रिमझिम फुहार
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परिवर्तन
कतरा कतरा बदल रहा हूँ मै
तिरे सांचे में ढल रहा हूँ मै
जोर-इ-आजमाइश ऍ हवा थोड़ी और बढा ले
वक्त के साथ साथ थोडा संभल रहा हूँ मै
नज़र भी बदलेगी नज़ारा भी बदलेगा
तिरी आँखों में एक सपने सा पल रहा हूँ मै
मिरी हिम्मत मिरा हौसला तो देख ऍ साहिब
सरे शाम से सहर की उम्मीद में जल रहा हूँ मै
मै कतल होने का डर नहीं रखता अब जेहन में
जानता हूँ डगर मकतल की है जो चल रहा हूँ मै
मै जो टूटू बिखरू तो रंज न करना इस आलम में
सूरत नयी बनानी है इसलिए पिघल रहा हूँ मै
डरता हूँ कि किसी दिन बिक न जाऊ बाज़ार में
बस बिक न जाऊ इसलिए बदल रहा हूँ मै
…कि कुछ बदले इसलिए बदल रहा है
…विनय सक्सेना
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