी गयी जानकारी या जरूरत से ज्यादा एक्सपोज़र, उनमें यौन विकृतियाँ/ यौन कुंठाएं पैदा कर सकता है.
रही बात औरतों के प्रति दुर्व्यवहार की तो इसका प्रमुख कारण यौन- उत्तेजना नहीं वरन उन्हें कमतर समझने के गलत संस्कार हैं. मनुष्य यौन- उत्तेजना पर तो एक बार काबू पा सकता है क्योंकि प्रकृति ने उसे जानवरों से श्रेष्ठ बनाया है किन्तु जन्मजन्मान्तरों से चले आ रहे, पुरुष के, तुच्छ अहंकार को पोषित करने वाले संस्कारों पर नहीं !!!कारण – संस्कारों की जड़ें, बहुत गहरी होती हैं. उनसे उपजी मनोवृत्ति,यूं ही पीछा नहीं छोड़ती. ऐसे में सेक्स- एजुकेशन का तब तक कोई औचित्य नहीं जब तक बालक बचपन से ही, स्त्री का आदर करना नहीं सीखते. समस्या का हल हमारे परिवारों में ही है:
१- परिवार के लड़कों को दूध- फल आदि का जितना पोषण मिलता है- उतना ही लड़कियों को भी मिले.
२- लडकियों को शिक्षा के समान अवसर दिए जाएँ.
३- आचरण का पाठ, लड़कियों के साथ साथ, लड़कों को भी पढाया जाए (क्योंकि परिवार की मर्यादा बनाये रखने की, जिम्मेदारी उनकी भी है)
इन बातों का पालन होने से, कुटुंब के लड़के, अपनी बहनों का आदर करना सीखेंगे.
इसके साथ ही-
१- हर पति को चाहिए कि जब उसकी पत्नी, बेटे को किसी गलत बात के लिए टोकती है तो वह पत्नी का साथ दे ( न कि उसे डांटकर चुप करवाए).
२- हर माँ को चाहिए कि वह अपने बेटे के साथ स्वस्थ, दोस्ताना सम्बन्ध बनाये और उसे भावनात्मक सुरक्षा प्रदान करे (ताकि बेटे के कदम बहकने पर, वह उनकी आहट, सहज ही सुन सके.)
इन बातों का पालन होने पर, कुटुंब के लड़के, अपनी माँ का आदर करना सीखेंगे
साथ ही साथ, समाज की मानसिकता भी बदलने की जरूरत है:
१- बेटी के माँ- बाप उसे विवाह करके ‘निपटाने’ में ही अपने कर्तव्य की इतिश्री न समझें. यदि बेटा बुढ़ापे की लाठी बन सकता है तो बेटी क्यों नहीं?
२- आचरणहीन स्त्री के साथ साथ, आचरणहीन पुरुष का भी सामाजिक बहिष्कार हो.
इन बातों का पालन होने से, समाज में, औरतों की हैसियत, मजबूत होगी.
अब मूल विषय पर आयें. बीस साल पहले की घटना, याद आ रही है जब मैं सेंट फ्रांसिस, अनपरा में, विज्ञान की अध्यापिका के तौर पर, काम कर रही थी. कक्षा पांच से लेकर, दस तक के बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी थी. बच्चों की अतिरिक्त जिज्ञासाओं का समाधान करने हेतु ‘एक्स्ट्रा क्लास’ लेने लगी. उसी दौरान कक्षा पांच के एक बच्चे ने ( जिसकी उम्र मुश्किल से दस साल होगी) एक विचित्र और बेढंगा सवाल पूछा, “टीचर, चमगादड़ तो हरदम उलटा लटकता रहता है, फिर वह बच्चा कैसे देता है? उसका बच्चा जमीन पर गिरता नहीं?” इस सवाल पर, पूरी क्लास हंसने लगी. सवाल के जवाब में, दूसरे बच्चे ने उठकर कहा, ” वह पहले ही ‘बकेट’ लगा देता होगा. यह सुनकर, पुनः एक हंसी की लहर दौड़ गयी. मेरी दशा बहुत अटपटी हो गयी थी. मन संकोच से भर उठा. इस बात पर हंस भी नहीं सकती थी क्योंकि इससे, एक गलत प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता. डांटना भी संभव न था क्योंकि ऐसा करने से, बेवजह, वह मुद्दा ‘हाईलाइट’ हो जाता. सवाल पूछने वाला बच्चा उस कक्षा में प्रथम आता था और जवाब देने वाला द्वितीय. किसी प्रकार उस प्रश्न को टाला और घबराकर ‘एक्स्ट्रा क्लास’ बंद कर दी.
सामान्य ज्ञान की अध्यापिका ने भी बताया कि जब उसने ‘एड्स’ का फुल फॉर्म पूछा तो अपना ज्ञान बघारने की गरज से उसी क्लास की एक छोटी सी बच्ची ने, यौन संबंधों में सावधानी बरतने हेतु , प्रयुक्त होने वाले, ‘साधन’ का नाम लिया. बच्ची के हाव- भाव से स्पष्ट था कि वो इस बारे में कुछ नहीं जानती थी.
इन दोनों घटनाओं से पता चलता है कि अधकचरी जानकारी, बच्चों को किस तरह नुकसान, पहुंचा सकती है. यह भी कि यौन शिक्षा देना कोई आसान काम नहीं है. हालांकि मैंने पहले यह कहा कि यौन उत्तेजना, यौन अपराधों को बढ़ावा देने वाला प्रमुख कारण नहीं है; किन्तु फिर भी वह एक बेहद अहम कारक( स्ट्रोंग फैक्टर) है. इसे काबू करने के लिए जरूरी है-
१- हर मां बाप बच्चे को, गरिमामय व्यवहार करने एवं गरिमामय परिधान धारण करने की प्रेरणा दें.
२- अश्लील साहित्य पढने पर रोक और इन्टरनेट के प्रयोग पर लगाम लगायें.
३- बच्चे पर नजर रखें कि वह किस तरह के साथियों से घुल – मिल रहा है/ कौन सा टी वी सीरियल देख रहा है.
४- बच्चे की यौन जिज्ञासाओं का संतुलित एवं परिपक्व तरीके से समाधान करें.
यह बात भी दीगर है कि पुराने जमाने में, जब यौन जिज्ञासाएं कम उम्र में ही शांत हो जाती थीं ( बाल विवाह के चलते) तब भी यौन अपराध होते थे( भले ही चोरी छिपे). कहने का तात्पर्य ये है कि इस प्रकार के अपराधों को रोकने के लिए, केवल शिक्षा ही काफी नहीं; बल्कि सामाजिक- सोच में, आमूल- चूल परिवर्तन की भी आवश्यकता है.

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