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भारतीय समाज और चारित्रिक पतन

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बढ़ता हुआ उपभोक्तावाद, पश्चिम का आँखें चुन्धियाने वाला ग्लैमर, खुलापन, नग्नता; कितने ही ऐसे कारण हैं जो चारित्रिक पतन के लिए जिम्मेदार हैं। उपभोक्तावाद व बाजारवाद न केवल भ्रष्टाचरण को पोषित करते हैं, मर्यादा को लांघने के लिए भी उकसाते हैं. चमक दमक वाली आधुनिक जीवन शैली ; ‘दो नम्बर’ का पैसा जुटाने को प्रेरित करती है. साथ ही साथ, उन्मुक्तता और कदाचार की मरीचिका में भी धकेलती है. ‘लिव इन’ जैसे संबंधों को मान्यता देने से, परिवार की संस्था, खतरे में पड गयी है. परिवार ही ऐसी संस्था है जहां मर्यादा और संस्कारों की सीख मिलती है. माता पिता का आपसी, पुख्ता सम्बन्ध; उनका मर्यादित आचरण ही बच्चे में नैतिकता को रोपता है. ”लिव इन’ अति महत्वाकांक्षी युवक युवतियों को रास आया है. वे – जो परिवार और बच्चों के चक्कर में, अपने करियर की अनदेखी नहीं करना चाहते. उन लड़कियों के मां बाप, जिनके पास दहेज़ का सामर्थ्य नहीं होता, मजबूरी के तौर पर इसे स्वीकार कर लेते हैं.

स्त्रियों के प्रति अपराध भी बढे हैं. भ्रूण हत्या, दहेज-हत्या, एसिड अटैक, शील-भंग आदि के कई मामले सामने आ रहे हैं. पुरुष-प्रधान समाज में बेटी, कुछ अभिभावकों को बोझ सी लगती है; क्योंकि वह उनके बुढापे की लाठी नहीं बन सकती. उसकी सुरक्षा व दहेज़ आदि का इंतजाम भी करना पड़ता है- सो अलग. इस कारण अभी भी, बेटियों के खान-पान तथा शिक्षा के अवसरों में भेदभाव बरता जाता है. यह सब बातें, स्त्रियों के व्यक्तित्व को कुंठित करती हैं और उन्हें कमजोर बनाती हैं. नारी सशक्तिकरण के लिए, इन कारकों का उन्मूलन, बेहद जरूरी है।
आर्थिक वर्गीकरण की रौशनी में यदि, चारित्रिक पतन की व्याख्या करें तो पायेंगे कि उच्च वर्ग और निम्न वर्ग में, इसकी संभावनाएं ज्यादा हैं। कारण- वर्जनाओं का अभाव। उच्च वर्गीय स्त्री व पुरुष धन के मद में, कुछ भी स्याह सफेद करते फिरें- किसी की हिम्मत नहीं जो उन पर उंगली उठा सके। पैसे की ताकत होती ही कुछ ऐसी है! वहीं दूसरी तरफ निम्नवर्ग में, पैसों की कमी के चलते, देह- व्यापार मजबूरी के तहत किया जाता है। स्त्रियाँ यह सब, अपने परिवारजनों ( पति , बच्चों आदि ) की जानकारी में करती हैं। इस तरह के माहौल में पले बढे बच्चों को, वर्जनाओं को लेकर कोई डर या अपराध- बोध नहीं रह जाता। यहाँ तक कि निर्धनता व भावनात्मक असुरक्षा के चलते, वह भी यौन- शोषण का आसानी से शिकार हो सकते हैं। फलस्वरूप यौन- कुंठा और यौन विकृति, उनके वजूद में पनपने लगती है .ऐसे बच्चे जब बालिग़ होते हैं तो उनसे ये उम्मीद कतई नहीं की जा सकती- कि समाज में रहकर, वे आचरण के मानदंडों को निभायेंगे। दामिनी का सर्वनाश करने वाले युवक भी, निम्न वर्ग से ही सम्बंधित थे। रही बात मध्यम वर्ग की तो – संस्कार और पाबंदियों को मानने वाला तबका यही हुआ करता था। किन्तु बढ़ती मंहगाई ने, गृहणियों को काम काजी औरतों में तब्दील कर दिया है। अब उनके पास बच्चों को संस्कार सिखाने, उन्हें प्यार- दुलार देने का समय ही नहीं। उस पर पाश्चात्य संस्कृति और मीडिया का प्रभाव अलग से।

अशिक्षा और बेरोजगारी भी बढ़ते हुए अपराधों (हत्या, डकैती, बलात्कार आदि) का कारण हो सकती है। अशिक्षित व्यक्ति के लिए, देहसुख ही सबसे बड़ा सुख होता है क्योंकि उसे बौद्धिक सुखों का आभास तक नहीं। यही कारण है कि गाँवों में अनैतिक संबंधों के किस्से, अक्सर देखने- सुनने को मिलते हैं। इसके अलावा अशिक्षा, दबंगों की दबंगई सहने पर विवश करती है। इस भांति, पिछड़े इलाकों के दबंग लोग, निर्धन जनता को पैरों तले रखते हैं। अब बात करें बेरोजगारी की। बेरोजगार युवक, युवती अवसाद में घिरे रहते है और अपना आर्थिक स्तर ऊपर उठाने के लिए, कुछ भी कर गुजरने को तत्पर हो जाते हैं। गर्ल – फ्रेंड को ‘इम्प्रेस’ करने के फेर में, युवक छोटी मोटी चोरी करने से भी बाज नहीं आते। वहीं दूसरी ओर, राजनैतिक संरक्षण प्राप्त अथवा आर्थिक रूप से सम्पन्न युवा, शक्ति के उन्माद में चूर होते हैं . उनमें से कुछ को, नशेबाजी या वेश्यागमन से भी गुरेज नहीं होता।

समय आ गया है कि सभी जागरूक, गणमान्य नागरिक; इस चारित्रिक पतन को रोकने हेतु कमर कस लें। कम से कम, व्यक्तिगत स्तर पर प्रयत्न तो अवश्य करें.

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