Menu
blogid : 1735 postid : 815

इज्जत की अवधारणा और यौन उत्पीडन !

BEBASI
BEBASI
  • 282 Posts
  • 397 Comments

ये जो इज्जत है, वाकई क्या है, किसके द्वारा है, क्यों है, इसकी आवश्यकता क्या थी, अगर इस पर विचार नहीं किया गया तो फिर इज्जत के साथ इन्साफ नहीं हो पायेगा.I इसके लिए वास्तविकता से पहले के वातावरण में जाना ही होगा, मानव की पूर्व की जिंदगी में झाकना ही होगा I जिस तरह से इज्जत के पहलू में कार्य हुआ, विकास हुआ, ये भी तो देखना होगा I

मानव शभ्य हो रहा था, इकट्ठे समूह में रहता था, सभी लोगो के काम बाटे हुए थे, किसी को खेती करना था तो किसी को इन बच्चो की रखवाली करनी थी, तो कोई धार्मिक तश्वीरे और कहानी को तैयार करने में व्यस्त थे. लेकिन अभी पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाया था I प्रयत्न जारी था, जो मजबूत कद काठी के लोग होते थे, वे इन कामो में लगे लोगो के बच्चो और बीबीओ के प्रति गलत नजरिया ही नहीं बल्कि जबरन अपना बना लेते थे I मानसिक रूप से लोगो को बंधने वाले लोग यानि पंडित जी को काम बाँट दिया गया था, आप इन समाज के नकारा लोगो की भावनाओ को बंधन में कीजिये I शक्तिशाली को मात देना उन मनवो की बस में नहीं था, यदि कुछ मिलकर करे भी तो एक ही उपाय था उसे मार देना I तो ऐसे भी शक्तिशाली लोगो की भी जरुरत ही थी, वो भी अपना ही था कोई गैर नहीं I तब रास्ता यही तलाश की जानी थी आखिर साप भी मरे और लाठी भी नहीं टूटे I यही शक्तिशाली लोग ही दूसरे समूह के व्यक्तिओ एवं जंगली जानवरों से उनकी रक्षा में मदद करते रहते थे I अतः इनके महव को स्वीकार करते हुए स्त्री के महत्त्व को ही बढ़ाने का काम किया जाने लगा I तमाम कहानिया सुना कर, कुछ हादसे करा कर, कभी चंडी और कभी देवी और न जाने क्या, क्या, रूप देकर, सवारां जाने लगा, इसका परिणाम भी सकारात्मक ही आया, अब यही मजबूत कद-काठी के लोग बस में थे और उनको भी समझाया गया देखो तुम्हारी भी बहु- बेटियां है, उनकी भी रक्षा वैसी ही करनी है. जैसे दूसरों की. अयना दिखने के लिए इन मजबूत लोगो के बहन और बेटी के साथ भी वही हुआ जो वो दूसरो के साथ करता था.I उस मजबूत व्यक्ति ने भी बहन और बेटी के संबंधो को सीखा और जैसा अपनी बहन- बेटी के साथ गलत नहीं चाहता था, वैसा ही दूसरो के साथ करने के लिए बचने लगा. यही से अपनी लिए जो स्व पैदा हुआ, यानि मरी अपनी या मेरा, तो जाहिर सी बात है, वो बात मेरे के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए, ये शब्द ही बार उच्चारित किया जाए तो लगता है, यही से सुरु हुआ मेरी इज्जत, तेरी इज्जत I

यही पर दूसरा पहलू था, पुरुष, आखिर वो इस इज्जत का राही क्यों नहीं बना ? पुरुष उस समय कार्य करता रहता था, खाने पीने की वस्तुए इकठ्ठा करता रहता था, उन्हें लाकर अपने स्व को खिलाता-पिलाता था. किसी दूसरी स्त्री को कोई बस में करता था तो वो पुरुष ही तो था I यानि ये पुरुष केवल हरण करता था, जबरियन स्त्रिओ को अपना बना बैठता था I आज भी आप बंदरों में कभी येही देखे और समझे तो आप को अभाष हो जायेगा, वाकई मादा बन्दर कितना कमजोर होती है? बंदरों का झगडा अगर आप से या किसी और से हो तो समझो नर बन्दर जब तक नहीं होगा मादा बन्दर कुछ नहीं बोलेगा बच्चो के मामलों को छोड़कर I इनमे भी वही इज्जत होती है जो आज मानव बात करता है I किसी भी मादा बन्दर या मादा किशोरी बन्दर को कोई बन्दर छेड़ खानी करता है तो समझो मुख्य बन्दर उसे खदेड़ की कोशिश ही नहीं करता, बल्कि उस इज्जत के लिए सभी नर, मादा, किशोर और बुजुर्ग बन्दर एक सुर से उस अपराधी बन्दर को अपने आस-पास से दूर कर देते है I यही मादा बन्दर, बन्दर समाज के लिए इज्जत बन गए है, इसी तरह से मानव में भी इज्जत आबरू पर हमला तो पुरुष ही करता है, और स्त्री मानव समाज की इज्जत बन गयी I पुरुष भी अपने स्व के लिए तो वो व्योहार नहीं चाहता जो वो दूसरों के साथ कर रहा है, लेकिन खुद वो करना चाहता है जो दूसरे नहीं कर रहे है I

