Vichar
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जब पूरा
विश्व आदिम युग
में जीता था
तब उभरी थी हमारी
सभ्यता
चीख- चीख
कहते रहे
सिन्धु घाटी
के अवशेष ;
“हम श्रेष्ठ हैं –
पूरी दुनियाँ से ”
गणित, खगोल
चिकित्सा, विज्ञान ;
हर क्षेत्र में –
प्रथम पदार्पण
चीख चीख कर
कहते रहे
नालंदा के
दस्तावेज़ –
“हम श्रेष्ठ हैं –
पूरी दुनियाँ से ”
जकड़ा बरसों
गुलामी की
बेडिओं ने
सुप्त थी जनचेतना
भी रुढियों में
लेकिन
रहा मुगालता –
“हम श्रेष्ठ हैं –
पूरी दुनियाँ से ”
आजादी के
बाद भी था
मिथ्याभिमान ;
उधार की
शिक्षा प्रणाली
उधार का लोकतंत्र
जर्जर व्यवस्था
भ्रष्ट्र तंत्र
पर गया नहीं गुमान –
“हम श्रेष्ठ हैं –
पूरी दुनियाँ से ”
आयातित
नग्नता
आयातित
मूल्य
आयातित
दर्शन
आयातित
खुलापन
तो भी
वही प्रलाप –
“हम श्रेष्ठ हैं –
पूरी दुनियाँ से ”
फिर उतरी सड़कों पर
बर्बरता
गली गली
नाची
अराजकता
खुलेआम
अबला का
चीरहरण
बोलो
क्या अब भी
कह पाओगे –
“हम श्रेष्ठ हैं
पूरी दुनियाँ से “……???
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