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हर ओर हाहाकार मचा
जब दामनी ने अन्तिम साँस लिया,
देश के लुटेरों ने एक कन्या को लूट लिया,
उससे ज्यादा कही सरकार ने,
हर मासूम की बातो को नकारा,
खली हाथ इन खामोश निगाह्बानो को,
लाठी से तोड़ दिया।
न जिम्मेदारी ली,
ना ही कुछ काम किया,
जब लोगो का दर्द फटा,
सरकारी फरमान ने भी
आग में घी का काम किया।
बेगुनाह, शांत और शयमी लोगो
ने बेजुबानी एक ध्यानाकर्षण ब्रत,
का दिल्ली के कुछ स्थानों पर।
शैतानी कथाओ जैसे किरदार,
ड्राइवर, कंडक्टर और मिस्त्रियो
के समूह ने उस निहत्थे पर वार किया।
जनता के इस सीधेपन का
सरकार ने बहिस्कार किया,
लाठी डंडो से लैस हो देश की
पुलिस ने अत्याचार किया।
दिल्ली छोडो, मुह को मोड़ो,
नहीं कोई सवांद करो,
जीवन बचाओ, भागो-भागो,
मत अधिकारों की बात करो।
कुछ दिनों बाद सरकार ये जागी,
कुछ डरी कुछ भागी,
समझाओ जनता को,
अब ना कुछ मांग करे,
जो होता है, उसको किस्मत समझे,
अब ना रार करे।
जनता कहा भागी,
जनता ने सब प्रतिकारो का
बहिष्कार किया।
तब सरकार ने ही नया फार्मूला
इजाद किया,
मत रक्खो इस कामनी को,
भारत से बहिस्कार करो।
इसे एक साधारण से विदेशी अस्पताल
में कुछ इधर करो कुछ उधर करो।
उन क्रूर प्रहारों ने अपना काम किया,
एक मासूम की जिन्दगी को तमाम किया,
मृत देह को भी सरकार ने,
नेताओ ने, संस्कार और
अपने कर्मो से भयभीत,
नेताओ ने मिटा डाला उस मासूमियत को,
जनता को भी नहीं दिए दर्शन का वख्त,
वेवख्त उसका अंतिम संस्कार किया।
दामिनी का दामन फैला है,
देखो इन नेताओ का जीवन मैला है,
शासन की सीढ़ी में जब तक
अपराधियो का वास है,
हर कही स्त्री ही नहीं,
मानवता त्रस्त,
वे अपराधो में व्यस्त,
सत्ता में वे मस्त।
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