आज बरसात खुल कर हँसी इक बार फिर न जाने क्यू खामोश हो गयी तुम्हारी तरह
ये सावन भी बौरहा है बारहा बरस जाता है किसी को याद कर बिलकुल मेरी तरह
विनय सक्सेना
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