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सरकारी द्रष्टिकोण एवं एक बालिका को हवालात!

BEBASI
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अभी हाल में उत्तर प्रदेश के जिले बुलंदशहर में एक दस वर्षीय बालिका के साथ बदसलूकी की गयी या दुष्कर्म किया गया या फिर दुष्कर्म करने की कोशिश की गयी. लड़की और उसके परिजनों ने पुलिस में सुरक्षा और सूचना के हिसाब से थाने जाना ठीक समझा और गए भी, कही भी कोई घटना हो तो पुलिस को सूचना देना पहला कार्य नागरिक को यही करना होता है. यही इस बालिका के परिजनों ने भी किया. इस बच्ची को पुलिस ने तुरंत ही डाक्टरी जांच के नाम पर अपने कस्टडी में लेकर महिला थाने के हवाले कर दिया. महिला थाने की सिपाहियों ने इस बच्ची को हवालात में दाल दिया. हवालात से निकल कर डाक्टरी भी करायी गयी और उसे परिजनों के सुपुर्द करने के पहले मिडिया से बचने के लिए कुछ समाचार पत्रों के अनुसार पिटाई भी की गयी.

पहला तो ये हो सकता है, आखिर ऐसा क्या था जो पुलिस को इतना जहमत उठानी पड़ी. इस प्रदेश में जो भी सरकार आती है वो ये चाहती है की ये जनता जान ले की उनकी सरकार में अपराध नहीं हुआ. कम हुआ. दूसरी सरकारों से हम अच्छे रहे. इन्ही चक्कर में तमाम भय दिखा कर, पुलिसिया रौब से, मुकदमे, सजा और सामाजिक बदनामी का भी दिखा कर जैसे तमाम हथकंडों से पुलिस जनता पर हुए जुल्मो को खुद ही हजम कर जाती है. बेचारा न्याय का आकांक्षी अपने घर को लौट आता है.

दूसरा ये भी हो सकता है, अगर अपराधी सक्षम है थोडा भी और कुछ खर्च कर सकता है तो ये मित्र पुलिस मुद्दई के साथ कुछ भी कर गुजरने में तनिक देर नहीं लगाती है. यानी मुद्दई के साथ अपराधी का सलूक किया जाता है. हद- पाक कर वादी पीक्षे हट जाता है और कमी के साथ मुकदमे की कमी भी आती है.

तीसरा, कभी – कभी पाक- साफ़ बनाने के चक्कर में थानेदार, अपराधों को क्षिपाने में पीछे नहीं रहते है. उसके लिए भी उन्हें कुछ भी करना पद जाए. कोई जघन्य घटना घट जाए तो उस बेचारे थानेदार की तो हो गयी ऐसी- तैसी.

चौथा पक्ष राजनीतिक हो जाता है, इसमे राजनीतिक प्रतिशोधवश पुलिस कार्य करने लगाती है, जैसे की पिछले शासन में हम सभी देख ही चुके है. अभी हाल में इटावा जनपद में भी ऐसी ही घटना हुई, पीड़ित पक्ष की सुनी ही नहीं गयी.

सरकार के द्रष्टिकोण का खामयाजा भी कभी- कभी जनता को ही तो उठाना पड़ता है. जबरदस्ती जघन्य अपराधों की संख्या घटाने के नाम पर जब ऍफ़ इ आर लिखना टाला जाने लगता है तो उसका खामयाजा जनता को ही तो उठाना पड़ता है.

लड़की पकड़ी गयी, हवालात में डाली गयी, मार-पीट की गयी, जब बात जनता के बीच गूंजी तो सरकार ने पुलिस कर्मचारियो को केवल निलंबन के आधार बना इति श्री कर ली थी, लेकिन जब कोर्ट मैदान में कूद गया तो सरकार ने मुकदमे भी कायम कराया. आखिर ये सरकार क्यों इन्तजार किया कराती है किसी दूसरी पहल का, आखिर इन पुलिस वालों ने इन बालिका के साथ हवालात में डाल कर न केवल जघन्य अपराध किया बल्कि मार-पीट भी किया. अपराध के साबूत जुटाने के साथ मुलजिम को जेल तक पहुचने के बजे उसे समय दिया गया, छिपाने के, भागने का, साक्ष्य मिटाने का, यानि पुलिस ने भी अभियुक्त के साथ मिलकर अपराध की प्रकृति को बढ़ावा ही दिया. ये सभी सरकार के द्रष्टिकोण से ही तय होता है, कैसे जनता की बात सुनकर उसे न्याय दिया जाए. मुलायम जी तो ठीक ही कहते है, थाने भ्रष्टाचार के अड्डे बन गए है. चलो कुछ तो सही बोलते है.

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