Menu
blogid : 2472 postid : 95

होली का आध्यात्मिक महत्व- holi contest

Vichar
Vichar
  • 27 Posts
  • 805 Comments

होली का त्योहार, बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है; जहाँ होलिका बुराई और भक्त प्रहलाद अच्छाई का प्रतीक है. दक्षिण भारत में, होलिका- दहन को काम-दहन (कामनाओं का दहन) भी कहते हैं. व्यापक अर्थ में देखा जाए तो- होली की अग्नि प्रज्ज्वलित करने में, क्षुद्र सांसारिक इच्छाओं का दमन और आध्यत्मिक उन्नति के पथ पर बढ़ने का संकेत निहित है. उसी तरह- जिस तरह त्रिकालदर्शी भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया था. इस दिन झूठे अहम् और शत्रुता को भूलकर लोग, एक दूसरे को गले लगा लेते है. यह भी इस पर्व का सामाजिक – आध्यात्मिक पक्ष ही कहा जाएगा. जाति और धर्म की सीमाओं से ऊपर उठकर यह पर्व, इंसान से इंसान के प्रेम को अभिव्यक्ति प्रदान करता है. देश के प्राचीन ग्रंथों (जैसे नारद पुराण) से लेकर मुग़लकालीन साहित्य तक( शाहजहाँ- नूरजहाँ की होली) इस त्योहार का जिक्र देखने को मिल जाएगा. कृष्ण और गोपिकाओं का पावन प्रेम, जो आत्मा को आत्मा से जोड़ता था; कहीं न कहीं इस पर्व से संबद्ध है. होली के बारे में एक किदवंती और है कि होलिका नाम की राक्षसी किसी गाँव में घुसकर मासूम बच्चों को आतंकित कर रही थी. उन सबने अग्नि जलाकर, उसे गाँव के बाहर खदेड़ दिया. यहाँ पर भी दुष्ट प्रवृत्ति पर सद्प्रवृत्ति की विजय ही परिलक्षित होती है. होली के कई रूप हैं. धूलपूजन के रूप में ये देवताओं की मारक शक्ति का आह्वान करता है, तथा रंगपंचमी के रूप में जीव (शरीर) पर भाव (आध्यात्मिक रुझान) का रंग चढ़ाता है. अंत में मीरा की कुछ पंक्तियाँ-
फागुन के दिन चार रे
होली खेलो मना रे
बिन करताल पखावज बाजे
रोम रोम रमिकार रे
बिन सुरताल छतिसौं गाँवे
अनहद की झंकार रे
होली खेलो मना रे

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh