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सरबजीत की मौत से मानवता को सन्देश……

BEBASI
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सरबजीत की बदनसीबी ही रही कि वह भटक कर पकिस्तान सीमा में पहुच गए, और उनका जीवन को जेल की अँधेरी गली में चला गया, जिसका कोई अंत नहीं हुआ। हुआ भी तो मौत के रूप में। तरन तरनतारन जिले के भिखिविंड गाँव के रहने वाले सरबजीत को पाक सीमा के अन्दर 30 अगस्त 1990 को पाकिस्तानी सेना ने गिरफ्तार किया था। उसके रॉ एजेंट होने का भी आरोप लगाया गया था। फिर बाद में लाहौर धमाकों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया और नाम भी बदल कर मंजीत सिंह कर दिया है और मौत की सजा सुना दी गयी। सरबजीत को की सजा सुनाने के बाद देश के नागरिकों ने चिट्ठी पत्री और इमेल के जरिये रिहाई के काफी प्रयत्न किये गए। लेकिन परिणाम कुछ नहीं निकला। सरबजीत को रिहा कराने के लिए सरकार के भी गंभीर प्रयत्न भी नहीं कर सकी। मुसरफ सरबजीत को सजा नहीं दे पाए और जरदारी ने तो अनिश्चय काल के लिए सजा टाल दी थी। सब जगह से मौत का फरमान तलने के बाद कभी- कभी सरबजीत की फांसी की सजा को ख़त्म कराने और रिहा करने- कराने के प्रयास जारी रहे। लेकिन कोई भी परिणाम सामने नहीं आया, आया तो पाकिस्तानी घ्रणा कहा जाये या उस धर्म के दुरूपयोग, जिसमे दया और धर्म के नाम पर मानवता को अनदेखा किया जाता है। कुछ जेल के कैदियों ने सरबजीत को मारने और पीटने के साथ गहरे जख्म दे दिए, जिनका अंत उसकी मौत के साथ हुआ।

कही न कही कुछ सवाल भी छोड़े है सरबजीत की मौत ने । कही न कही गड़बडियो को चिन्हिंत कर गयी है। पकिस्तान की सरकार ने मानवता की सभी हदों को तोड़ कर अमानवीय चेहरा पेश किया है, जिसका विश्व समुदाय द्वारा निंदा की जानी चाहिए। कुछ कमियों को हम यहाँ रेखांकित कर रहे है……
1. पाकिस्तान सरकार ने सरबजीत की शिकायतों पर गौर नहीं किया।
2. पाकिस्तान न्यायालयों ने भी निष्पक्ष सुनवाई नहीं की और सरबजीत को सफाई का मौका नहीं दिया।
3. पाकिस्तान सरकार सरबजीत को पर्याप्त सुरक्षा नहीं मुहैया कराई।
4. जेल के अन्दर मौत सरकार की नियत को भी साफ और निष्पक्ष नहीं कहा जा सकता।
5. मानवता हित में सरबजीत की चोट के बाद कोई खास इलाज का इंतजाम नहीं किया गया और लगातार लापरवाही की गयी, जिससे लगता है सरकार की भी मनसा साफ नहीं थी
और मानवता के मापदंडों को नहीं अपनाया गया।
6. पाकिस्तान सरकार ने सरबजीत के इलाज को किसी दूसरे देश से या भारतीय डाक्टरों को भी नहीं बुलाया।
7. वेंटिलेटर हटाने में भी गंभीरता नहीं बरती गयी। सवेदन शील मामला होने के कारण भी भारतीय सरकार से कोई भी वार्तालाप नहीं किया गया।
8. फंसी के सजायाफ्ता होने के बावजूद अन्य कैदियों से अलग नहीं रक्खा गया।
9. सरबजीत के पूरे प्रकरण को देखते हुए ऐसा लगता है जैसे एक सुनियोजित तरीके से सरबजीत की हत्या की गयी है।

अंतराष्ट्रीय मुल्जिम होने के बावजूद सरबजीत के साथ घोर लापरवाही और मानवता मानक का ख्याल ही नहीं रक्खा गया, तथ सरबजीत की हत्या को एक पाक सरकार के सुनियोजित तरीके से की गयी हत्या कहा जाये तो ठीक होगा। केवल भारत या भारत वासी ही नहीं सम्पूर्ण दुनिया अब कह रही है उसमे पाकिस्तानी सामाजिक कार्यकर्त्ता भी शामिल है। पाकिस्तान के सामाजिक कार्यकर्ता सरबजीत पर हुए हमले के पीछे गहरी साजिश का अंदेशा जता रहे हैं। पाकिस्तान की ही पत्रकार और समाजसेवी बीना सरवर के मुताबिक सरबजीत पर हमला किसी खास मकसद के लिए पूर्व नियोजित था। जिससे भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बरकरार रहे। बर्नी के अनुसार इसके पीछे साजिश लगती है। पाकिस्तान सरकार सरबजीत को रिहा नहीं कर रही थी। अंतर्राष्ट्रीय दबाव की वजह से उसे फांसी भी नहीं दे पा रही थी। सरबजीत की हत्या चुनाव के दौरान कट्टरपंथी तत्वों का समर्थन हासिल करने की कोशिश हो सकती है।

भारतीय कूटिनीति भी कमजोर है। पाकिस्तान हो या चीन या कोई अन्य देश राजनीतिक रूप से दबाव बनाने हमेशा की तरह असफल रहा है भारत। सही तरीके से पैरवी न कर पाना भी सरबजीत की मौत के लिए जिम्मेदार माना ही जाना चाहिए। कुछ भी अब तो सरबजीत के जीवन का अन्त हो ही गया है। पाकिस्तान सरकार की लापरवाही और अनैतिक कार्यों को देखते हुए दूसरे भारतियों को बचने का काम अब भारत सरकार को तेजी से करना चाहिए।

सरबजीत की मौत से कुछ नए तथ्य निकल रहे है, जिन पर गौर करना ही चाहिए….
1. सीमा के अन्दर आये दूसरे देश के नागरिक के साथ व्योहार के लिए अन्तराष्ट्रीय नैतिक व्योहार नीति का बनाया जाना चाहिए।
2. दूसरे देश के नागरिकों की जान की रक्षा के लिए उच्च स्तरीय और गुणवत्ता युक्त चिकित्सा के लिए देश की सीमा का सवाल नहीं आना चाहिए।
3. दूसरे देश के नागरिकों को कभी भी स्थानीय लोगो के साथ नहीं रक्खा जाना चाहिए और सुरक्षा के विशेष उपाय करना चाहिए।
4. दूसरे देश के नागरिकों के मुकदमों को अलग से राष्ट्रीय न्यायलय की स्थापना की जानी चाहिए और एक नियत समय पर ही सुनवाई पूरी की जनि चाहिए।
5. समय-समय पर अंतराष्ट्रीय मानक पालन कराने के लिए नियामक को बराबर निरिक्षण की जानी चाहिए।

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