धीरे- धीरे मानव समाज में यही स्त्रियाँ देवी के रूप में ही नहीं, देवी के हर रूप में देखी जाने लगी. कही- कही तो इन्हें पूरा का पूरा ढक ही दिया जाता है I स्त्रियों को पुरुषो से जो उनके या परिवार के लोगो की पसंद के नहीं थे, उनसे बचाने के लिए तरह-तरह के उपाय करने लगे I
यही इज्जत को लेकर आज कुछ लोग आवाज उठा रहे है, इज्जत के कारण ही महिला उत्पीडन हो रहा है I लेकिन ऐसा प्रतीत नहीं होता I इज्जत अब अलग हो गयी, उत्पीडन अलग I सवाल ये है, महिला से सम्बंधित जो कुछ भी समाज में था वो धीरे परिवारों की इज्जत बनता चला गया I

यौन उत्पीडन के लिए इज्जत को उत्प्रेरक नहीं कहा जा सकता है, समाज में आज किसी दूसरे यानि पीडिता स्त्री के परिवार के लोग अगर प्रताड़ित करने वाले पुरुष के परिवार की महिलाओ के साथ ऐसा कुछ करते है तो समझो, ये बदला है I यानि पहले यही होता था, अगर कोई किसी दूसरे समूह का आदमी कोई घटना कर जाता था तो ये लोग उसके समूह में जाकर घटना करने की कोशिश करते थे, लेकिन ये तो बदला था I आज कोई हमारे लडके को भी मार- पात कर देता है तो हम उसे मार -पीट कर बराबर करने के चक्कर में लगे रहते है, ये तो बदला है, यहाँ पर इज्जत नहीं मानव सुलभ स्वाभाव कहिये या फिर जैसा की अन्य जानवरों में भी होता है I किसी जीव ने अगर दूसरे जीव को कुछ किया तो वो जीव भी आक्रमण ही नहीं मौके- बे मौके हमला करने की फ़िराक में रहता है I इसी जानवरी प्रतिक्रिया को दबाने के लिए यानि ख़त्म करने के लिए कानून की जरुरत पड़ी I कही इंसान एक दूसरे को बदले की आग में ख़त्म ही न कर दे I कानून को इज्जत से जोड़ कर नहीं बनाया गया.I

यौन उत्पीडन अगर सेना द्वारा किया जाता है, नक्सलियो द्वारा किया जाता है, या किसी धार्मिक समुदाय द्वारा या देश द्वारा किया जाता है तो वो जघन्य अपराध हुआ, इसे इज्जत से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए I किसी भी सरकार को ऐसे कोई भी कानूनी सलाह नहीं देनी चाहिए, जिससे सेना. पुलिस या कोई अन्य संघठन ऐसा कर सके I महिलाओ के उत्पीडन से नक्सलियो या अधिकारिओ को मानसिक रूप से घायल तो किया जा सकता है. मनोबल गिराया जा सकता है, लेकिन इसे इज्जत से नहीं जोड़ा जा सकता है I ये बदले वाली नीति को हम किसी प्रकार से इज्जत से जोड़ कर नहीं देख सकते और किसी भी प्रकार से इसे उत्प्रेरक भी नहीं कह सकते है I

महिलाओ को हम सुरु से ही तमाम तरह के बन्धनों में जकड कर आज भी अन्दर ही रखना चाहते है, ढकना चाहते है, दूसरों की निगाहों से छिपाना चाहते है और ज्यादा तवज्जो देने की वजह से वो परिवार की इज्जत बन जाती है I वो मानसिक रूप से उसी में जकड कर रह जाती है, वही नहीं बल्कि पूरा का पूरा परिवार उसी में जकड जाता है I बार- बार इज्जत की खुबियो को बताते बताते उसे कमजोर ही कर देते है I किसी भी परिवार में महिला कभी भी अकेली नहीं होती है, उसके साथ तमाम बंधन होते है जो बहुत ही नाजुक और जिम्मेदार होते है, ये केवल उसकी कमजोरी को ख़त्म करने के लिहाज से ही तो है I ताकि कभी वो अपने को कभी भी अकेले महसूश न करे I यानि उसे मानसिक रूप से मजबूत तो किया जाता है ही I ये उसकी शारीरिक कमजोरी को देखते हुए ही मजबूती प्रदान की गयी है I

कभी जब मानव कम पढ़ा-लिखा होते था, किसी दूसरे से बदला लेना चाहता था तो हो सकता है वो उस परिवार के मर्दों से दबाता हो इसलिए महिलाओ पर आक्रमण करता हो I आज ऐसा न के बराबर हो रहा है I इज्जत लेने के लिए महिलाओ से खिलवाड़ अब नहीं किया जा रहा है I लेकिन ये भी किसी बात- कुबात को लेकर किया गया हो सकता है I हम आज तो कतई ये स्वीकार ही नहीं कर सकते की किसी परिवार को या उसकी इज्जत को धूल में मिलाने के लिए ही कोई यौन उत्पीडन की घटना की गयी I क्योकि दामिनी कांड में कही भी कोई इज्जत का कोई मसाला था ही नहीं I

इज्जत और यौन उत्पीडन दोनों अलग- अलग विषय है I

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh