रिमझिम फुहार
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तनहा इक सफर…
अकेला उठा जो आज तो बहुत दूर निकल गया
दरिया-इ-वक्त में फिसला तो बस फिसल गया
लम्हा कुई जो रूठा था अंदर सिमट के बैठा था
उठा जो आज आँख से बादल सा निकल गया
दिल ने सफर को तेरे मंजिल ही समझ लिया था
दिलकश भरम को उसने साहिल समझ लिया था
समझा गली को तेरी जिसने फूलो का रास्ता
वो कांटो की बस्ती से मुस्कराता निकल गया
वो कुछ वक्त तिरी खातिर ज़माने से सुलझ गया था
तिरे खवाबो की तामीर में जो खुद से उलझ गया था
उलझ गया था वो तिरी तब्बसुम के आइने में
आज उठा तो अक्स सा तिरी आँखों से निकल गया
हसरते भी बहुत थी और अरमान भी कई सारे
छोटे से अम्बर में मिरे तारे कई सारे
सब टूट के आज बारिश में बरस गया
दिल से कोई दर्द कोई गुबार सा निकल गया
अकेला उठा जो आज तो बहुत दूर निकल गया
दरिया-इ-वक्त में फिसला तो बस फिसल गया
….विनय सक्सेना
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